Sadhguruसांपों का अध्‍यात्‍म रहस्यवाद और सांपों के संबंध के बारे में। इस रहस्यमय प्राणी की शक्ति और खूबियों की यहां चर्चा कर रहे हैं सद्‌गुरु...

 


सद्‌गुरु: आध्यात्मिक रहस्‍यों और सांपों को कभी अलग नहीं किया जा सकता। दुनिया में जहां कहीं आध्यात्मिक रहस्य की खोजबीन की गई है या उसका अनुभव किया गया है – जैसे, मेसोपोटामिया, क्रेट, इजिप्ट, कंबोडिया, वियतनाम और जाहिर है भारत की प्राचीन संस्कृतियों में – वहां सांप हमेशा मौजूद रहे हैं। ऐसा कोई भारतीय मंदिर नहीं है जहां सांप न हो। इसका एक पहलू है कि इसे एक प्रतीक के रूप में लिया जाता है, योग में कुंडली मार कर बैठा हुआ सांप कुंडलिनी का प्रतीक माना जाता है। इसे प्रतीक माने जाने का कारण यह है कि चेतना और क्षमता के स्‍तर पर आकाशीय प्राणियों (जैसे, यक्ष, गंधर्व) को इंसानों से बेहतर माना जाता है। जब भी इन प्राणियों ने अस्तित्व के इस आयाम में प्रवेश किया, तो उन्होंने हमेशा एक सांप का रूप धारण किया। पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राचीन और पौराणिक कथाओं में इसकी चर्चा की गई है। भारत में शिव के नागभूषण होने की कहानी से ले कर ऐसी अनगिनत कहानियां हैं।

लगभग चार हजार साल पहले मेसोपोटामिया की एक देवी को अर्पित एक पात्र पर आलिंगन में बंधे दो सांपों का चित्र।

आध्यात्मिक रहस्यवाद, बोध का एक खास पहलू है और सांप में यह क्षमता देखने को मिलती है। इसीलिए शिव के माथे पर तीसरी आंख के खुलने को, जिसको बोध की एक उंची अवस्‍था मानी जाती है, सांप की मौजूदगी द्वारा दिखाया जाता है। सांप आम तौर पर जमीन पर रेंगता है, लेकिन शिव ने इसे अपने सिर के ऊपर रखा, इससे वे यह बता रहे हैं कि “कुछ मामलों में सांप मुझसे बेहतर है।” किसी-न-किसी तरह से हरेक संस्कृति ने इस बात को मानी है। हमारी संस्कृति में सांपों और उनकी भूमिका को ले कर कई कहानियां लिखी गई हैं।

पुराणों में नरक में नागलोक होने की बात कही गई है – सांपों के एक पूरा समाज की कल्पना है, जिसमें सिर्फ सांप ही नहीं बल्कि सर्पवंश के मनुष्य भी शामिल हैं। उनको नागा कहा जाता है; उन्होंने इस राष्ट्र की संस्कृति और दूसरी कई संस्कृतियों को संवारने का काम किया है। इतिहास में झांकने पर मालूम होता है कि कम्बोडिया में अंगकोर के महान मंदिर नागाओं की संतान ने ही बनाए हैं। वे भारत से गए, वहां के स्थानीय लोगों से शादी की और एक राज्य स्थापित किया। नागाओं में राजकाज रानियों के हाथ में होता था, राजा के हाथ में नहीं, क्योंकि वे मातृ सत्ता वाले परिवार थे। बाद में, भारत के एक ब्राह्मण राजा कौंडिन्य ने वहां जा कर नागाओं की रानी को हरा दिया।

ऐसे इंसान अभी भी मौजूद हैं, जिनका सांपों से बड़ा गहरा नाता है। मैं भी उनमें से एक हूं – मैं नागा नहीं हूं, लेकिन मेरे जीवन को सांपों से अलग नहीं किया जा सकता। मेरी जिंदगी के हर महत्‍वपूर्ण वक्त पर सांप हमेशा मौजूद रहे हैं।

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अगर कोई इंसान ध्यानशील हो जाता है, तो उसकी तरफ खिंचने वाला पहला प्राणी सांप ही होता है।

बहरा होता है, पर सबकुछ भांप लेता है

अगर कोई इंसान ध्यानशील हो जाता है, तो उसकी तरफ खिंचने वाला पहला प्राणी सांप ही होता है। इसीलिए चित्रों में साधु-संतों के इर्द-गिर्द आपको सांप नजर आते हैं। सांप की बोधशक्ति इतनी तेज होती है कि जिन पहलुओं को जानने के लिए इंसान बेचैन और बेताब रहता है, सांप उनको बड़ी आसानी से जान लेता है।

Saamp Sadhguru

ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा के समय जब हम विशुद्धि चक्र की प्राण-प्रतिष्ठा कर रहे थे, तब वहां चार सौ लोग इकट्ठा हुए थे और उन सबके बीच से किसी तरह रेंगता हुआ, एक सांप हमारे पास पहुंच जाता था। हमने जाने कितनी बार उसको उठा कर दूर जंगल में छोड़ा होगा, लेकिन बस आधा घंटा होते-न-होते वह वापस चला आता था। वह प्राण-प्रतिष्ठा से दूर नहीं रहना चाहता था।

सांप ही वह पहला प्राणी है, जिसको इस पृथ्वी पर होने वाले मामूली-से-मामूली बदलावों का अंदाजा हो जाता है, क्योंकि उसका सारा शरीर धरती से लगा होता है।

सांप ही वह पहला प्राणी है, जिसको इस पृथ्वी पर होने वाले मामूली-से-मामूली बदलावों का अंदाजा हो जाता है, क्योंकि उसका सारा शरीर धरती से लगा होता है। उसके कान नहीं होते; वह बिलकुल बहरा होता है, इसलिए वह अपने पूरे शरीर को कान की तरह इस्तेमाल करता है। सचमुच में वह अपने कान धरती से लगाए होता है। मान लीजिए कैलिफोर्निया में भूकंप आने वाला है, तो वेलियंगिरि पहाड़ों के सांपों को 30-40 दिन पहले ही इसकी जानकारी हो जाती है। हमारी धरती को ले कर सांप की बोधशक्ति इतनी ज्यादा तेज है।

 बाएं: इस 2000 साल पुरानी कलाकृति में इजिप्शियन देवी आइसिस को एक सांप के रूप में दिखाया गया है। दाएं: लिंग भैरवी के द्वार के ऊपर दर्शाया गया सांप। 

संसार के तमाम क्षेत्रों – मध्य-पूर्व, उत्तर अफ्रीका, मेसोपोटामिया, दक्षिण एशिया, और मध्य यूरोप - की सारी देवियों को हमेशा सांपों के साथ ही दर्शाया जाता है। लिंग भैरवी में हर पूर्णिमा के दिन भक्तों के लिए ‘सर्प सेवा’ होती है। यहां दो सांप आलिंगन में चित्रित हैं। वे एक-दूसरे से उलझे हुए नहीं हैं। आलिंगन जुड़ाव के कारण होता है, जबकि उलझाव मजबूरी के कारण होता है। ये सांप एक खास आलिंगन और खास नृत्य में दर्शाए गए हैं ताकि हरेक की जिंदगी में ऐसा ही जुड़ाव लाया जा सके। महीने में एक बार चींटियों के टीले से निकाली गई मिट्टी कुछ दूसरे पदार्थों के साथ मिला कर इन सांपों में भर दी जाती है। यह इंसान की बोधशक्ति को बढ़ाने के लिए सांपों के इस्तेमाल का एक तरीका है।

लिंग भैरवी देवी परिसर में सर्पसेवा 

सर्पसेवा

इसमें देवी मंदिर में प्रतिष्ठित आपस में लिपटे दो दिव्य साँपों की पूजा की जाती है। सर्प सेवा किसी संबंध में बंधे किन्हीं भी दो व्यक्तियों द्वारा किसी भी दिन की जा सकती है। शक्तिशाली नाग मंत्रों के साथ की जाने वाली इस पूजा से व्यक्ति के आपसी संबंधों में उलझनें और द्वंद्व दूर होते हैं और उनमें मजबूती और मधुरता आती है। यह सेवा गर्भवती महिलाओं के लिए और संतान के इच्छुक लोगों के लिए विशेष सहायक है, क्योंकि यह मजबूत शारीरिक गठन में मदद करती है। अगर गर्भावस्था के दौरान महिला हर महीने सर्प सेवा करती है तो यह उसके व उसके बच्चे के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती है।

Ningizzida (Sketch of inter-twined snakes)
Isis-Thermoutis_Louvre_E25950 (Green snake)