हर मनुष्य अलग-अलग स्तरों पर किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है। क्या हम मानसिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि अनेक प्रकार की समस्याओं को इन्हीं स्तरों पर सुधार सकते हैं? या फिर एक बुनियादी हल खोजना होगा?

बात तब की है जब हम स्कूल में पढ़ा करते थे। महाशिवरात्रि के अवसर पर साधकों की प्रभातफेरी निकलती थी। उनके द्वारा गाये शिव की भक्ति के गीत हमें मंत्रमुग्ध कर देते थे। साधकों की उस दिव्य मंडली के दर्शन हेतु हम घर से बाहर निकल सड़क पर भागते थे। साथ में हमारा कुत्ता भी दौड़ता और मेरे पास खड़ा होकर उनके ऊपर जोर-जोर से भौंकने लगता था। मैं खीजकर उसकी तरफ  देखती और बोल पड़ती, ‘तुम्हारी समस्या क्या है’?

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कुत्ते की समस्या पर आगे बात करने से पहले आइए कुछ और समस्याओं पर एक नजर डालते हैं। कुछ दिन पहले की बात है, मेरी पड़ोसन अपने छोटे बेटे को लेकर मेरे घर आईं। उनका बेटा फूट-फूट कर रो रहा था। मैंने पूछा, ‘बेटे, क्या हुआ, क्यों रो रहे हो’? उसने कहा, ‘भैया, अपनी क्लास में फ स्र्ट आया है, उसे प्रिंसिपल सर ने एक पेन इनाम दिया, और मुझे कुछ नहीं मिला।’ तो क्या उस बच्चे की समस्या इनाम का नहीं मिलना था, या अपनी कक्षा में अव्वल न आ पाना था? या समस्या की वजह कुछ और थी?

बात सिर्फ  जानवर या एक छोटे बच्चे की ही नहीं है। सिन्हाजी और शर्माजी दिल्ली में एक ही दफ्तर में काम करते हैं। दोनों के लड़कों ने आईआईटी की प्रवेश-परीक्षा दी थी। सिन्हाजी के लड़के को आईआईटी दिल्ली में दाखिला मिल गया और शर्माजी के बच्चे को कहीं दाखिला नहीं मिला। इसको लेकर शर्माजी बहुत परेशान हो गए। उनकी परेशानी कुछ इस कदर बढ़ गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। कई दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद वे घर लौटे।

अगर आप नजर उठा कर देखें तो पाएंगे कि आपके आस-पास लगभग हर कोई और कदाचित् आप भी हर दिन, हर घड़ी किसी न किसी समस्या से जूझ रहे हैं। तो क्या जीवन ही समस्याएं लेकर आता है, या फि र समस्याएं हमने पैदा की हैं?

अगर उस कुत्ते की या मेरे पड़ोसी के बच्चे की समस्या पर गौर करें तो आपको लगेगा कि उनकी समस्याएं जुड़ी हैं उनके विकास से। कुत्ते में क्रमिक विकास की प्रक्रिया अभी अधूरी है, तो बच्चे की बुद्धि आपको अल्प- विकसित लगेगी। तो क्या हम बड़ों की समस्याओं की वजह उनसे भिन्न है? आखिर समस्याएं हैं क्यों? हमारी अपरिपक्वता व अक्षमताएं ही समस्याओं का रूप ले लेती हैं। हम कहीं न कहीं शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक स्तर पर अधूरे होते हैं। हम अधूरे होते हैं, क्योंकि इन पहलुओं पर हम भरपूर ध्यान नहीं देते, हमारा सारा ध्यान बाहरी चीजों से अपने जीवन को पूरा करने में लगा रहता है। परिणाम स्वरूप, परिस्थितियों को ठीक ढंग से संभालने में हम सक्षम नहीं होते और हमारी यही अक्षमता एक दिन विकराल समस्या का रूप ले लेती है। अगर हम विश्व की कुछ विकराल समस्याओं पर नजर डालें, जैसे कि ग्लोबल वार्मिंग, तेजी से गिरता जल का स्तर, जनसंख्या विस्फोट, जानलेवा बीमारियों का खतरा... तो पाएंगे कि अतीत में बिना किसी समग्र दृष्टि के क्षणिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए जल्दीबाजी में उठाए गए कदमों का ये नतीजा है।

तो क्या हम इन समस्याओं के साथ ही जीने को अभिशप्त हैं? या कोई समाधान भी है हमारी अकथ, अथाह, अनंत समस्याओं का? समाधान है, बिल्कुल है और यहीं पर है, इसके लिए आपको स्वर्ग की ओर निहारने की जरुरत भी नहीं है। अगर हम वाकई समाधान चाहते हैं तो हमें अपनी चेतना पर काम करना होगा। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक पहलुओं के बीच सामंजस्य बैठाए बिना हम चेतना में विकसित नहीं हो सकते। हमें अपनी पूर्ण क्षमता और संभावनाओं में विकसित होना होगा। समग्र चेतना में खिला इंसान खुद ही समाधान बन जाता है। एक ऐसा इंसान ही संपूर्ण सृष्टि के साथ सामंजस्य में होता है, उसके अंदर एक तारतम्यता होती है, एक समग्र दृष्टि होती है। समग्र दृष्टि से उठाए गए कदम कभी समस्या नहीं बनते, वे हमेशा धरती और इसके प्राणियों के हित में होते हैं और मानवता के लिए समाधान बन जाते हैं।

मानव जाति की समस्याओं की विवेचना के साथ उनके संभव समाधानों को हमने इस अंक में समेटने और सहेजने की कोशिश की है। उम्मीद है हमारी यह छोटी सी कोशिश आपको जीवन की हर समस्या से उबरने में मदद करेगी। खुशहाल जीवन की कामनाओं और होली की शुभकामनाओं के साथ समर्पित है आपको यह अंक।

- डॉ सरस

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