आजकल किसी को घर बनवाना हो या खरीदना हो, लोग उसकी कीमत, मजबूती या किसी और चीज से ज्यादा उसके वास्तु पर ध्यान देने लगे हैं। सद्‌गुरु एक ऐसा दिलचस्प वाकया बयान कर रहे हैं, जिससे पता चलता है कि आज इसको किस हद तक खींचा जा रहा है।

वास्तु दरअसल आर्किटेक्चरल या निर्माणकला संबंधी एक बहुत बुनियादी मार्गदर्शन है। हजार साल पहले अगर आप घर बनाना चाहते तो उस जमाने में गांव में कोई आर्किटेक्ट तो मिलता नहीं। तो फिर घर बनाने के लिए आप किससे मार्गदर्शन लेते? किसी भी ईमारत के निर्माण में मुख्य चुनौती हमेशा छत का फैलाव होती है। आप छत कैसे बनाते? आप खेत में जा कर कोई मजबूत पेड़ देख कर उसे काट लाते। मान लीजिए खेत में एक ठिगना पेड़ मिलता, सिर्फ आठ फीट ऊंचा। अब छत की चौड़ाई भी आठ फीट ही हो पाती। अब मान लीजिए आपके दस बच्चे होते, तो उन सबके रहने के लिए आप 120 फीट लंबा कमरा बनाते। अब अगर आप आठ फीट चौड़ा और 120 फीट लंबा घर बनाते, तो वह घर नहीं एक सुरंग होता जिसमें आपको रहना पड़ता। इससे आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर जरूर बुरा असर पड़ता। इसलिए उन्होंने आपका मार्गदर्शन किया कि अगर आपको घर बनाना है जिसकी चौड़ाई इतनी है तो लंबाई इतनी ही होनी चाहिए।

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 ... हर तरह की ऊलजलूल चीजें होने लगी हैं क्योंकि जब आपके मन पर डर छाया होता है, तो आप हर चीज को एक विज्ञान बना सकते हैं।

अगर आप वास्तुशास्त्र को ध्यान से पढ़ें, तो पाएंगे कि पहाड़ी इलाकों के लिए एक अलग तरह का वास्तु होता है और मैदानी इलाकों के लिए अलग। कर्नाटक का वास्तु तमिलनाडु के वास्तु से अलग है। वहां के मौसम और तापमान का ख्याल रखते हुए उन्होंने एक सामान्य दिशानिर्देश तैयार किया जो सबके काम आ सके, ताकि आप ढंग से अपना घर बना सकें, क्योंकि उन दिनों आपकी मदद के लिए कोई आर्किटेक्ट नहीं होता था।

आज लोग वास्तु को इस हद तक खींच रहे हैं कि हर तरह की ऊलजलूल चीजें होने लगी हैं क्योंकि जब आपके मन पर डर छाया होता है, तो आप हर चीज को एक विज्ञान बना सकते हैं। पिछले दस-बीस सालों में यह सब लोगों के मन पर हावी हो गया है। उससे पहले किसी को वास्तु के बारे में मालूम नहीं था पर हर इंसान हंसी-खुशी जिंदगी जी रहा था।

अब सुनिए एक दिलचस्प वाकया। कुछ साल पहले मैं किसी के घर ठहरा था। रात में मेरे सारे फोन चालू रहते हैं, क्योंकि युनाइटेड स्टेट्स के लोगों का काम हमारे समय के हिसाब से रात दस बजे शुरू होता है और मुझे उस वक्त उनसे बात करनी पड़ती है। पर मेरा मोबाइल फोन काम नहीं कर रहा था और मैं उनसे संपर्क नहीं कर पा रहा था। इसलिए मैं वहां के लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करना चाहता था और इस खातिर मैं अपने मेजबान को ढूंढ़ने लगा। रात के साढ़े बारह या एक बज रहे थे, इसलिए मैं उनको जगाना नहीं चाहता था, लेकिन चूंकि मैंने उनको करीब पैंतालीस मिनट पहले ही देखा था, इसलिए थोड़ा संकोच करते हुए जा कर उनके दरवाजे पर दस्तक दी – कोई जवाब नहीं मिला। मैंने सोचा शायद वे सचमुच सो गए हैं, फिर भी मैंने एक बार और दस्तक दी – अब भी कोई जवाब नहीं। फिर मैंने हैंडल घुमाने की कोशिश की, तो दरवाजा खुल गया। मैंने अंदर झांका, बेडरूम में कोई भी नहीं था।

अगर आप वास्तुशास्त्र को ध्यान से पढ़ें, तो पाएंगे कि पहाड़ी इलाकों के लिए एक अलग तरह का वास्तु होता है और मैदानी इलाकों के लिए अलग। कर्नाटक का वास्तु तमिलनाडु के वास्तु से अलग है।

मैंने सोचा शायद वे बगीचे में सैर कर रहे होंगे या फिर रसोई में या और कहीं होंगे। मैं नीचे जा कर पूरा घर छान मारा – कोई भी नजर नहीं आया। तब मैंने आश्रम में फोन कर के कहा, “मेरे मेजबान गायब हैं। पति-पत्नी दोनों यहां नहीं हैं। वे कहां हैं?” उन्होंने उनके मोबाइल नंबर पर फोन किया, जो मेरे पास नहीं था, और बस थोड़ी ही देर में वे मेरे सामने थे। “आप कहां चले गए थे? स्टोर रूम समेत मैंने हर जगह आपको ढूंढ़ा।” वे बोले, “मैं सो रहा था।” मैंने पूछा, “कहां?” जवाब में वे महाशय बोले, “आप जानते हैं, कारोबार में मुझे नुकसान हुआ है और ...” मैंने कहा, “वो तो ठीक है, लेकिन आप थे कहां?” मैं जान कर चौंक गया कि वे बाथरूम में सो रहे थे! मैंने उनके बाथरूम में होने की बात बिलकुल नहीं सोची थी। किसी वास्तु जानने वाले ने उनको बता दिया था, “आपका बेडरूम का स्थान आपकी बदकिस्मती का कारण है, इसलिए आपको बाथरूम में सोना चाहिए। इससे आपका कारोबार खूब चलेगा।” मैंने उनसे कहा, “कम-से-कम शान के साथ अपने बेडरूम में सो कर मर जाना अच्छा होगा, बजाय इसके कि बाथरूम में सो कर लंबे अरसे तक जिंदा रहें।”