सद्‌गुरु: इब्राहिम एक महान सूफी संत थे जो किसी समय राजा हुआ करते थे। एक बार इब्राहिम मक्का की यात्रा कर रहे थे, उनके पास ऊंटों का बड़ा काफिला था, और नौकर-चाकरों का बड़ा दल था। एक रेगिस्तान में जितनी भी विलासिता संभव थी उसके साथ वे बहुत विलासी तरीके से यात्रा कर रहे थे। उनके तंबू बहुत ही आलीशान थे जिनके खूंटे भी सोने के थे। जो कुछ भी सोने से गूंथा हुआ, मढ़ा हुआ हो सकता था, वह सब कुछ वैसा ही था, सोने का। उनके कपड़े भी सबसे ज्यादा महंगे, शानदार थे।

सूफी संत इब्राहीम की एक दरवेश से मुलाक़ात

एक अन्य सूफी, जो इधर उधर भटकने वाले दरवेश थे, उधर से गुजरे और इतने भव्य, विलासी जीवन को देख कर सोचने लगे, "ये आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं हो सकते"। जब उन्हें इब्राहिम से मिलने का मौका मिला तो उन्हें डांटते हुए बोले, "आप कैसे सूफी हैं? आप अब भी अपनी सांसारिक संपत्ति को पकड़े हुए हैं, सोने के खूंटे भी?" इब्राहिम ने बस सिर हिलाया और कहा, "आप थोड़ा आराम कीजिये"।

इब्राहिम ने बस सिर हिलाया और कहा, "आप थोड़ा आराम कीजिये"।
रात में वे दोनों जब फिर मिले तो इब्राहिम बोले, "कल सुबह, जल्दी ही हम मक्का की ओर पैदल जायेंगे"। दरवेश ने कहा, "ठीक है, मैं भी वहीँ जा रहा हूँ"। वे सुबह जल्दी उठे और साथ साथ चल पड़े। कुछ घंटों तक रेगिस्तान में चलने के बाद दरवेश को अचानक याद आया कि वे अपना भीख का कटोरा वहां भूल आये थे जहाँ वे सोये थे। उन्होंने इब्राहिम से कहा, "मैं अपना कटोरा भूल आया हूँ, वापस जा कर ले आता हूँ"। वे पीछे लौटने लगे।

Sufi saint, Ibrahim

 

 

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दरवेश को इब्राहीम की सीख

इब्राहिम ने उनकी ओर देखा और बोले, "मैने अपनी सारी भौतिक संपत्ति पीछे छोड़ दी है, ऊंट, सोने के खूंटे, और भी सब कुछ! मैं बिना पीछे देखे चल रहा हूँ और आप भीख के कटोरे के लिये पीछे वापस जाना चाहते हैं। मैं आप को बताना चाहता हूँ, सोने के खूंटे सिर्फ रेत में गड़े हुए थे, वे मेरे ह्रदय में नहीं गड़े थे। चाहे लोहा हो या सोना, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तो मैंने उन्हें सोने का बनाया। पर आप? आप अपना भीख का कटोरा भी छोड़ कर चलना नहीं चाहते। आप मक्का की ओर जा रहे हैं, जो सबसे ज्यादा पवित्र जगहों में भी सबसे ज्यादा पवित्र है पर आप एक भीख के कटोरे के लिये वापस जा रहे हैं। मेरे पास तो मेरा कोई भीख का कटोरा भी नहीं है।" और इब्राहिम चल पड़े।

 

आप के पास क्या है और क्या नहीं है, आप क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं या कैसे रहते हैं इन सबसे यह निश्चित नहीं होना चाहिये कि आप अपने अंदर से कैसे हैं? बाहर से आप जैसे चाहे रह सकते हैं लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि आप अपने आप को अंदर से कैसे रखते हैं, वरना आप सब कुछ इकठ्ठा कर सकते हैं पर आप के पास कुछ नहीं होगा।

 

मानव की इकठ्ठा करने की आदत

उस समय से, जब मानव गुफाओं में रहता था, लोग सामान इकठ्ठा कर रहे हैं। आप बच्चे थे तो चमकदार पत्थरों के टुकड़े एकत्रित करते थे। तब से अब तक कुछ नहीं बदला है। बात बस इतनी है कि पत्थर अब ज्यादा महंगे हो गये हैं। एक बच्चे के तौर पर आप उन्हें नदियों या समुद्र तट से लाते थे। अब आप को बड़ी रकम खर्च कर के खरीदना पड़ता है। लेकिन कुछ भी बदला नहीं है, अब अभी भी इकठ्ठा करने में ही लगे हुए हैं।

लोग इतनी ज्यादा मात्रा में ये सब सजावटें इकट्ठी कर लेते हैं, और उनसे बंधकर उनके आधार पर अपनी पहचान बना लेते हैं, कि वे उस जीवन का कभी अनुभव नहीं कर पाते जो वे स्वयं हैं।

आप जो कुछ भी इकठ्ठा करते हैं -- रिश्ते, नाते, परिवार, संपत्ति, ज़मीन - जायदाद, ज्ञान, विचार और वो सब कुछ जो आप के पास है -- ये सब जीवन सजाने के लिये अतिरिक्त सजावटें हैं। लोग इतनी ज्यादा मात्रा में ये सब सजावटें इकट्ठी कर लेते हैं, और उनसे बंधकर उनके आधार पर अपनी पहचान बना लेते हैं, कि वे उस जीवन का कभी अनुभव नहीं कर पाते जो वे स्वयं हैं।

 

जब हम खाली होते हैं, तभी जीवन की सुंदरता जान पाते हैं

आप जो चीज़ें इकट्ठी करते हैं, वे चीज़ें जीवन नहीं है। उन्हें इकठ्ठा कर के आप अपने जीवन में पूर्ण होने का प्रयत्न कर रहे हैं। चीज़ें हासिल कर के, इकठ्ठा कर के आप जीवन में पूर्णता पाना चाहते हैं। आप किसी तरह ये सुनिश्चित करने का प्रयत्न कर रहे हैं कि आप का जीवन खाली न रहे। लेकिन आप के जीवन में सुन्दर क्षण तभी आये हैं, जब आप खाली थे। केवल खाली क्षणों में ही आप ने जाना है कि प्रेम, आनंद और शांति क्या है? लेकिन तर्क की दृष्टि से, मानसिक रूप से आप ये सोचते हैं कि आप खालीपन बिलकुल ही नहीं चाहते !

अधिकतर समय, मेरे मन में कोई भी विचार नहीं होता, मैं बस खाली रहता हूँ। जो कार्य, गतिविधि मैं कर रहा हूँ, उसमें जितना ज़रूरी है, उससे ज्यादा शायद ही कभी कुछ मैं बोलता हूं। मेरा मन इतना ज्यादा खाली होता है कि कुछ भी विचार करने के लिये या बोलने के लिये मुझे प्रयत्न करने पड़ते हैं। मैं, अगर, बस बैठ जाऊं तो मेरे पास न कोई विचार होता है न बोलने के लिये शब्द। मैं पूर्णतः खाली होता हूँ।

 

बिलकुल खाली होने से पूरा अस्तित्व आपके अन्दर समा जाएगा

अगर आप पूर्णतः खाली हों तो आप देखेंगे कि सारा अस्तित्व आप में समा जाता है। अगर आप के पास कुछ योजनायें, विचार हैं तो कहीं, कहीं कुछ विचार अस्तित्व के साथ तालमेल में आ जाएंगे, लेकिन अगर आप में ऐसा कुछ नहीं है जिसे आप अपना कह सकें, अगर आप बस एक खाली स्थान हैं तो सारा अस्तित्व एकदम सही ढंग से आपका हिस्सा बन जाता है।

 

अगर आप बिलकुल ही, पूर्णतः खाली हो जाते हैं, तो आप कोई भी चीज़ इसलिए इकठ्ठा नहीं करेंगे, क्योंकि आप बस इकठ्ठा करना चाहते हैं। आप के पास जो भी है उसका आप पूरा, पूरा आनंद लेंगे और यदि वो सब नहीं है तो उसके न होने का भी आनंद लेंगे।