कैसे पाएं कृष्ण जैसा जादुई आकर्षण
अगर आपने समग्रता की अवस्था पा ली तो आप नीले हो जाएंगे। जिस पल आपने सब कुछ खुद में समाहित कर लिया, स्वाभाविक रूप से आप उस नीलिमा को पा लेंगे। लेकिन यह होगा कैसे?
अगर आपने समग्रता की अवस्था पा ली तो आप नीले हो जाएंगे। जिस पल आपने सब कुछ खुद में समाहित कर लिया, स्वाभाविक रूप से आप उस नीलिमा को पा लेंगे। लेकिन यह होगा कैसे?
प्रश्न:
सद्गुरु, आपने कृष्ण की उस बुनियादी खासियत - उनके नीले रंग के बारे में बताया, जिसमें सबको समाहित कर लेने की खूबी है। आखिर वो कौन सा तरीका है, जिससे हम भी खुद को वैसे नीले रंग में बदल सकते हैं और किस तरह से उस नाजुक स्थिति में खुद को बनाए रख सकते हैं?
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सद्गुरु:
यह नील वर्ण नाजुक तो बिल्कुल नहीं है। यह शरीर नाजुक है, यह संसार नाजुक है, लेकिन नीला रंग हर्गिज नाजुक नहीं है। यह खुद को कायम रखने में, संभालने में सक्षम है। यह इस शरीर और दुनिया के बाद भी बना रहता है।
यहां पहले दिन से ही हम जो कुछ भी कर रहे हैं, उसका मकसद आपको एक विशिष्ट अस्तित्व से एक समग्र अस्तित्व में रूपांतरित करना है। लेकिन आपका अहम लगातार विशिष्ट बने रहने की कोशिश करता है। विशिष्टता से समग्रता की ओर बढऩा, ‘पैशन’ यानी गहरे लगाव या जुनून से ‘कंपेशन’ यानी करुणा की ओर बढऩा ही असली मकसद है। करुणा को आप दया के रूप में मत देखिए। करुणा दया नहीं है, यह एक तीव्र भाव है जो सबको समाहित कर लेता है। जुनून या लगाव किसी एक सीमा या जगह पर आकर खत्म हो जाता है, इसे आप हमेशा के लिए नहीं रख सकते। जबकि करुणा समग्रता से भरी होती है, इसमें इतना ईंधन होता है, जो इसे हमेशा ज्वलंत रखता है। जबकि लगाव या जुनून विशिष्ट होता है, जो किसी एक चीज पर केंद्रित होता है और थोड़ी ही देर मे वह खत्म भी हो जाता है।
अब बात करते हैं सीमितता से असीमितता की ओर बढऩे की। अगर आपने समग्रता की अवस्था पा ली तो आप नीले हो जाएंगे। जिस पल आपने सब कुछ खुद में समाहित कर लिया, स्वाभाविक रूप से आप उस नीलिमा को पा लेंगे। लेकिन यह होगा कैसे? यह तभी होगा, जब आप अपनी निजता की सारी दीवारें और सीमाएं मिटा कर सम्रगता का स्वागत करेंगे, जो कि वास्तव में आप हैं। गीता का सार ही कृष्ण के विश्वरूप दर्शन में है। गीता के अठारह अध्यायों में कृष्ण ने इतना कुछ कहा, लेकिन फिर भी अर्जुन लगातार उनसे सवाल पर सवाल करते गए। एक सीमा पर आकर कृष्ण को लगा कि बस बातें बहुत हुईं, अब कुछ कर के दिखाने की जरुरत है। तब उन्होंने अर्जुन को अपना विश्वरूप दर्शन कराया, जिसमें पूरा बह्मांड समाहित था। अर्जुन उनका वो विराट रूप देख कर चकित रह गए। अर्जुन ने जिसके बारे में भी सोचा, चाहे वह- बुरा हो या भला, इंसान हो या जानवर, दैवीय हो या दानवीय - हर चीज कृष्ण के उस स्वरूप में समाहित थी। उस पल कृष्ण में उन्होंने समस्त ब्रह्मांड के दर्शन किए। दरअसल, कृष्ण ने उस समय खुद को एक इंसान के रूप में न पेश कर असीम व व्यापक रूप में पेश किया। इसी को विश्वरूप दर्शन कहा गया, जिसमें पूरा बह्मांड समाया था।
अब सवाल है कि इसे पाने का जरिया या साधन क्या है? हम ईशा योग प्रोग्राम के पहले दिन से जो भी कर रहे हैं, वो सब इसे पाने का जरिया ही है।