सद्‌गुरुक्या माँ बनना हर औरत के जीवन का आवश्यक अंग है? क्या गर्भधारण न करने से उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है? जानते हैं...

 

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

प्रेक्षा: सद्‌गुरु आज के दौर में ऐसे जोड़ों, खासकर महिलाओं की संख्या बढ़ रही है, जो बच्चा नहीं चाहते। हालांकि आबादी के लिहाज से यह अच्छी बात है, लेकिन लोग कहते हैं कि मेडिकली यह जरूरी है कि एक औरत के लिए बीस से तीस साल की उम्र के बीच कम से कम एक बच्चा पैदा करना महत्वपूर्ण है। क्या योग किसी तरह से प्रकृति के संतुलन की इस समस्या का समाधान कर सकता है और अगर हां तो कैसे?

सद्‌गुरु: मुझे उम्मीद है कि भारत में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं इस विकल्प को चुनेंगी। इस देश में आज इसकी सख्त जरूरत है कि महिलाएं इस विकल्प को चुनें और बच्चे पैदा न करें, क्योंकि सडक़ों पर वैसे ही बहुत सारे बच्चे घूम रहे हैं। रही बात कि क्या सेहत के लिहाज से यह महिलाओं पर असल डालता है? यह सच है कि एक औरत का शरीर गर्भधारण करने और बच्चे को जन्म देने के लिए बना है। तो जब शरीर का कोई हिस्सा, खासकर महत्वपूर्ण हिस्सा इस्तेमाल में नहीं आता तो यह शरीर में कुछ खास तरह के अंसतुलन पैदा कर सकता है। जरुरी नहीं है कि ऐसा हो ही, लेकिन कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है। महिला का शरीर चौहद साल की उम्र से लेकर लगभग पचास साल की उम्र तक गर्भधारण के लिए तैयार होता है। तो इस काल में अगर वह गर्भधारण की प्राकृतिक प्रक्रिया से गुजरती है और फिर बच्चे को अपना दूध पिलाती है तो लगभग हर ढाई से तीन साल बाद वह एक बच्चे को जन्म दे सकती है।

सामाजिक जरूरतों के हिसाब से चलना पड़ता है

प्रकृति ने ऐसी रोक लगाई है कि जब तक कोई औरत अपने बच्चे को स्तनपान कराती है, तब तक वह गर्भवती नहीं होगी। लेकिन आज हमने अपनी जरूरतों के हिसाब से या फिर आधुनिक जीवन की जरूरतों के हिसाब से इन चीजों को बदल दिया है। हम नहीं चाहते कि कोई लडक़ी चौदह-पंद्रह साल की उम्र में मां बने। हम कम से कम उसके अठारह-बीस साल या उससे ज्यादा की उम्र होने पर उसके मां बनने की बात करते हैं। एक तरह से देखा जाए और अगर आप कुदरती तौर से देखें तो मां बनने की उम्र में देरी करना अप्राकृतिक है, लेकिन कुछ सामाजिक जरूरतें भी होती हैं। कुछ वक्त की जरूरत भी होती है। हम चाहते हैं कि लड़कियां पढ़ें, हम नहीं चाहते कि वे चौदह-पंद्रह साल की उम्र में बच्चे पैदा करें।

इसके अलावा, आपको एक बात और समझनी होगी कि चौदह साल से लेकर पचास साल तक के गर्भधारण के काल में वह बारह से पंद्रह बच्चों को जन्म दे देती थी। आप तो जानते ही हैं कि पहले ऐसा ही होता था। कुछ देशों में तो यह आज भी सच्चाई है। मध्य पूर्वी देशों और कुछ अफ्रीकी देशों में तो आज भी महिलाएं अपनी किशोरावस्था से लेकर अपने पूरे जीवन शायद ही अपने नॉर्मल पीरियड्स देख पाती हों, क्योंकि या तो वे गर्भवती रहती हैं या फिर अपने बच्चे को स्तनपान करा रही होती हैं।

माँ न बनने का सेहत पर बुरा असर होना जरुरी नहीं है

यह बहुत सारी औरतों की सच्चाई है। उस तरह से संतान पैदा करने की दृष्टि से वे काफी स्वस्थ होती हैं, लेकिन आप उस तरह से स्वस्थ नहीं होना चाहेंगी। ये चीजें अब बीती बात हो चुकी हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि हम इस मामले में प्रकृति से समझौता कर रहे हैं। प्रकृति ने आपको जो भी चीज दी है, उसे आपको उसकी सीमा तक इस्तेमाल नहीं करना है। तो यहां हम बेशक समझौता कर रहे हैं। सेहत पर इसके कुछ दुष्परिणाम भी हो सकते हैं, लेकिन ऐसा होना जरूरी नहीं है। कुछ हद तक ऐसा हो सकता है, लेकिन सौ फीसदी ऐसा होना जरूरी नहीं है। अलग-अलग औरतों में यह अलग-अलग हद तक सच हो सकता है। कई औरतें बिना बच्चों के पूरी तरह से सेहतमंद हो सकती हैं। उनमें ऐसी कोई समस्या नहीं होगी। दरअसल डिलीवरी के समय औरत का शरीर बहुत तनाव व कमजोरी से होकर गुजरता है, ऐसे में बहुत सारी औरतें उसी समय कई तरह की समस्याओं से ग्रस्त हो जाती हैं। डिलीवरी के बाद वे कमजोर हो जाती हैं और कई रूपों में बीमार हो जाती हैं।

तो क्या बच्चे को जन्म देना बीमार बनाता है? ऐसे में क्या हमें बच्चे पैदा करना बंद कर देना चाहिए? नहीं। इसी तरह से बच्चे न पैदा करना भी कोई बीमारी नहीं है। हां, उस स्थिति में शरीर में कुछ उतार-चढ़ाव हो सकते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि किसी मेडिकल प्रोफेशनल को बच्चे पैदा करने को सेहत अच्छी रखने के तरीके के रूप में बताना चाहिए। अगर आप उस सिद्धांत पर चलेंगे तो औरत चौदह से पचास साल की उम्र तक सिर्फ बच्चे ही पैदा करती रह जाएगी। निश्चित रूप से हम इस स्थिति के लिए तैयार नहीं हैं।

सन्यासी स्त्रियाँ साधना के माध्यम से स्वस्थ रहती हैं

अब सवाल है कि क्या योगिक पद्धति शरीर में होने वाले इस उतार-चढ़ाव को सामान्य कर सकती है? तो निश्चित रूप से ऐसा हो सकता है। अगर कोई औरत जरूरी साधना करती है तो उसके  लिए अपने शरीर को इस तरह से स्थिर करना आसान हो जाता है कि चाहे शरीर में गर्भधारण की वजह से असंतुलन आया हो या गर्भधारण नहीं करने की वजह से आया हो - दोनों ही स्थितियों में अभ्यास से संतुलन लाया जा सकता है।

योगिक मार्ग पर चलने वाले सन्यासी - चाहें वे स्त्री हों या पुरुष, वे न तो कभी विवाह करते हैं, न ही किसी तरह की सेक्सुअल गतिविधि में शामिल होते हैं और न ही गर्भधारण करते हैं, फिर भी वे सब पूरी तरह से स्वस्थ रहते हैं। अगर उन्हें कोई सेहत संबंधी समस्या नहीं है, तो इसकी वजह है कि वे अपने सिस्टम को स्थिर बनाने के लिए जरुरी साधना कर रहे हैं। तो अगर शरीर में कुछ खास तरह की अस्थिरता हो तो गर्भधारण करना या गर्भधारण न करना दोनों ही हमारे सिस्टम को डिस्टर्ब करते हैं। दूसरी तरफ अगर शरीर बहुत स्थिर है तो गर्भधारण करना या न करना दोनों में ही उसकी उन्नति है। निश्चित तौर पर योगिक साधना ऐसा कर सकती है।