आज दुनिया में बहुत से लोग मन की शांति को अपने जीवन का लक्ष्य समझते हैं। लेकिन सद्‌गुरु का बता रहे हैं कि यह लक्ष्य नहीं है, यह तो बस शुरुआत है।

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शांति क्या है? लोग कहते हैं कि पहाड़ पर बैठकर ध्यान करना शांति है। कोई शराब पीकर बहुत शांत हो सकता है। ऐसी बहुत सी वजहें हो सकती हैं। जब भी आपका अहं संतुष्ट होता है, आपको बहुत शांति मिलती है। आप जहां भी जाते हैं, अगर उस जगह लोग आपके अहं को सहारा और बढ़ावा देते हैं, तो उस जगह आप बहुत शांत होते हैं। केवल वहीं आपको शांति नहीं मिलती, जहां आपके अहं को चोट लगती है।
अगर आपको शांति पाने के लिए किसी पहाड़ पर जाकर बैठना हो, तो वह शांति आपकी नहीं है, शायद वह पहाड़ की शांति है। जब आप नीचे आएंगे तो आपके सामने वही समस्याएं होंगी।

समुद्र की सतह पर आपको लहरें, भयानक उथल-पुथल और खलबली देखने को मिलती हैं। लेकिन अगर आप गहराई में जाएं, तो बहुत शांति होती है। अस्तित्व का मूल गुण हमेशा शांति होता है।
पहाड़ पर कोई भी मूर्ख शांत हो सकता है क्योंकि वहां आप सिर्फ तीन दिनों के लिए होते हैं। अगर आप वहां तीन साल रहें, तो आपको वहां भी समस्याएं होंगी। छुटि्टयां आम तौर पर बहुत छोटी होती हैं – जो एक अच्छी चीज है। अगर आप वहां थोड़ा ज्यादा समय रह लें तो आपको पता चल जाएगा कि यह भी कारगर नहीं है। चूंकि आपकी छुट्टियां बहुत छोटी होती हैं, इसलिए इससे पहले कि आप नई समस्याएं पैदा कर सकें, आप अपनी पुरानी समस्याओं में वापस आ जाते हैं। इसलिए लोगों को अपनी छुट्टी के छोटे होने की शिकायत नहीं करनी चाहिए।
आम तौर पर दुनिया में जब लोग मन की शांति की बात करते हैं, तो यह किसी न किसी तरह अपने अहं को संतुष्ट करने की बात होती है। वे परेशान हालत में होने की जगह आरामदेह महसूस करना चाहते हैं। मगर अपने अहं को शांत करने की कोशिश अशांति की एक पूरी प्रक्रिया भी है। कोई इंसान शांतिपूर्ण होने की जितनी ज्यादा कोशिश करता है, वह अपनी शांति खो बैठता है और रास्ते से भटक जाता है। जो इंसान शांतिपूर्ण होने की कोशिश करता है, वह असल में कभी शांत नहीं हो सकता। इसकी उल्टी प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
जब आप पहाड़ों की तरफ देखते हैं, तो आप शांति महसूस करते हैं। अचानक कोई हाथी जंगल से निकल कर सीधा आपकी ओर लपकता है – आपकी सारी शांति गायब हो जाती है। इस शांति की कोई अहमियत नहीं है। इससे बेहतर है कि आप अशांत रहें क्योंकि अगर आप अशांत होंगे तो कम से कम खोज करेंगे। अगर आप शांत हो गए, तो आप आत्मसंतुष्ट और बेपरवाह हो जाएंगे। आत्मसंतोष हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है। अशांति आपकी शत्रु नहीं है। आपकी आत्मसंतुष्टि आपकी सबसे बड़ी दुश्मन है, और इस तरह की शांति सिर्फ आत्मसंतुष्टि ही पैदा करेगी।
शांति उपलब्धि से भी पैदा हो सकती है। जब आप कोई उपलब्धि हासिल कर लेते हैं, तो आप बहुत संतुष्ट महसूस करते हैं। आप महसूस करते हैं कि आप एक संपूर्ण, संतुष्ट प्राणी हैं। यह एहसास सिर्फ एक पल ही रहता है। संपूर्णता की यह भावना असल में संपूर्णता नहीं है। जब आपकी इच्छाएं पूरी होती हैं, जब आपकी महत्वाकांक्षाएं पूरी होती हैं या जब आपके लिए सब कुछ सही होता है, जब आपके आस-पास का माहौल आपके अहं और आपके शरीर के लिए आरामदेह होता है, तो आप आम तौर पर शांत महसूस करते हैं। मगर यह शांति असली शांति नहीं है। शांति का मतलब शून्यता होता है। शांति कोई ऐसी चीज नहीं है, जो आप पैदा करते हैं, शांति कोई ऐसी चीज नहीं है, जो घटित होती है। शांति एक ऐसी चीज है, जो हमेशा मौजूद होती है। जो सतह पर घटित होता है, वह अशांति है।
यह बिल्कुल समुद्र की तरह है। समुद्र की सतह पर आपको लहरें, भयानक उथल-पुथल और खलबली देखने को मिलती हैं। लेकिन अगर आप गहराई में जाएं, तो बहुत शांति होती है। अस्तित्व का मूल गुण हमेशा शांति होता है।
फिलहाल, ज्यादातर लोग सोचते हैं कि मन की शांति उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है। ऐसे लोग बस शांति में सो जाएंगे। यहां तक कि आपका कुत्ता भी शांत हो कर बैठता है, जब आप उसे पेट भर खाना देते हैं। हो सकता है कि वह आनंदित न हो, मगर कम से कम शांत होता है। उस अवस्था को इस धरती के ज्यादातर मनुष्य अपने जीवन का सबसे ऊंचा मकसद मानते हैं। यहां तक कि तथाकथित आध्यात्मिक लोगों का भी ऐसा ही सोचना है।
मैंने कहा, ‘शांति अभिवादन का सबसे बढ़िया तरीका क्यों है?’ मेरे लिए शांति अभिवादन का सर्वोच्च तरीका नहीं है। हो सकता है कि अगर आप मध्य पूर्व में जन्मे हैं, तो अभिवादन का सर्वोच्च तरीका शांति हो क्योंकि हर दिन आपके आस-पास बहुत सी चीजें होती रहती हैं।
वे कहते हैं कि शांति सबसे बड़ा लक्ष्य है। शांति सबसे बड़ा लक्ष्य नहीं है। अगर आप आज अपने डिनर का आनंद उठाना चाहते हैं, तो आपको शांत होना चाहिए। अगर आप अपने परिवार, अपने काम का आनंद उठाना चाहते हैं या पार्क में टहलने का आनंद उठाना चाहते हैं, तो आपको शांत होना होगा। शांति जीवन का ए है, ज़ेड नहीं। यह सबसे बुनियादी चीज है। अगर आपके पास कुछ और नहीं है, तो कम से कम आपको शांतिपूर्ण होना ही चाहिए।
शांतिप्रियता को सबसे बड़ी चीज के रूप में पेश किया जाता है क्योंकि जब किसी का दिमाग अशांत होता है, तो उनके नजरिये में शांति सबसे ऊंचा लक्ष्य होगा। आप जिस चीज से वंचित होते हैं, वह आपके जीवन का सबसे बड़ा मकसद बन जाता है।
कुछ समय पहले जब मैं इस्रायल में था, तो मुझे एक रेस्तरां ले जाया गया, जहां डिनर की व्यवस्था थी। रेस्तरां अलग-अलग तरह के होते हैं। कुछ रेस्तरां अच्छे भोजन के लिए जाने जाते हैं। कुछ अपने माहौल के लिए मशहूर होते हैं। मगर कुछ रेस्तरां उस बातचीत के लिए मशहूर होते हैं, जो वहां होती है। तेल अवीव में, एक रेस्तरां था, जो बौद्धिक विचार-विमर्शों के लिए प्रसिद्ध था।
लोग अंदर आने लगे। एक व्यक्ति ने मुझे कहा ‘शालोम’। मैंने कहा ‘नमस्ते’ और पूछा कि ‘शालोम का मतलब क्या है?’ उसने जवाब दिया, ‘यह अभिवादन का सबसे बढ़िया तरीका है। इसका मतलब होता है, शांति।’ मैंने कहा, ‘शांति अभिवादन का सबसे बढ़िया तरीका क्यों है?’ मेरे लिए शांति अभिवादन का सर्वोच्च तरीका नहीं है। हो सकता है कि अगर आप मध्य पूर्व में जन्मे हैं, तो अभिवादन का सर्वोच्च तरीका शांति हो क्योंकि हर दिन आपके आस-पास बहुत सी चीजें होती रहती हैं। अगर आपके पड़ोस में लोग मर रहे हों, तो निश्चित रूप से शांति जीवित रहने का सर्वोच्च तरीका होगा। लेकिन अगर आपके आस-पास सब कुछ शांतिपूर्ण है, तो आप किसी जोश की तलाश में होते हैं।
शांतिपूर्ण होना निश्चित रूप से चरम लक्ष्य नहीं है क्योंकि जब आप शांत और आनंदित होते हैं, तभी आपका शरीर और दिमाग सबसे अच्छे तरीके से काम करेगा। दुनिया में आपकी कामयाबी और कुशलता इसी से तय होती है। आपकी कुशलता और आपकी क्षमता आपकी इच्छा पर निर्भर नहीं है, यह आपकी काबिलियत पर निर्भर करती है। जब आप दुःख या डिप्रेशन की किसी अवस्था से गुजर रहे हों, तो आपकी काबिलियत का स्तर गिर जाता है। इसलिए, अगर आप अपनी क्षमताओं को बढ़ाना चाहते हैं, तो पहली और महत्वपूर्ण चीज अपने लिए एक खुशहाल आधार तैयार करना है। आपको ऐसा बनना चाहिए कि शांतिपूर्ण और खुश होना आपके लिए कोई समस्या न हो। ताकि यह किसी चीज पर निर्भर न हो – आप हमेशा ऐसे ही बने रहें। तब आपका शरीर और दिमाग सबसे बढ़िया तरीके से काम करेगा, और आप सहजता से वह कर सकेंगे, जो आप करना चाहते हैं।