Sadhguruअच्छी सेहत की कामना तो हर कोई करता है, लेकिन इसके लिए आज बहुत बड़ी आबादी डॉक्टर, दवाईयों और अस्पतालों पर निर्भर है। तो क्या यही एक तरीका है?

शेखर कपूर: हर कोई सेहत और लंबी उम्र की बात करता है, मगर इस बारे में सभी के विचार अलग-अलग होते हैं। मैं दो बातें पूछना चाहता हूंपहली यह कि एक खास उम्र के बाद जीने का क्या महत्व है? और दूसरी बात यह जानना चाहता हूं कि एक खास उम्र के बाद जीवन जीते हुए, क्या हमारे अंदर कोई ऐसी मूलभूत चीज होती है जो हमें सेहतमंद रख सकती है? या जीवित रहने के लिए हमेशा डॉक्टरों और अस्पतालों के सहारे की जरूरत होगी? अगर हमारे अंदर कोई मूलभूत चीज होती है, तो शायद मैं मान लूंगा कि प्रकृति‍ हमें जीवित रखना चाहती है।

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सद्‌गुरु: अगर प्रकृति का इरादा आपको जीवित रखने का नहीं होता, तो आप मर गए होते। अब भी आप उन दवाओं के कारण, जो आपने ली हैं या हेल्थ चेकअप और अपने अस्पताल की सलाह के कारण जीवित नहीं हैं, बल्कि इसलिए जीवित हैं क्योंकि प्रकृति अभी आपको जीवित रखना चाहती है। आप दवाओं के कारण नहीं, जीवन की प्रक्रिया के कारण जीवित हैं। दवाएं थोड़ा-बहुत खेल कर सकती हैं मगर जीवन का सृजन नहीं कर सकतीं।

आपका शरीर भी अंदर से ही बना है। आपने बाहर से कच्चा माल दिया, मगर सृजन की प्रक्रिया अंदर से ही घटित हुई। इसका मतलब है कि सृजन का स्रोत या शरीर का निर्माता आपके अंदर ही है। बाहर से सेहत को ठीक करने की कोशिश करना बहुत मेहनत वाली प्रक्रिया है। अगर आप अपने अंतरतम तक पहुंच सकते हैं, तो अच्छी सेहत एक कुदरती चीज होगी। यह सोचना कि इसे बाहर से संभाला जा सकता है – एक गलत धारणा है।

धरती पर 70 फीसदी से अधिक बीमारियां स्थायी हैं या कहें आपके भीतर से आती हैं। इसका मतलब है कि आपका अपना शरीर, आपका अपना सिस्टम उस बिमारी को पैदा करता है। जिस सिस्टम में अपने अस्तित्व को बनाए रखने और जीवित रहने की तीव्र इच्छा हो, वह अपने ही खिलाफ कोई रोग क्यों पैदा करेगा?

शेखर कपूर: आध्यात्मिकता का मकसद अपने अंतरतम के संपर्क में रहना है और पूरे अस्तित्व के साथ आपका संबंध कुदरती तौर पर आपकी सेहत को बेहतर बनाता है। आपको उसकी चिंता नहीं करनी पड़ती। क्या यह सच है?

सद्‌गुरु: आज यह बात हर कोई जानता है कि शरीर की हर कोशिका कुदरती तौर पर इस तरह से बनाई गई है कि वह आपको सेहतमंद रखे।  अगर उसका काम कुदरती तौर पर सेहत को बनाए रखना है, तो वह आपके खिलाफ काम क्यों करेगी? हमें संक्रामक और स्थायी रोगों के बीच का अंतर समझ लेना चाहिए। संक्रमण किसी बाहरी जीवाणु का आपके शरीर पर हमला है। यह एक युद्ध जैसी स्थिति होती है। उन्हें मारने के लिए आपको रासायनिक लड़ाई लड़नी पड़ती है। मगर धरती पर 70 फीसदी से अधिक बीमारियां स्थायी हैं या कहें आपके भीतर से आती हैं। इसका मतलब है कि आपका अपना शरीर, आपका अपना सिस्टम उस बिमारी को पैदा करता है। जिस सिस्टम में अपने अस्तित्व को बनाए रखने और जीवित रहने की तीव्र इच्छा हो, वह अपने ही खिलाफ कोई रोग क्यों पैदा करेगा? इसका मतलब है कि कहीं न कहीं कुछ मूल तत्व बिगड़ गए हैं। अगर आप अपने अंतरतम के संपर्क में रहें, जो सृष्टि का स्रोत और इस शरीर का निर्माता है, तो आपको सेहत के बारे में कोई बात करने या उसकी इच्छा करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर आप इस सिस्टम को एक खास तरीके से रखते हैं, तो सेहत कुदरती तौर पर पैदा होती है।

शेखर कपूर: क्या आप इसे ध्यान का तरीका कहेंगे?

सद्‌गुरु: मैं ऐसा कह सकता हूं मगर मैं ‘ध्यान’ शब्द से बचना चाहूंगा क्योंकि इस शब्द को काफी गलत अर्थों में इस्तेमाल होता है, इस शब्द को बुरी तरह बिगाड़ा गया है। ‘ध्यान’ शब्द का हर कोई अपना-अपना अर्थ निकालता है। अगर आप बस यहां पूरी तरह स्थिर होकर बैठने का मतलब जानते हैं, अगर दिन में दो मिनट के लिए भी आपके अंदर सब कुछ स्थिर हो सकता है, तो आप पूरी तरह सेहतमंद होंगे। सिर्फ दो मिनट। इंसान बीमार इसलिए होता है क्योंकि वह स्थिर होना नहीं जानता।