कहीं और नहीं... बस यहीं
जब आप साधना करते हैं तो अकसर एक प्रश्न आपके मन में उठता है - "साधना करके हम कहाँ तक पहुंचे ?"। क्या साधना वाकई में आपको किसी नए अनुभव तक ले जाती है ? - आइये पढ़ते हैं साधना से आने वाले बदलावों के बारे में।
जब आप साधना करते हैं तो अकसर एक प्रश्न आपके मन में उठता है - "साधना करके हम कहाँ तक पहुंचे ?"। क्या साधना वाकई में आपको किसी नए अनुभव तक ले जाती है ? - आइये पढ़ते हैं साधना से आने वाले बदलावों के बारे में।
प्रश्न: सद्गुरु, कई साल तक साधना करने के बाद भी मुझे ऐसा लगता है कि मैं कहीं नहीं पहुंच रहा हूं। मुझे क्या करना चाहिए?
सद्गुरु: इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने साल से साधना कर रहे हैं, आप कहीं नहीं पहुंचेंगे। ऐसा नहीं है कि आप पहुंच नहीं सकते, लेकिन आप पहुंचेंगे नहीं, क्योंकि साधना करने का मकसद कहीं पहुंचना नहीं है। साधना इसलिए की जाती है, कि आप बस वर्तमान में स्थिर रह सकें। यानी यह समझ सकें कि जो यहां है, वही हर जगह है, जो यहां नहीं है, वह कहीं नहीं है। तो कहीं पहुंचने की आवश्यकता से परे चले जाना ही साधना है, क्योंकि कोई ऐसी जगह ही नहीं है, जहां आपको जाना है।
Subscribe
साधना एक यंत्र की तरह है। यह आपको समझदारी की ऐसी अवस्था में ले जाता है, जहां कहीं पहुंचने की जरूरत खत्म हो जाती है। यही वजह है कि जो लोग साधना में डूबे हुए हैं, वे कोई खास अनुभव नहीं पाना चाहते। अगर आप पूरी दुनिया की सैर करने निकलेंगे तब भी आप यह नहीं जान पाएंगे कि दुनिया गोल है या चपटी। जीवन की गुत्थियों को समझने की बात तो भूल ही जाइए। लेकिन अगर आप सच्चे अर्थों में यहां हैं, तो आपके लिए जो भी जानने योग्य है, वह यहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप हिमालय में बैठे हैं, अफ्रीका में हैं, अमेरिका में हैं, उत्तरी ध्रुव पर हैं या दक्षिणी ध्रुव पर। हो सकता है कि कुछ खास किस्म के वातावरण आपके लिए मददगार हों और कुछ वातावरण मददगार न हों- यह बिल्कुल अलग बात है। लेकिन मूलरूप से आप वही महसूस करते हैं जो आपके भीतर हो रहा है।
आप यहां बैठे हुए किसी की ओर देख कर प्रेम का अनुभव कर सकते हैं। आप अपनी आंखें बंद कर किसी के बारे में सोचकर भी प्रेम का अनुभव कर सकते हैं। लेकिन अनुभव आपके भीतर ही है। है न? या तो आप इसके लिए बाहर से प्रेरणा ले सकते हैं, या भीतर से, दोनों ही तरह संभव है। या तो आप किक मारने पर या धक्का लगाने पर स्टार्ट होते हैं या सिर्फ बटन दबाने से- बस तकनीक का अंतर है। या तो आप पुराने जमाने की मशीन होंगे या नए जमाने की। चाहे आप चंद्रमा की ओर देखें, चाहे धरती की ओर, चाहे आप आंखें बंद रखें, चाहे खुली - जो कुछ आपके साथ हो रहा है, आपके भीतर ही हो रहा , न उससे ज्यादा, न उससे कम।
तो साधना आपको समझदारी की ऐसी स्तर तक लाती है, कि आपको इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप क्या कर रहे हैं। आप पहाड़ की चोटी पर हैं या किसी घाटी में, आप दुनिया में कामयाब हैं या नहीं, - आप हर हाल में, हर चीज को एक ही भाव से देखते हैं। । यह कोई जाल नहीं है, यह जीवन की खूबसूरती है। वास्तव में कहीं नहीं जाना है। आप बस यहीं बैठे-बैठे आनंदमग्न हो सकते हैं, और यहीं बैठे-बैठे आप बेहद दुखी भी हो सकते हैं। आप यहां बैठकर सोच सकते हैं - ये मेरे जीवन के सबसे धन्य पल हैं या यह भी सोच सकते हैं, कि ये मेरे जीवन के सबसे दुख भरे क्षण हैं। आपके पास सभी तरह के विकल्प हैं। जीवन ने आपके ऊपर कोई बंधन नहीं लगाया है। बंधन तो आपने खुद गढ़े हैं। इस अस्तित्व ने तो आपको स्वतंत्र छोड़ा है, पूरी तरह से स्वतंत्र। बिना कुछ बनें भी आप जीवन को पूरे आनंद में जी सकते हैं। और यह सब कुछ इससे तय होता है कि आप अपने भीतर किस तरह से हैं। एक विकल्प यह भी है कि आप सारी जगह जाएं, हर तरह के काम करें, और फिर भी जीवन को बेहद दयनीय तरीके से जिएं। दोनों ही स्थितियां आप की ही बनाई हुई होंगी।