सदगुरु: अधिकांश लोगों के जीवन की गुणवत्ता अधिकतर इस बात से तय होती है कि उनके जीवन में दूसरों के साथ उनके संबंधों की गुणवत्ता क्या है? जब यह बात आपके जीवन में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है तो इस पर विचार करना ज़रूरी है कि किसी संबंध का क्या आधार होता है? संबंध अलग-अलग स्तर पर बनते हैं। विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अलग-अलग प्रकार के संबंध होते हैं। ये आवश्यकतायें, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, सामाजिक, आर्थिक या राजनैतिक - किसी भी प्रकार की हो सकती हैं।

यह जीवन अपने आप में एक पूर्ण इकाई है - तो यह अपूर्णता का अनुभव क्यों करता है? यह एक दूसरे जीवन के साथ भागीदारी करके अपने आप को पूर्ण करने का प्रयत्न क्यों करता है?

संबंध की प्रकृति कुछ भी हो, उसका प्रकार कुछ भी हो, मूल पहलू यही होता है कि आप किसी आवश्यकता को पूर्ण करना चाहते हैं। "नहीं, मुझे कुछ भी नहीं चाहिये, मैं सिर्फ देना चाहता हूँ!" पर देना भी एक वैसी ही आवश्यकता है, जैसी प्राप्त करना। "मैं किसी को कुछ देना चाहता हूँ," यह उतनी ही आवश्यकता है जितनी, "मुझे कुछ चाहिये।" यह आवश्यकता ही है। आवश्यकतायें विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं और उसी प्रकार से संबंध भी अलग-अलग होते हैं।

मनुष्यों में आवश्यकतायें इसलिए उठी हैं क्योंकि लोगों में एक प्रकार की अपूर्णता है और लोग स्वयं में एक खास प्रकार की पूर्णता लाने के लिये संबंध बना रहे हैं। जब अपने किसी प्रिय व्यक्ति के साथ आपका संबंध होता है तो आप एक प्रकार की पूर्णता का अनुभव करते हैं। जब ऐसा नहीं होता तो आपको अपूर्णता का अनुभव होता है। यह ऐसा क्यों है? यह जीवन अपने आप में एक पूर्ण इकाई है - तो यह अपूर्णता का अनुभव क्यों करता है? यह एक दूसरे जीवन के साथ भागीदारी करके अपने आप को पूर्ण करने का प्रयत्न क्यों करता है? मूल कारण यह है कि हमने इस जीवन को पूर्ण गहराई में और उसके सभी आयामों में नहीं खोजा है, यद्यपि इनका आधार यही है। संबंधों की प्रक्रिया जटिल होती है।

अपेक्षाओं का स्रोत

जहाँ कोई संबंध होता है, वहाँ कोई न कोई अपेक्षा जरूर होती है। अधिकतर लोग इतनी अधिक और ऐसी अपेक्षायें रखते हैं जो इस धरती पर कोई भी पूरी नहीं कर सकता। विशेषकर एक स्त्री-पुरुष के संबंध में अपेक्षायें इतनी होती हैं कि आप चाहे किसी देवी या देवता से भी विवाह कर लें तो वे भी उन्हें पूरा नहीं कर पायेंगे। जब आप अपेक्षाओं को अथवा उनके स्रोतों को नहीं समझ पाते तो आप उन अपेक्षाओं को पूरी भी नहीं कर सकते। पर, यदि आप समझ जायें कि उन अपेक्षाओं का स्रोत क्या है तो आप एक सुंदर संबंध बना सकते हैं।

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अगर आप अपनी प्रकृति से ही प्रसन्न हैं, तो संबंध एक साधन बन जायेगा, जिसके माध्यम से आप अपनी प्रसन्नता अभिव्यक्त करेंगे, खोजेंगे नहीं!

मूलतः आप कोई संबंध क्यों बनाना चाहते हैं? क्योंकि, आपको लगता है कि अगर आपके जीवन में किसी प्रकार का कोई भी संबंध नहीं है तो आप अवसाद ग्रस्त हो जायेंगे। आप संबंध इसलिये बना रहे हैं क्योंकि आप खुश रहना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में, आप दूसरे व्यक्ति का उपयोग अपनी खुशी के स्रोत के रूप में करना चाहते हैं। अगर आप अपनी प्रकृति से ही प्रसन्न हैं तो संबंध एक साधन बन जायेगा, जिसके माध्यम से आप अपनी प्रसन्नता अभिव्यक्त करेंगे, खोजेंगे नहीं! आप यदि किसी दूसरे को निचोड़कर अपनी खुशी प्राप्त करना चाहते हैं और वह व्यक्ति भी आपको निचोड़कर अपनी खुशी प्राप्त करना चाहता है तो कुछ समय बाद, यह एक पीड़ादायक संबंध बन जायेगा। शुरुआत में, हो सकता है कि जब तक ज़रूरतें पूरी हो रही हों, यह कुछ ठीक चले। परंतु, यदि आप संबंध इसलिये बना रहे हैं क्योंकि आप अपनी प्रसन्नता व्यक्त करना चाहते हैं, तो कोई भी आपके विरुद्ध शिकायत नहीं करेगा क्योंकि आप अपनी प्रसन्नता स्वयं व्यक्त कर रहे हैं, दूसरों से प्राप्त नहीं कर रहे हैं।

अगर आपका जीवन आपकी प्रसन्नता व्यक्त करने का माध्यम बन जाता है, प्रसन्नता प्राप्त करने की प्रक्रिया नहीं, तो संबंध स्वाभविक रूप से शानदार होंगे। आप लाखों संबंध रख सकते हैं और उन्हें अच्छी तरह से रखेंगे। किसी दूसरे की अपेक्षायें पूरी करने का प्रयत्न करने के सर्कस की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि यदि आप स्वयं ही प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं तो वे आपके साथ होना चाहेंगे। अगर संबंधों को सभी स्तरों पर कारगर होना है तो आपके जीवन को प्रसन्नता के पीछे भागने की प्रक्रिया से बदलकर प्रसन्नता को व्यक्त करने की प्रक्रिया बनाना ही वह चीज है, जो होनी चाहिये, क्योंकि संबंध कई प्रकार के होते हैं।

कई प्रकार के संबंध

आपका शरीर इस तरह से बना है कि वह अब भी एक ऐसी दशा में है कि उसे एक संबंध की आवश्यकता होती है। आपका मन भी इस तरह से बना है कि उसे भी एक संबंध की आवश्यकता है। आपकी भावनायें इस तरह से हैं कि उन्हें भी एक संबंध की आवश्यकता है। अधिक गहरे स्तर पर आपकी उर्जायें भी इस तरह की हैं कि आपको उस स्तर पर भी एक संबंध की ज़रूरत है। यदि आपका शरीर किसी संबंध की खोज में कहीं जाता है तो हम इसे शारीरिक संबंधों की मांग कहते हैं। जब आपका मन संबंध खोजता है तो वह संग-साथ का संबंध है। भावनायें जब संबंध चाहती हैं तो वह प्रेम होता है और यदि आपकी उर्जायें संबंध की खोज में जाती हैं तो वह योग होता है।

जब आपके अंदर कोई विवशता नहीं होती और आपके द्वारा की गयी हर चीज सचेतन होती है, तो संबंध एक सच्चा आशीर्वाद होगा, बस चाहत या संघर्ष नहीं!

आप देखेंगे कि इन सब प्रयत्नों के साथ, चाहे वे शारीरिक संबंध हों, या मित्रता या प्रेम अथवा योग, आप किसी दूसरे के साथ एक होने का प्रयत्न कर रहे हैं, क्योंकि, किसी भी तरह से, आप जो हैं, वह पर्याप्त नहीं है। आप किसी के साथ एक कैसे हो सकते हैं? शारीरिक रूप से आपने प्रयत्न किया है। ऐसा लगा कि आप ऐसा कर ही लेंगे पर यह असफल हो जाता है। आपने मानसिक रूप से भी प्रयत्न किया है, कई बार आपको लगता है कि ऐसा हो गया है पर आप जानते हैं कि दो मन कभी एक नहीं हो सकते। भावनात्मक रूप भी आपने सोचा कि आप इस संबंध में सफल हो गये हैं, पर दूरियाँ जल्दी ही बन जाती हैं।

तो फिर कौन सा तरीका है जिससे किसी के साथ एक होने की लालसा पूर्ण हो? इसको देखने के कई तरीके हैं। आपने ध्यान दिया होगा कि आपके जीवन में कई बार, मान लीजिये, आप बहुत आनंदपूर्ण, प्रेमपूर्ण या उल्लासित हैं और आपकी जीवन उर्जायें प्रचुरता का अनुभव कर रही हैं, तो आपको स्वयं का, एक खास तरह का विस्तार होता महसूस होता है। यह विस्तार, इसका क्या अर्थ है? पहले तो, वह क्या है जिसे आप 'मैं' या 'स्वयं' कहते हैं? यह जानने का आधार क्या है कि यह 'मैं' हूँ और वह 'मैं नहीं' हूँ? वह एक प्रकार की संवेदना है। है न? आपकी संवेदनाओं की सीमा के अंदर जो भी है वह आप स्वयं हैं और इन सीमाओं के बाहर जो भी है, वह दूसरा है। और, 'दूसरा' हमेशा ही मुसीबत होता है! आप इस मुसीबत का अनुभव करना नहीं चाहते। आप मानवता के कम से कम एक छोटे हिस्से को अपने एक हिस्से के रूप में अनुभव करना चाहते हैं। किसी चीज़ को या किसी दूसरे को अपने जीवन का एक भाग बना लेने की लालसा ही संबंध कहलाती है। अगर आप दूसरे को अपने आप में शामिल कर लें तो नर्क भी स्वर्ग बन सकता है। उस स्वर्ग का अनुभव करने की, अपने जीवन में स्वर्ग के उस टुकड़े को लाने की लालसा ही संबंध बनाने की अधीरता है।

आपके किसी भी संबंध के पीछे जो भी लालसा है, चाहे आप शरीर के माध्यम से प्रयत्न कर रहे हैं, या मन या भावना के माध्यम से, आप सिर्फ लालसा करेंगे, आप कभी भी उस एकत्व का अनुभव नहीं करेंगे। आप एकत्व के पलों को जानेंगे, पर वास्तव में ये कभी नहीं होगा। आप अगर अपने आसपास के इस संपूर्ण जीवन को अपने एक हिस्से के रूप में अनुभव करते हैं - योग इस एकत्व को अनुभव करने का साधन है – तब आप जिस तरह से होते हैं, वह बिल्कुल ही अलग होता है। जब ऐसा होगा, तब संबंध दूसरे की आवश्यकता का ध्यान रखने का सिर्फ एक तरीका बन जायेगा, स्वयं की आवश्यकता का नहीं, क्योंकि अब आपकी स्वयं की कोई आवश्यकता नहीं होगी। जब आपके अंदर कोई विवशता नहीं होती और आपके द्वारा की गयी हर चीज सचेतन होती है, तो संबंध एक सच्चा आशीर्वाद होगा, बस चाहत या संघर्ष नहीं!

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Photo by Eric Ward on Unsplash