सिंगापुर की एक मशहूर पत्रिका प्रेस्टीज ने तेज बदलाव और बदलती तकदीर वाली आज की दुनिया में एक अच्छे लीडर के मूलभूत गुणों के विषय पर सद्‌गुरु का साक्षात्कार किया।

पेश है उस साक्षात्कार के अंश -

 

आपके हिसाब से एक अच्छे नेता के मूलभूत गुण क्या हैं?

 

सद्‌गुरु: नेता वह है, जिसमें अंतर्दृष्टि होता है, वह ऐसी चीजें देख सकता है, जो दूसरे लोग नहीं देख पाते। अगर कोई पर्याप्त रूप से ध्यान दे सके, तो इस ब्रह्मांड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपके लिए खुला न हो। लेकिन बारिकियों पर हर किसी का ध्यान एक जैसा नहीं जाता। साथ ही उसे निष्ठावान होना चाहिए और अपने आस-पास के लोगों की खुबियों को पहचानने और उसे प्रोत्साहित करने का गुण भी उसमें होना चाहिए।

जब मैं विश्व आर्थिक मंच के लिए दावोस में था, तो मैंने सुना कि लोग एशिया को एक ‘उभरता बाजार’ कह रहे थे। मैंने तब कहा था कि अब एशिया को ऐसा नाम देना बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह महाद्वीप लोगों से बना है।
प्रेरक बनने के लिए नेता का बहुत करिश्माई या प्रतिभाशाली होना जरूरी नहीं है। बहुत से लोग अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण से ही दूसरों को प्रेरित कर देते हैं, जैसे महात्मा गांधी, जिन्होंने अपने असाधारण समर्पण से लाखों लोगों को प्रभावित किया। इसलिए मेरे हिसाब से एक लीडर में लिए तीन ‘आई’, इनसाइट (अंतर्दृष्टि), इंटीग्रिटी (निष्ठा) और इंस्पीरेशन (प्रेरणा) की जरूरत है। शायद इन सबका मतलब यह है कि उसमें तीसरी आंख हो!

 

आप बिजनेस लीडर्स के साथ ज्यादा काम करते हैं। आज के समय में यह क्षेत्र इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

 

सद्‌गुरु: कुछ सौ साल पहले तक धार्मिक नेतृत्व धरती पर सबसे प्रधान नेतृत्व था। मशीनों के आने के बाद, सैन्य नेतृत्व सबसे महत्वपूर्ण हो गया। पिछले सौ सालों में, लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया नेतृत्व सबसे प्रधान हो गया। 15 से 20 साल बाद, आर्थिक नेतृत्व की प्रधानता होगी। लेकिन अब तक, कारोबारी सिर्फ लाभ के बारे में सोचते रहे हैं। उनकी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण होती जा रही है कि अब वह सिर्फ कारोबार चलाने तक सीमित नहीं रह गई है, वे दरअसल देशों का निर्माण कर रहे हैं, एक दुनिया बना रहे हैं। इसलिए मेरा काम लगातार उन्हें यह याद दिलाना है कि अब उन्हें व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से ऊपर उठकर एक व्यापक अंतर्दृष्टि रखनी चाहिए। अर्थशास्त्र को और व्यापक होना चाहिए ताकि वह सबको समाहित कर सके।

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जब मैं विश्व आर्थिक मंच के लिए दावोस में था, तो मैंने सुना कि लोग एशिया को एक ‘उभरता बाजार’ कह रहे थे। मैंने तब कहा था कि अब एशिया को ऐसा नाम देना बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह महाद्वीप लोगों से बना है। अगर आप उसे एक बाजार के रूप में देखेंगे, तो आप यह सोचेंगे कि उसका शोषण कैसे करना है। लेकिन अगर आप उन्हें एक जनसमूह के रूप में देखेंगे और महसूस करेंगे, तो आप उनकी पूरी स्थिति को विकसित करने के बारे में सोचेंगे और उससे एक बाजार खुद ही विकसित होगा।

 

इन दिनों बहुत से बड़े कारोबारी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी जिसे कारपोरेट सोसल रिस्पॉन्सिबिलिटि (CSR) नाम दिया गया है, पर अधिक ध्यान दे रहे हैं और उसमें योगदान कर रहे हैं। क्या यह पर्याप्त है या यह सिर्फ पहला कदम है?

 

सद्‌गुरु: मैं लगातार CSR के खिलाफ बोलने के लिए बदनाम हूं, क्योंकि मेरे ख्याल से खुद कारोबार को ही सामाजिक रूप से जिम्मेदार होना चाहिए। सिर्फ आय का दो फीसदी देना काफी नहीं है, जो CSR में दिया जाता है। अगर आप अपने कारोबार में सभी को शामिल करके चलते हैं, तो आपको इस CSR फंड को अलग से रखने की जरूरत नहीं है। आपकी तिमाही बैलेंस शीट थोड़ी कम हो सकती है लेकिन आप अपने विकास की दर को बढ़ा सकते हैं। कारोबार का मतलब सिर्फ फायदा कमाना नहीं बल्कि विस्तार करना होता है। यही कारोबार को मजबूत बनाएगा और उसे एक मजबूत आधार देगा।

 

अच्छे नेता और महान नेता का अंतर

 

मान लीजिए कि मैं कोई कारपोरेट लीडर हूं जो अच्छा काम करना चाहता है, आप मुझे क्या सलाह देंगे?

सद्‌गुरु: जब मैं पहली बार विश्व आर्थिक मंच पर था, तो कुछ लोग नाराज से थे कि मैं एक आध्यात्मिक गुरु होते हुए किसी बिजनेस मीटिंग में क्या कर रहा हूं। उनमें से एक, किसी बड़ी कंप्यूटर हार्डवेयर कंपनी के सीईओ थे। मैंने उनसे पूछा कि वह क्या करते हैं। उन्होंने कहा, ‘हम कंप्यूटर बनाते हैं।’ तो मैंने उनसे कहा, ‘चाहे आप कंप्यूटर बनाएं या सेफ्टी पिन, स्पेसक्राफ्ट बनाएं या कार, मूल रूप से आप मानव कल्याण के काम में लगे हैं और मेरा भी यही काम है’। एक कारपोरेट नेता को यह समझना चाहिए कि चाहे उसका काम किसी भी तरह का हो, मूल रूप से वह लोगों के लिए लाभदायक हो। उसे बस इसी जागरूकता के साथ काम करने की जरूरत है ताकि वह बहुत सारे लोगों के लिए लाभदायक हो। एक अफ्रीकी कहावत है: ‘जब कोई एक शेर को खिलाता है तो हर जीव को भोजन मिलता है।’ किसी कारोबारी को कोई स्कूल या अनाथालय खोलने की जरूरत नहीं है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। मेरा मतलब यह है कि वह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। इसलिए आपसे मेरा सवाल यह है कि क्या आप कोई काम अपनी संतुष्टि के लिए कर रहे हैं या दुनिया की समस्याओं के लिए हल ढूंढ रहे हैं? CSR व्यक्तिगत संतुष्टि के लिए अधिक लगता है।

 

कोई कैसे जान सकता है कि वह अपने जीवन में उस मुकाम पर पहुंच चुका है, जहां उसने पर्याप्त उपलब्धि हासिल कर ली है?

 

सद्‌गुरु: उन्हें साफ पता चल जाएगा, क्योंकि ऐसी स्थिति उनके मृत्यु के साथ आएगी। मानव जीवन में पर्याप्त पा लेने या पर्याप्त उपलब्धि हासिल करने जैसा कुछ नहीं होता।

उसे बस इसी जागरूकता के साथ काम करने की जरूरत है ताकि वह बहुत सारे लोगों के लिए लाभदायक हो। एक अफ्रीकी कहावत है: ‘जब कोई एक शेर को खिलाता है तो हर जीव को भोजन मिलता है।’ किसी कारोबारी को कोई स्कूल या अनाथालय खोलने की जरूरत नहीं है।
हो सकता है कि आप अपनी संपत्ति के बारे में ऐसा कह सकें: ‘हां, मेरे पास एक बढ़िया घर है और यह मेरे लिए काफी है।’ लेकिन जीवन एक अंतहीन संभावना है। सवाल बस यह है कि कोई चीज आपको चला रही है या आप अपने जीवन को चला रहे हैं?

इच्छाएं लोगों को चलाती हैं - संपत्ति की इच्छा, कामयाबी की इच्छा, पहचान पाने की इच्छा। अगर आज आप एक नए स्मार्टफोन की इच्छा रखते हैं, तो कल आप कुछ और चाहेंगे। अगर मैं आपको पूरी पृथ्वी दे दूं और आपको यहां की रानी बना दूं, तो क्या आप संतुष्ट होंगी? नहीं, तब आपको चांद और तारों की चाह होगी। इसीलिए अपने अंदर की ओर मुड़ना बहुत महत्वपूर्ण है। फिर आप अधिक जागरूकता के साथ काम करेंगे। अभी दुनिया किसी न किसी चीज से मजबूर हो कर काम कर रही है और हमारी समस्या यही है।