सद्गुरुघर-परिवार में कलह, विवाद, लड़ाई-झगड़ा आम बात है। लेकिन कैसे संभालें ऐसे हालात को,क्या ऐसी किसी परिस्थिति का फायदा हम जागरूक होने के लिए उठा सकते हैं?आइए जानते हैं  कैसे

 

जिज्ञासु:

सद्‌गुरु , जब अपने परिवार में लड़ाई-झगड़े और मतभेद हों, जैसे अपने माता-पिता या भाई-बहनों से – चाहे वे किसी भी वजह से हों, तो फिर संबंधों को मधुर कैसे बनाया जा सकता है?

सद्‌गुरु : 

आपका प्रश्न माता-पिता और भाई-बहनों के बारे में है – इसलिए सबसे पहले आपको यह समझना जरुरी है कि इन लोगों का चुनाव आप नहीं कर सकते। अगर यह पति पत्नी के बारे में होता तो आपके पास चुनने का विकल्प होता।

अपने भीतर मौजूद सीमाओं को समझने के लिए परिवार एक अच्छी जगह है। परिवार में रहकर आप अपनी ट्रेनिंग कर सकते हैं।

परिवार के साथ रह कर आप कुछ लोगों के साथ हमेशा जुड़े रहते हैं, जिसका मतलब है, आप जो कुछ भी करते हैं, उसका एक दूसरे पर असर जरुर पड़ता है।

ऐसा हो सकता है कि उनके कुछ काम या आदतें आपको पसंद न हो, फिर भी आपको उनके साथ रहना पड़ता है।यह आपके फेसबुक परिवार की तरह नहीं है जिसमें आपने 10,000 लोगों को जोड़ तो रखा है, लेकिन अगर आप किसी को पसंद नहीं करते, तो आप एक क्लिक से उसे बाहर कर सकते हैं। अपनी पसंद-नापसंद से ऊपर उठने के लिए परिवार बहुत ही कारगार साबित हो सकता है।

अपनी पसंद-नापसंद से ऊपर उठने के लिए परिवार बहुत ही कारगर साबित हो सकता है। जब आप पसंद और नापसंद में अटके रहते हैं, तो चेतन होने का सवाल ही नहीं उठता। आप जिस पल किसी चीज को पसंद या नापसंद करते हैं, आपका व्यवहार कुदरती रूप से आपके लिए एक बंधन बन जाता है।
आपकी पसंद-नापसंद आपको मजबूर बना देती हैं। जब आप पसंद और नापसंद में अटके रहते हैं, तो चेतन होने का सवाल ही नहीं उठता। आप जिस पल किसी चीज को पसंद या नापसंद करते हैं, आपका व्यवहार कुदरती रूप से आपके लिए एक बंधन बन जाता है – जो आप पसंद करते हैं, उसकी तारीफ करने और जिसे आप पसंद नहीं करते, उसकी आलोचना करने के लिए आप मजबूर हो जाते हैं।

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चेतन या जागरूक होना

परिवार एक खोल की तरह भी होता है, जिसके भीतर, चाहे आपको पसंद हो या नहीं, लोगों के साथ एक निश्चित समय तक आपको जीवन बिताना होता है।

परिवार एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमे रह कर आपको लोगों के साथ एक निश्चित समय तक जीवन बिताना होता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप इसे पसंद करते हैं या नहीं।

अब चाहे आप इसे एक कड़वा अनुभव बना लें, या अपनी पसंद और नापसंद से परे जाना सीख लें, यह आप पर निर्भर है। मान लीजिए, आपको अपने पति की कुछ बातें पसंद नहीं हैं। अगर कुछ समय बाद, आप कहती हैं, ‘यह तो ऐसे ही हैं – कोई बात नहीं,’ तो इसका मतलब है कि आपके पति नहीं बदले हैं, मगर आप एक खास तरह के व्यवहार या उनकी जो चीज आपको अखरती थी, उसके लिए आप अपनी नापसंदगी से ऊपर उठ गई हैं।

परिवार फेसबुक  की तरह नहीं है जिसमें आपने 10,000 लोगों को जोड़ तो रखा है, लेकिन अगर आप किसी को पसंद नहीं करते, तो आप एक क्लिक से उसे बाहर कर सकते हैं।
अगर आप इसके लिए कड़वाहट पाल लेती हैं या यह कहते हुए हार मान लेती हैं कि ‘मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है – मुझे ये चीजें बर्दाश्त करनी ही होंगी’, तो परिवार के लोगों के साथ रहने की सारी पीड़ा और संघर्ष का कोई फल नहीं मिलेगा। लेकिन अगर आप ऐसा कहते हैं, ‘हां, ये लोग ऐसे ही हैं, मगर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे इन लोगों के साथ आनंदपूर्वक रहना है,’ तो आप पूरी चेतनता के साथ अपनी नापसंद से परे चली जाती हैं।

जब आप अपनी पसंद और नापसंद से ऊपर उठ जाते हैं, तो अनजाने में आप चेतन हो जाते हैं। अनजाने में, आप आध्यात्मिक हो जाते हैं, जो आध्यात्मिक होने का सबसे अच्छा तरीका है। आप यह नहीं कहते कि ‘मैं आध्यात्मिक मार्ग पर चलने जा रहा हूं’ बल्कि एक जीवन के रूप में आप इतने चेतन हो जाते हैं कि अपनी सीमाओं, अपनी पसंद-नापसंद से ऊपर उठ जाते हैं और ‘आध्यात्मिक’ शब्द से जुडे बिना आध्यात्मिक हो जाते हैं।

लोग मौसम को देखकर कहते हैं, ‘अरे, कितना खुशनुमा दिन है’ या ‘बहुत खराब दिन है’। सिर्फ बादलों के कारण कोई दिन खराब नहीं हो सकता। मौसम की बात प्रकृति पर छोड़ दीजिए। चाहे कोई भी हालात हों, उसे अच्छा दिन बनाना आप पर निर्भर करता है।
आध्यात्मिक होने का सबसे अच्छा तरीका पूरी चेतनता में उस सीमा तक विकास करना है, जहां आप मजबूर होकर कोई प्रतिक्रिया न करें। इस तरह की तैयारी के लिए परिवार एक अच्छी जगह है। आप हमेशा के लिए इसमें फंसे नहीं रहते। चाहे आप किसी भी तरह के परिवार के साथ रहते हों, यह एक निश्चित समय के लिए ही होता है। आपको इस समय का लाभ उठाते हुए अपनी पसंद और नापसंद से ऊपर उठना चाहिए।

अगर आपके आस-पास के लोगों के साथ आपके मतभेद होते रहते हैं, तो आप बहुत अच्छी स्थिति में हैं। मैं हमेशा आश्रम के लोगों से कहता हूं, ‘किसी ऐसे इंसान को चुनें, जिसे आप बर्दाश्त नहीं कर सकते और उनके साथ आनंदपूर्वक काम करना सीखें। यह आपके लिए बहुत ही लाभदायक होगा।’ अगर आप अपने किसी पसंदीदा व्यक्ति के साथ रहने का फैसला करते हैं, तो यह आपके लिए एक बंधन बन जाएगा - क्योंकि आप केवल ऐसे ही लोगों के साथ रहना पसंद करेंगे। परिवार कोई समस्या नहीं है। समस्या यह है कि आपको जो पसंद है, आप उसी के साथ रहना चाहते हैं। आपको जो पसंद है, उसे ही मत चुनिए। यह सोचिए कि जो मौजूद है, उसे बढ़िया कैसे बनाया जा सकता है। आपको जो मिलता है, वह आपके हाथ में नहीं है, लेकिन उससे आप क्या बनाते हैं, यह आपके ऊपर है।

लोग मौसम को देखकर कहते हैं, ‘अरे, कितना खुशनुमा दिन है’ या ‘बहुत खराब दिन है’। सिर्फ बादलों के कारण कोई दिन खराब नहीं हो सकता। मौसम की बात प्रकृति पर छोड़ दीजिए। एक दिन धूप, दूसरे दिन बादल, एक दिन बारिश, दूसरे दिन बर्फबारी – सब ठीक है। अगर मौसम में धूप खिली है, तो आप नंगे बदन निकलें, अगर बारिश हो रही है, तो रेनकोट लेकर जाएं, अगर बर्फ पड़ रही है, तो स्नोबोर्ड लेकर जाएं। चाहे कोई भी हालात हों, उसे अच्छा दिन बनाना आप पर निर्भर करता है।

इसी तरह, इस बात की चिंता न करें कि अभी आपके आस-पास कौन बैठा है। आप किसी भी इंसान के साथ बैठने की प्रक्रिया को बहुत बढ़िया बना सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि आपको किसी के साथ हमेशा के लिए बैठना है। हर कोई आता-जाता रहता है। या तो वे आते और जाते हैं, या आप आते और जाते हैं। यहां जो भी है, जो कुछ भी है – फिलहाल उससे सबसे बेहतर लाभ उठाएं। अगर आपके पास दूसरे विकल्प हैं, तो आप चुनाव कर सकते हैं, मगर महत्वपूर्ण यह है कि आप खुशी-खुशी चुनाव करें। यह आपका जागरूकता से किया गया चयन होना चाहिए, मजबूरी में किया गया नहीं। क्योंकि आप हमेशा एक ही जगह नहीं रह सकते, आपको कहीं और जाना ही होगा। अगर आप स्थिति के अनुसार चलना नहीं सीख पाएंगे, तो आप कहीं भी खुश नहीं रह पाएंगे, किसी भी परिस्थिति में नहीं चल पाएंगे।

नतीजों को मापना

कई बार आपके मन में यह सवाल आता होगा कि आखिर यह कैसे पता चलेगा कि यह पूरी आध्यात्मिक प्रक्रिया कारगर है या नहीं? यह पता चलेगा केवल नतीजों से। अगर उन्हीं लोगों के साथ रहते हुए ऐसा होने लगे कि अब आप पहले से अधिक अच्छे मूड में सुबह उठते हैं, उन्हीं लोगों के साथ आप थोड़े अधिक सहज हैं, अब उनसे आपको परेशानी नहीं होती जैसी पहले होती थी – तो इसका मतलब है कि आप आगे बढ़ रहे हैं। हर कहीं, तरक्की को नतीजों से मापा जाता है – ऐसा ही आध्यात्मिक प्रक्रिया पर भी लागू होता है ।

एक दिन ऐसा हुआ – स्वर्ग के दरवाजे पर लोग कतार में खड़े थे। सेंट पीटर हर किसी के खातों को जांच कर उसे अंदर आने दे रहे थे। वहां इटली के वेगास शहर का एक टैक्सी ड्राइवर भी था, जिसने चमकीली कमीज पहनी हुई थी, आंखों पर स्टाइलिश चश्मा और उंगलियों में सिगरेट झूल रहा था।

आपको नतीजों से ही किसी चीज का आकलन करना चाहिए। यह जानने के लिए कि आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया कारगर है या नहीं, बस यह देखिए कि बाहरी हालात जो भी हों, क्या आप अपने अंदर टकराव में हैं या नहीं? अगर आपके अंदर टकराव या संघर्ष है, तो आपको मेहनत करने की जरूरत है।
उसके ठीक पीछे एक बिशप थे।वो उस टैक्सी ड्राइवर को घृणा से देखते हुए सोचने लगा, ‘यह स्वर्ग की इस कतार में आखिर आया ही कैसे?’ मगर आप जानते हैं, ईश्वर के तरीके बड़े ही विचित्र होते हैं। जब उस टैक्सी ड्राइवर की बारी आई, तो उसने ईश्वर की इच्छा के आगे झुकते हुए कहा, ‘आप मुझे जहां चाहें भेज दें... क्या दिक्कत है?’ एक टैक्सी ड्राइवर होने के नाते उसे इसकी आदत थी, ग्राहक जहां जाना चाहता था, वह जाता था। एक टैक्सी ड्राइवर अपनी मंजिल नहीं चुनता। उसके सारे खाते जांचे गए। फिर पीटर ने एक बड़ी मुस्कुराहट के साथ उसका स्वागत किया और उसे एक बढ़िया सिल्क का लबादा पहनने को दिया। दो खूबसूरत परियां आकर उसे स्वर्ग के अंदर ले गईं।

बिशप हैरानी से यह सब देख रहा था। जब उसकी बारी आई, तो पीटर ने उसके खाते देखे, उसका स्वागत किया, उसे एक मजदूर की पोशाक और झाड़ू देकर कहा, ‘जाकर 127 नं गलियारा साफ करो।’ बिशप परेशान हो गया, उससे रहा न गया और वह बोल पड़ा, ‘यह क्या है? इटली का यह टैक्सी ड्राइवर पापियों के शहर से आया है – मैं तो उस जगह का नाम तक जबान पर नहीं लाना चाहता – जहां उसने हर तरह के लोगों को गाड़ी में बिठाया होगा। उसे तो आपने सिल्क का लबादा और परियां दीं और स्वर्ग भेज दिया। मैं एक बिशप हूं, ईश्वर की सेवा करता रहा हूं तो मुझे आपने मजदूर के कपड़े, झाड़ू और गलियारा नं 127 दिया – मैं जानता हूं कि वह गलियारा कितना लंबा है। ऐसा क्यों?’ पीटर ने उसे देखा और बोले, ‘कृपया मेरी बात सुनिए। यह चर्च नहीं है, स्वर्ग है। यहां हम नतीजों से लोगों को आंकते हैं। जब आप अपने उपदेश देते थे, तो आम तौर पर लोग सो जाते थे। मगर जब वह ड्राइवर गाड़ी चलाता था, तो हर कोई कहता था, ‘हे भगवान! हे भगवान! हे भगवान!’’

आपको नतीजों से ही किसी चीज का आकलन करना चाहिए। यह जानने के लिए कि आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया कारगर है या नहीं, बस यह देखिए कि बाहरी हालात जो भी हों, क्या आप अपने अंदर टकराव में हैं या नहीं? अगर आपके अंदर टकराव या संघर्ष है, तो आपको मेहनत करने की जरूरत है। आपके साथ शारीरिक रूप से मारपीट नहीं की गई है। वे बस बातें सुनाते हैं। वे जो भी काम सबसे बेहतर करना जानते हैं, करते हैं। आपको जो सबसे बेहतर आता है, आपको करना चाहिए। अगर आपको अपना कम अच्छे से करना आता है – तो आप अपने भीतर एक अच्छी स्थिति बना कर रखेंगे। अगर आप खुद को अच्छी तरह रखेंगे, तो आप उन्हें भी बदल सकते हैं। मगर फिलहाल मैं उस हद तक नहीं जाऊंगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई आप पर चिल्ला रहा है या आपको गालियां दे रहा है। अगर आप चाहें, तो आप अपने लिए एक नई डिक्शनरी लिख सकते हैं। आप सभी गालियों को अच्छे और सुन्दर अर्थ दे सकते हैं। वैसे भी, आपको पता होना चाहिए कि वे अपनी तरफ से बेहतरीन बर्ताव कर रहे हैं। बदकिस्मती से उनका बेहतरीन बर्ताव कूड़ा की तरह हो सकता है, क्या करें। आप ऐसे लोगों से सहानुभूति ही जता सकते हैं।

कीचड़ से सुगंध

कई बार, सिर्फ आप नहीं – हममें से हर कोई ऐसे लोगों और हालात में फंसे होते हैं, जिनमें हम निश्चित रूप से नहीं होना चाहते। हम कहां पर हैं, यह कभी भी पूरी तरह हमारा चयन नहीं होता। मगर उस हालात से हम क्या लाभ उठा सकते हैं, यह पूरी तरह हम पर निर्भर करता है। इसे आजमाएं। अगर आप इसे आजमाएंगे, तो बाहरी हालात भी धीरे-धीरे आपके अनुसार होने लगेंगे। बल्कि एक समय के बाद आप देखेंगे कि आपके आस-पास के हालात कुदरती तौर पर बेहद खूबसूरत होंगे।

दुनिया का मेरा अनुभव तो बहुत शानदार रहा है। मैं जहां भी जाता हूं, लोग आंखों में प्यार और खुशी के आंसु लिए मुझसे मिलते हैं। मुझे और क्या चाहिए? मैं जानता हूं कि दुनिया के सारे लोगों के साथ ऐसा नहीं है मगर मेरे आस-पास दुनिया खुद को इसी तरह पेश करती है।इसकी वजह यह है कि मैंने अपने आप को इस तरह व्यवस्थित करने के लिए इतनी मेहनत की है कि चाहे मैं कहीं भी रहूं, मैं ऐसे ही रहता हूं। धीरे-धीरे दुनिया खुद को मेरी तरह बनाने लगी है।

 आप अपना जीवन इस तरह जिएं कि जब लोग आपकी ओर देखें, तो नाले में रहने वाले लोग भी एक समय बाद यह सोचें कि आपकी तरह जीना फायदेमंद है। वे इससे बच नहीं सकते। वे कड़वाहट से इसलिए भरे हुए हैं क्योंकि जीवन का उनका अनुभव कड़वा और असंतोष से भरा है ।
आप भी ऐसा ही करें। इस बात की परवाह न करें कि दुनिया खुद को एक खास तरीके से व्यवस्थित करती है या नहीं, एक समय बाद ऐसा जरूर होगा। महत्वपूर्ण यह है कि आप खुद को इस तरीके से व्यवस्थित करें, कि आप एक खूबसूरत इंसान बन जाएं। कोई और आपको कैसे देखता है, यह उसके ऊपर है।

फिलहाल, वे नाले में चलना चाहते हैं – थोड़ी देर उन्हें चलने दीजिए जब तक कि वे थक न जाएं। आप अपना जीवन इस तरह जिएं कि जब वे आपकी ओर देखें, तो नाले में रहने वाले लोग भी एक समय बाद यह सोचें कि आपकी तरह जीना फायदेमंद है। वे इससे बच नहीं सकते। वे कड़वाहट से इसलिए भरे हुए हैं क्योंकि जीवन का उनका अनुभव कड़वा और असंतोष से भरा है और यही कड़वाहट संघर्ष के रूप में सामने आती है। उनके लिए एक मिसाल रखें कि अलग तरह से जीने का एक तरीका है। योग में कमल का फूल एक स्थायी प्रतीक रहा है क्योंकि कमल का फूल सबसे अच्छा वहीं खिलता है, जहां गहरा कीचड़ और दलदल होता है। जहां सबसे ज्यादा कीचड़ होता है, वहां वह सबसे खूबसूरती से खिलता है। गंदगी, खूबसूरती और खुशबू में बदल जाती है। यही आध्यात्मिक प्रक्रिया है, कीचड़ से परहेज करना आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं है। कीचड़ का हिस्सा बनना भी आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं है। कीचड़ को सुगंध में बदलना एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है।