कैसे हुई थी चन्द्रवंश की शुरुआत? – भाग 3
पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा, कि कैसे राजा ययाति का आगमन हुआ, और कैसे असुरों से संजीविनी का रहस्य जानने के लिए देवों ने कच को असुरों के खेमे में भेजा। आइये जानते हैं, कैसे कच ने तमाम मुश्किलों के बावजूद संजीविनी मन्त्र हासिल कर लिया…
पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा, कि कैसे राजा ययाति का आगमन हुआ, और कैसे असुरों से संजीविनी का रहस्य जानने के लिए देवों ने कच को असुरों के खेमे में भेजा। आइये जानते हैं, कैसे कच ने कई मुश्किलों के बावजूद संजीविनी मन्त्र हासिल कर लिया…
कच ने संजीवनी मंत्र सीखा
जब शुक्राचार्य ने मंत्र का प्रयोग करने की कोशिश की, तो उन्हें अपने पेट में एक घरघराहट महसूस हुई। वह कच था। शुक्राचार्य कुपित हो गए, ‘किसने ऐसा किया? क्या यह भी असुरों का काम है? वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?’ उनके पेट के अंदर से कच ने पूरी कहानी सुनाई कि किस तरह असुरों ने उसे मार कर, पीसकर खारे पानी के साथ मिला दिया और किस तरह उसके अंगों को पीसकर उसका एक हिस्सा उनके पेय में मिला दिया। शुक्राचार्य बहुत क्रोधित हो गए। ‘अब तो हद हो गई है। उन्होंने उसे मेरे पेट में डाल दिया। या तो मुझे उसे मरे रहने देना होगा या उसे जीवित करने पर मुझे मरना होगा।’ उन्होंने सोचा, ‘मुझे यह नौकरी छोड़कर देवों के पास चले जाना चाहिए। यहां मुझसे बहुत बुरा बर्ताव किया जा रहा है। इस युवक को मेरे पेट के अंदर डालने की उनकी हिम्मत कैसे हुई?’ मगर देवयानी रोने लगी। वह बोली, ‘मैं न तो कच के बिना जी सकती हूं, न आपके बिना। अगर आप दोनों में से किसी एक को भी कुछ हुआ, तो मैं अपनी जान दे दूंगी।’
शुक्राचार्य ने कच से कहा, ‘तुम जिस मकसद से आए थे, तुम उसमें कामयाब हो गए हो। तुम संजीवनी का राज जानना चाहते थे, और तुम उसे जानने के योग्य हो। अब मैं तुम्हें वह मंत्र सिखाऊंगा। फिर मैं उससे तुम्हें जीवित करूंगा। तुम मेरे शरीर को फाड़कर बाहर निकलोगे, इसलिए मेरी मृत्यु हो जाएगी। फिर तुम संजीवनी मंत्र का इस्तेमाल करते हुए मुझे जीवित करोगे और फिर तुम कहीं भी अपना नया जीवन शुरू कर सकते हो।’ शुक्राचार्य ने संजीवनी मंत्र का प्रयोग किया और उनके पेट में बढ़ते हुए चंद्रमा की तरह कच का आकार बढ़ने लगा और वह उन्हें फाड़कर बाहर निकल आया। शुक्राचार्य मृत हो गए। देवयानी के मुंह से एक चीख निकली। कच ने संजीवनी मंत्र का इस्तेमाल करते हुए शुक्राचार्य को फिर से जीवित कर दिया। वह उन्हें प्रणाम करके चलने ही वाला था कि देवयानी बोली, ‘तुम नहीं जा सकते। मैं तुमसे प्रेम करती हूं।’
आगे जारी...
Subscribe