प्रश्न: ऐसा क्यों हुआ कि आपने स्टरलाइट के बंद होने पर अपनी प्रतिक्रिया पहले जाहिर की, बजाए इसके कि आप सड़कों पर मारे गए युवकों की मौत पर बोलते? क्या यह असंवेदनशीलता नहीं है?

सद्‌गुरु: इस घटना को लेकर सबसे पहले मैंने जो प्रतिक्रिया जाहिर की थी, वह तूतीकोरिन की सड़कों पर मारे गए युवाकों को लेकर ही थी। उस समय मैं देश से बाहर था, जब मैंने विरोध प्रदर्शन की कुछ ऐसी तस्वीरें देखीं, जिनमें वाहन जल रहे थे। जब मैं वापस लौटा और इसके बारे में जानकारी हासिल की तो मुझे पता चला कि इस दौरान सड़कों पर 13 लोग मारे गए हैं। मेरे लिए यह घटना सदमे से कम नहीं थी। यही वजह थी कि मैंने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। मैंने किसी कंपनी का नुकसान होने को लेकर प्रतिक्रिया नहीं दी थी। अफसोस की बात है कि लोग हमेशा विवादों की तलाश में रहते हैं और सड़क पर बहने वाले खून से अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने की कोशिश करते हैं।

मैं #Sterlite स्टरलाइट या किसी अन्य उद्योग या राजनीतिक दल के समर्थन में नहीं हूं। पर्यावरण उल्लंघन को कानूनी तरीके से संभालना चाहिए। सार्वजनिक संपत्ति जला देना या व्यवसाय बंद करना राष्ट्रीय हित में नहीं है। राजनीति मत कीजिए, लोगों ने अपनी जानें गंवाई हैं। - सद्‌गुरु 

इस मुद्दे पर मुझे अपनी बात फिर से रखने दीजिए। उस समय की मौजूदा सरकार ने सभी तरह के ‘एनओसी’ (अनापत्ति प्रमाण पत्र) जारी किए और एक उद्योग लगाने की इजाजत दी। उसके बाद उद्योग शुरू हुआ। आज लोग मुझे बता रहे हैं कि इसमें प्रदूषण का गंभीर मामला था। मुझे उस प्रदूषण की किस्म से जुड़ी किसी तरह की कोई विस्तृत जानकारी नहीं है। लेकिन अगर वहां प्रदूषण की समस्या थी, तो क्या ऐसे लोग मौजूद नहीं हैं, जिनकी जिम्मेदारी इस तरह के उद्योगों को लाइसेंस देने की है? अगर प्रदूषण संबंधी उल्लंघन के चलते या किसी भी कारण से वह उद्योग यहां लगने लायक नहीं था तो विरोध होने से पहले ही इस मामले में उचित कदम उठा लिया जाना चाहिए था। सवाल उठता है कोई कदम उठाने के लिए विरोध-प्रदर्शन की ज़रूरत क्यों पड़ती है?

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सद्‌गुरु के ट्वीट का अनुवाद  :-

 प्रिय मंत्री, मैंने किसी भी उद्योग को फिर से खोलने की सिफारिश नहीं की। सबसे पहले ये सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है, कि कोई उल्लंघन न हो। अगर कोई विवाद हो तो कानूनी सहारा लेना चाहिए। लोगों को सड़कों पर लाना और नियंत्रण से बाहर होने पर उन्हें मरने देना कोई तरीका नहीं है। मुझे पता है कि बहुत सारी भावनाएं जुड़ी हैं लेकिन समझदारी फिर भी कारगर होगी'। यह 21वीं शताब्दी का भारत है। 1947 से पहले का नहीं। - सद्‌गुरु 

अगर एक चुनी हुई सरकार लोगों की जरूरतों पर गौर नहीं करती तो फिर आप भला दबाव कहां बनाएंगे? नीति बनाने वाले ही तो नीतियों में बदलाव कर सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति कानून तोड़ रहा है तो यह सरकार का काम है कि इस बात का ख़याल रखे। लेकिन यहां वो नहीं हुआ, मैं नहीं जानता कि क्यों। हालांकि इस मामले को लेकर एक जांच चल रही है। इस जांच का नतीजा आने दीजिए, फिर देखते हैं कि इसमें क्या सामने आता है।

कानून प्रणाली का ठीक से इस्तेमाल नहीं हो रहा

प्रश्न: 13 लोगों की मृत्यु के लिए यहां कौन जिम्मेदार हैं?

सद्‌गुरु: हमारे युवकों ने सड़क पर क्यों अपनी जान गंवाई? उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि हम लोग अपने कानून को ढंग से नहीं संभाल पा रहे। हम लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया व कानून-प्रणाली का ठीक तरह से इस्तेमाल नहीं कर रहे। देश के लिए मरना तो 1947 में ही खत्म हो जाना चाहिए था। आखिर हम देश की समस्याओं का समाधान सड़कों पर ढूंढने की कोशिश क्यों करते हैं?

अगर हम यह सोचते हैं कि हम इस देश की समस्याओं का समाधान बंदूकों से करेंगे तो हमें ऐसी चौंका देने वाली स्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए।
अगर हम भावनाओं से भरे हजारों लोगों को सड़कों पर उतरने देंगे तो चीजें अपने आप बेक़ाबू हो जाएंगी। जब चीजें बेक़ाबू हो जाती हैं तो ऐसी त्रासदीपूर्ण(भयंकर) घटनाएं घटनी शुरू होती हैं। मुझे इस बात की ठीक से जानकारी नहीं है कि किस तरह से गोलीबारी शुरू हुई। इस मामले को लेकर जांच चल रही है और मैं इसके बारे में पहले से ही कोई अनुमान लगाकर कोई ऐसी बात नहीं कहना चाहता, जिसके बारे में मैं ज्यादा नहीं जानता। लेकिन मैं पूछ रहा हूं हम लोग ऐसी स्थितियां बनने ही क्यों देते हैं? हम लोग इस तरह से समस्याओं का समाधान क्यों ढूँढ रहे हैं? क्या इनके समाधान का कोई और बेहतर तरीका नहीं है? इस समय देश भर में सड़क पर विरोध प्रदर्शन का चलन तेजी से बढ़ रहा है। समस्याओं का हल ढूंढने का यह तरीका सही नहीं है। अगर हम यह सोचते हैं कि हम इस देश की समस्याओं का समाधान बंदूकों से करेंगे तो हमें ऐसी चौंका देने वाली स्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए। हमारे लिए यह बात समझना बहुत जरूरी है कि हम लोग कानून के दायरे में रहकर ही देश की समस्याओं का हल निकाल सकते हैं।

ऐसे विरोध प्रदर्शन 1947 से पहले ठीक थे

प्रश्न: वेदांता के अनिल अग्रवाल से मिलने के बाद बाबा रामदेव ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखी थी। क्या इस मुद्दे पर आपने उनके साथ कोऑर्डिनेट किया था? क्या आप भी वेदांता का समर्थन करते हैं?

सद्‌गुरु: मैं वेदांता का समर्थन नहीं करता। वास्तव में कुछ दिनों पहले तक मुझे तो यह भी नहीं पता था कि ‘स्टरलाइट’ वेदांता की एक कंपनी है। मैंने तो इस मामले पर सिर्फ इसलिए टिप्पणी की थी, क्योंकि एक टेलीविजन एंकर ने मुझसे इस बारे में एक सवाल किया था। जैसा कि मैंने पहले ही कहा था कि मैंने जलती हुई बसों की तस्वीरें देखी थी। मुझे लगता है कि इस देश में बुनियादी ढांचा बहुत कीमती है, क्योंकि एक अरब तीस करोड़ लोगों के लिए हमारे पास कोई भी चीज काफी नहीं है। इन सबसे बड़ी बात ये है कि इसमें 13 युवा जीवन भी भेंट चढ़ गए। इसीलिए मैंने यह कहा था, ‘चीजों को संभालने का यह तरीका सही नहीं है।’

आजादी से पहले हम लोग हमेशा देश की हर चीज को खत्म करने या बर्बाद करने पर उतारू थे, क्योंकि तब हम पर कोई और शासन कर रहा था। लेकिन अब यह हमारा अपना देश है।
शायद दो दिनों बाद बाबा रामदेव ने इस पर टिप्पणी की थी। इस बारे में बाबा ने क्या कहा और क्यों कहा, इससे मेरा कोई लेना देना नहीं है। लेकिन मेरा कहना है कि हमें अपने देश को 1947 से पहले वाली स्थिति में वापस ले जाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जहां हम लोग हमेशा किसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हों। आजादी से पहले हम लोग हमेशा देश की हर चीज को खत्म करने या बर्बाद करने पर उतारू थे, क्योंकि तब हम पर कोई और शासन कर रहा था। लेकिन अब यह हमारा अपना देश है। हम लोग एक आजाद देश हैं। हम सब की कोशिश इस देश को बनाने की होनी चाहिए, न कि लगातार इस देश को अस्थिर करने की।

प्रश्न: क्या आप यह कहना चाहते हैं कि लोगों को विरोध का अधिकार नहीं है?

सद्‌गुरु: हम लोगों को विरोध का अधिकार है, लेकिन हमें किसी चीज को जलाने का अधिकार नहीं है। क्योंकि जब आप सार्वजनिक संपत्ति को जलाते हैं तो उस समय आप मेरी भी संपत्ति को जला रहे हैं। देश को इस तरह से नहीं संभालना चाहिए। यह 21वीं सदी का भारत है। यह हमारा समय है। हमें सभ्य तरीके से ही समाधान निकालना चाहिए। जांच में साफ तौर पर इस बात पर गौर होना चाहिए कि इन समस्याओं के पीछे कौन है, क्योंकि जो लोग अराजकता में विश्वास करते हैं और मौका मिलते ही आगजनी करते हैं, उनसे कड़ाई से निपटने की जरूरत है। लोगों का सच्चा हित समझना होगा

प्रश्न: आप कह रहे हैं कि ऐसे मामलों को संभालने के कई और बेहतर तरीके हैं। कैसे? आर्थिक विकास बनाम लोगों के सरोकार के मुद्दे पर फैसला किसे लेना चाहिए?

सद्‌गुरु: ऐसे मुद्दों पर फैसला लेने के लिए इस देश में पर्याप्त जिम्मेदार एजेंसियां हैं। हमें बस इतना सुनिश्चित करने की जरूरत है कि ये एजेंसियां अपना फैसला लेते समय किसी राजनीति से प्रेरित ना हों। जिम्मेदार नागरिक इन मुद्दों को उठाएं और उन पर नजर रखें कि ये एजेंसियां किसी राजनीतिक दबाव या वजहों से इन मुद्दों पर फैसला न लेकर आम लोगों के सच्चे हितों को ध्यान में रखकर काम करें।

मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि जब हम अर्थव्यवस्था का जिक्र करते हैं तो आमतौर पर लोग सोचते हैं कि इसका उल्लेख कॉरपोरेट के संदर्भ में हो रहा है। नहीं, ऐसा नहीं है। अर्थव्यवस्था का रिश्ता लोगों से है - आज भी इस देश में लगभग 40 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें भरपेट भोजन नहीं मिलता। भारत के उद्योगों और कारोबार को फलना-फूलना चाहिए, क्योंकि इसके फलने-फूलने में लोगों की भलाई है। उद्योग और कारोबार का मतलब हजारों की संख्या में रोजगार व आजीविका से है। क्या आप दुनिया को यह संकेत देना चाहते हैं कि वह भारत में विशाल निवेश तो करें, लेकिन यहां कोई सुरक्षा नहीं है। तो क्या यह हमारे जैसे देश के लिए शुभ संकेत होगा, जो अपनी अर्थव्यवस्था को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश कर रहा है?

आज भी इस देश में लगभग 60 प्रतिशत लोगों को वैसा खाना नहीं मिल रहा, जैसे भोजन की उन्हें जरूरत है। किसी मजदूर को मेहनत का काम करने के लिए जिस तरह के खाने की जरूरत है, वह वैसा खाना नहीं खा पाता। एक गर्भवती महिला को पर्याप्त भोजन और पोषण नहीं मिल रहा, जिससे वह एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सके। एक बच्चे को जैसा खाना मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिल रहा, ताकि वह स्कूल जाकर कुछ सीख सके। फिलहाल इस देश की यही किस्मत है। यह सब देख कर मेरा दिल रोता है। इससे पहले कि हमारी पीढ़ी यहां से विदा हो, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ये हालात बदलें। अगर यह होना है तो हम जानते हैं कि इसके लिए हमें देश में सफल कारोबार और उद्योगों की जरूरत है। हमें बस जलाने की व सड़कों पर लोगों पर गोलीबारी करने की जरूरत नहीं है।