फिल्म कलाकार सिद्धार्थ के साथ सद्‌गुरु की बातचीत का कुछ अंश आप पढ़ चुके हैं। संवाद की उसी कड़ी में सिद्धार्थ के कुछ और सवालों के जवाब जानते हैं जो जुड़े हैं समाज से, नेतृत्व से और चरित्र से –

 


सिद्धार्थः भारत के युवाओं के बारे में आम तौर पर एक शिकायत है कि वे हमेशा समस्याओं की तरफ सबका ध्यान खींचने में माहिर हैं कि अमुक जगह ये समस्या है, तो अमुक जगह वह समस्या है।

मुझे समझ नहीं आता कि कैसे कोई प्रशासन बंद का आह्वान कर सकता है, लेकिन उनका कहना है कि बंद बुलाना उनका अधिकार है। चीजों को बंद कराइए, आपकी ख्याति बढ़ेगी। यह सोच बदलनी चाहिए।
इस तरह की भी सोच होती है कि, ’जब तक मैं इस काम को कर रहा हूं, यह ठीक है, जैसे ही कोई और उसे करेगा, वह अपराध है’। यह सब कहां से शुरू होता है और कहां खत्म होता है?

सद्‌गुरु: कुछ लोग हैं, जिन्होंने समस्याओं की ओर ध्यान खींचने को ही अपना काम बना रखा है। यह अपने आप में एक गंभीर समस्या है। आप इस देश में कुछ भी करने की कोशिश कीजिए, वे आपको रोकना चाहते हैं। आप बांध बनाने की कोशिश कीजिए, विरोध होने लगेगा, आप किसी नाभिकीय परियोजना पर काम कीजिए, कुछ लोग विरोध पर उतर आएंगे। थर्मल प्रोजेक्ट की बात कीजिए, तो विरोध, पवनचक्की की बात कीजिए, तो भी विरोध लेकिन हर कोई सब कुछ चाहता है। अपने घरों में उन्हें सभी उपकरण चाहिए। उन्हें 24 घंटे बिजली चाहिए, उन्हें चाहिए कि सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हम केवल समस्याओं की ओर देख रहे हैं।

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हम अभी भी आजादी से पहले वाली मनःस्थिति में जी रहे हैं, क्योंकि महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी होशियारी के साथ बगावत की थी। उन्होंने उन्हें मारा नहीं, उन पर गोली नहीं चलाई, उनके यहां बम नहीं लगाए, बस रोजमर्रा के कामकाज को ठप कर दिया। बंद, हड़ताल, सत्याग्रह, ये सब वहीं से आए हैं। उन दिनों ये सब बड़े जबर्दस्त हथियार थे, क्योंकि हम पर कोई शासन कर रहा था, लेकिन आज भी यही जारी है। आज अगर आप नेता बनना चाहते हैं, तो मैं आपको एक रहस्य की बात बताता हूं। मान लीजिए आप कोई राजनेता बनना चाहते हैं, तो सडक़ें बनाने की कोशिश मत कीजिए, बांध मत बनाइए, कोई काम मत कीजिए। बस इतना कीजिए कि अपने साथ करीब सौ लोगों को इकट्ठा कीजिए और हाइवे जाम कर दीजिए। लोगों की जिंदगी को कष्टप्रद बना दीजिए। आप नेता बन जाएंगे।

देश को चलने देना और देश को रोक देना दो अलग-अलग तरह की तकनीकें हैं। महात्मा गांधी को देश को रोक देने में महारथ हासिल थी और उस वक्त के हालात में ऐसा करना सही भी था। लेकिन हम अब भी वही काम कर रहे हैं। राज्य सरकारें मांग कर रही हैं कि उनके पास बंद बुलाने का हक हो। बंद का मतलब सब कुछ ठप। मुझे समझ नहीं आता कि कैसे कोई प्रशासन बंद का आह्वान कर सकता है, लेकिन उनका कहना है कि बंद बुलाना उनका अधिकार है। चीजों को बंद कराइए, आपकी ख्याति बढ़ेगी। यह सोच बदलनी चाहिए। जो कोई भी इस देश में कुछ भी रोकने की चेष्टा करता है, हमें उसे नेता नहीं मानना चाहिए। हर नागरिक को यह तय कर लेना चाहिए कि जो कोई भी इस देश में किसी भी व्यवस्था को ठप करने की कोशिश करेगा, वह हमारा नेता नहीं हो सकता। नेता वह होगा, जो इस देश की व्यवस्थाओं को चलने में सहयोग करेगा।

सिद्धार्थः मैं अगला सवाल एक ऐसे शख्स के तौर पर पूछ रहा हूं जो इस बात को और इसके मकसद को और भी अच्छी तरह से समझता है कि ’यह संसार नश्वर है’। एक न एक दिन हर किसी को यहां से जाना है। ऐसे में सद्गुरु की विरासत को हजार साल तक न सही, कुछ सदियों तक ही सही, जारी रखने के लिए क्या किया जा रहा है?

सद्‌गुरु: आपको मुझे भेजने की इतनी जल्दी क्यों है? (हंसते हैं)। मैं वादा करता हूं, जरूरत से ज्यादा नहीं रुकूंगा। ईशा फाउंडेशन क्या है-हमारे यहां 25 लाख से भी ज्यादा पार्ट टाइम और तीन हजार से ज्यादा फुल टाइम स्वयंसेवक हैं। फुल टाइम स्वयंसेवकों में हर किसी को तमाम चुनौतियों से भरी बेहद सचेतन प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है। मूल गतिविधियों का हिस्सा बनने के लिए उन्हें इन सब से होकर गुजरना पड़ता है। मैंने आज तक जो भी किया है, उनमें से जिस चीज पर मुझे सबसे ज्यादा गर्व होता है, वह यह है कि मैंने इतने चरित्रवान लोग तैयार किए हैं कि अगर आप उनके सामने पूरी दुनिया की संपत्ति भी रख देंगे तो भी उनका मन एक पल के लिए भी विचलित नहीं होगा।

गौर से देखें तो हम पाते हैं कि इस देश में हर स्तर पर चरित्र खत्म हो रहा है। मेरी चिंता खासकर तथाकथित आध्यात्मिक आंदोलनों और गुरुओं को लेकर है। इस क्षेत्र में भी चरित्र की कमी बेहद दुखद बात है। मैं एक आश्रम में था। उस आश्रम का नाम नहीं लूंगा। वे लोग मुझे आश्रम का भ्रमण करा रहे थे। मुझे कुछ बड़े और खूबसूरत पेड़ नजर आए। मैंने कहा कि आपके यहां काफी बड़े और खूबसूरत पेड़ हैं। उन्होंने कहा-हां, यह हमारी पंचवटी है। यहां पांच तरह के पेड़ हैं। मैंने कहा- लेकिन, यहां तो बस चार तरह के ही पेड़ नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा-हां, वही चार-पांच, चार या पांच। मैंने कहा-क्या? चार, पांच कैसे हो सकता है और पांच, चार कैसे हो सकता है?

मेरा कहना है कि कहीं किसी को कोई हिचक है ही नहीं! चार, पांच कैसे हो सकते हैं? अगर मैंने कभी ऐसा कहा होता, तो शर्म से मर गया होता। वहां केवल चार तरह के पेड़ थे और आप उसे पंचवटी कह रहे हैं। एक पेड़ कल्पना में मान लिया आपने। मैं बस यह कहना चाहता हूं कि यह चरित्र की कमी है। लोगों के भीतर बेदाग चरित्र विकसित करने के लिए मैं उनके साथ बड़ी कड़ाई से पेश आया हूं, जो कि वास्तव में मेरा स्वभाव नहीं है। लेकिन आज इससे पूरी तरह से चरित्रवान लोग पैदा हुए हैं। आपको पता है कि मैं ज्यादातर सफर में ही रहता हूं।

हर नागरिक को यह तय कर लेना चाहिए कि जो कोई भी इस देश में किसी भी व्यवस्था को ठप करने की कोशिश करेगा, वह हमारा नेता नहीं हो सकता।
ऐसे में अगर लगातार छह महीने तक भी मैं आश्रम में न रहूं तो भी वहां सब कुछ ठीक-ठाक व्यवस्थित तरीके से चलता रहेगा। पिछले पंद्रह सालों के दौरान मैंने अपनी संस्था की वित्तीय व्यवस्थाओं को नहीं देखा है। पिछले 25 सालों से मैंने किसी चेक पर भी दस्तखत नहीं किए हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि सब कुछ ठीक चल रहा है। मुझे तो लोगों का ध्यान रखना है, बस।

लोग ईशा में केवल एक दिन के लिए आते हैं और बहुत प्रभावित होकर वापस जाते हैं। इसकी वजह यहां के शानदार नजारे और इमारत नहीं हैं, बल्कि वे लोग हैं, जो हमने तैयार किए है। मेरा ध्यान हमेशा से लोगों पर रहा है, न कि संस्था पर। आपने सही व्यक्ति तैयार किए हैं तो आपको संस्था के लिए परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। सारा कामकाज अपने आप चलता रहेगा। हमने शानदार लोग तैयार किए हैं। यही हमारा गौरव है और यही हमारी विरासत।

सिद्धार्थः सद्गुरु, इस मुलाकात का आखिरी, लेकिन बेहद महत्वपूर्ण सवाल। भारतीय क्रिकेट टीम अच्छा प्रदर्शन कैसे करे और हम एक बेहतर टीम कैसे बनें?

सद्‌गुरु: मुझे उनके साथ तीन हफ्ते का समय दीजिए और मैं आपको दिखा दूंगा कि वे निश्चित रूप से अच्छा प्रदर्शन करने लगेंगे। अगर तीन हफ्ते संभव न हों तो शुरुआत में एक हफ्ता ही कर लेते हैं। उन्हें हमारे साथ एक हफ्ते का समय दें, लेकिन हमारे साथ यह समय, वे क्रिकेट के सितारों की तरह न बिताएं, केवल निर्देशों को सुनें।

सिद्धार्थः लेकिन कृपा करके उनके गुस्से को खत्म मत कीजिएगा। हम चाहते हैं कि उनके भीतर गुस्सा बना रहे।

सद्‌गुरु: नहीं, नहीं। यही तो बात है। जरा समझने की कोशिश कीजिए। इस बात के भरपूर मेडिकल और वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि अगर मैं यह फूल भी उठाना चाहूं तो यह काम सबसे बढिय़ा तरीके से तभी कर पाउूंगा, जब मैं भीतर से शांति और आराम की स्थिति में होऊं क्योंकि तभी मेरा शारीरिक ताल-मेल भी अच्छा रहेगा। अगर मैं गुस्से में रहूंगा तो सब गड़बड़ ही होगा। आप पाकिस्तानियों को हराना चाहते हैं, लेकिन वे आपको आउट कर देते हैं। आपको पाकिस्तानियों को हराने की जरूरत नहीं है, आपको तो बस बॉल को हिट करना है।