1. अपनी कृतज्ञता दिखाने के लिये शक्तिशाली विचार पैदा करें

सद्गुरु: मुझे लगता है कि एक राष्ट्र के रूप में हमारे पास लोगों की क़ाबलियत को स्वीकार करने की योग्यता का अभाव है। कुछ अच्छा करने वालों की क़ाबलियत को स्वीकार करने की, प्रशंसा करने की योग्यता हममें होनी चाहिये। दुर्भाग्यवश, हमें यही लगता है कि सिर्फ आलोचना कर के ही सब कुछ ठीक किया जा सकता है। यह ख़त्म होना चाहिये। बहुत से लोग काफ़ी अद्भुत चीज़ें करते हैं, हमें उन्हें स्वीकार करना चाहिये।

जब हम बस में बैठते हैं तो कितने लोग ड्राइवर और कंडक्टर की ओर देखते भी हैं, उन्हें धन्यवाद देते हैं या कम से कम नमस्कार ही करते हैं? अधिकतर लोगों में इस बात का अभाव होता है। पुराने समय में, हमारी संस्कृति ऐसी थी कि अगर एक छोटी सी चीज़ भी हमें लोगों से मिलती थी, हम एक दूसरे को झुक कर प्रणाम करते थे। दुर्भाग्य से, अब ये बातें समाप्त हो गयी हैं। अभी के कठिन समय में, मेडिकल पेशेवर, सुरक्षा बलों के सिपाही और अन्य अत्यावश्यक सेवायें देने वाले बहुत सारे लोग अपने और अपने परिवार के जीवन का खतरा उठा कर, कठोर परिश्रम कर रहे हैं। जो अस्पतालों में काम कर के अपने घरों को जाते हैं, वे शायद मृत्यु को ही घर ले जा रहे हैं। वे जब इतनी महान सेवा दे रहे हैं तो यह अत्यंत खराब बात है कि हम उनके योगदान को स्वीकार नहीं कर रहे। हर सुबह जब आप उठते हैं, तो कम से कम अगले 6 महीनों तक, जब तक ये सब समाप्त न हो जाये, अपने मन में यह शक्तिशाली विचार बनाईये कि हम इन सब लोगों के प्रति कृतज्ञ हैं, जो अपने जीवन को दूसरों के लिये खतरे में डाल रहे हैं।

2. घर पर ही सिम्हा क्रिया कर के अपनी श्वसन क्रिया को परखें

सिम्हा क्रिया एक आसान क्रिया है। आप में से जिन लोगों को शक्तिचलन जैसी कोई शक्तिशाली क्रिया नहीं आती, उनके लिये ये अत्यंत सहायक होगी। ये आप के फेफड़ों की क्षमता को बढ़ायेगी और आप की इम्यूनिटी यानि प्रतिरोधक क्षमता को भी। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अगर आप इसे अगले कुछ दिनों तक करते हैं और फिर अचानक एक दिन अपने आप को इसे करने में असमर्थ पाते हैं तो इसका अर्थ ये है कि आप को कोई श्वसन संबंधी समस्या है। ये कुछ भी हो सकता है, ज़रूरी नहीं कि कोरोना वायरस ही हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये क्या है, आप को तुरंत अपना परीक्षण करा लेना चाहिये। यदि आप ये क्रिया नहीं कर रहे हों तो, विशेष रूप से मेडिकल के लोग, पुलिस कर्मी तथा अन्य सभी लोग जो इस समय में संक्रमित लोगों के संपर्क में आते हैं, कृपया सुनिश्चित करें कि आप इसे नियमित रूप से करें। ये आप के लिये बहुत लाभकारी होगा।

अगर आप सोचते हैं कि आप स्वर्ग को जा रहे हैं, तो आप मृत्यु के बारे में बहुत उत्साही हो जायेंगे, जो कि अच्छा नहीं है। उत्साही आप को जीवन के प्रति होना चाहिये।

3.'डेथ बुक' को एक ही बैठक में पढ़ें

आज कई प्रकार से सारी दुनिया के लोगों को पुनः याद आ रहा है कि वे नश्वर हैं। वैसे, नश्वरता हमेशा हमारे साथ ही रही है। अतः यह पुस्तक उन सब के लिये है जो मरने वाले हैं। हमारे जीवन के इस अत्यंत महत्वपूर्ण आयाम को, बिना किसी मिलावट के समझने के लिये यह पुस्तक है। सामान्यतः जब कोई मर जाता है तो लोग कहते हैं कि वे स्वर्ग चले गये - ये एक मिलावट भरा कथन है। आपको मृत्यु को चेतनता से स्वीकारना चाहिए, जीवन के एक भाग के रूप में, ना कि ऐसे स्वागत करके कि आप स्वर्ग धाम को जा रहे हैं । अगर आप सोचते हैं कि आप स्वर्ग को जा रहे हैं, तो आप मृत्यु के बारे में बहुत उत्साही हो जायेंगे, जो कि अच्छा नहीं है। उत्साही आप को जीवन के प्रति होना चाहिये। मृत्यु को आप को निर्लिप्त भाव से संभालना चाहिये?

 
पुस्तक की संरचना इस तरह से की गयी है कि ये मृत्यु को उसके विभिन्न आयामों में, उसी तरह से देखती है, जैसे कि वह है। जब तक लोग अंतिम पृष्ठ तक आते हैं, कुछ हद तक वे मृत्यु के प्रति थोड़ा ज्यादा उदासीन हो जाते हैं।

ये उस तरह की पुस्तक है जिसे अगर आप थोड़ा थोड़ा कर के 30 दिनों में पढ़ेंगे तो आप ये अनुभव नहीं कर सकेंगे कि ये क्या है? आप को एक ही बैठक में, यथासंभव इसे ज्यादा से ज्यादा पढ़ लेना चाहिये जिससे ये आप के अंदर उतर जाये और एक बड़े टुकड़े की तरह बैठ जाये, और फिर आप इसे धीरे धीरे पचायें। आप को अपने जीवन में बिना किसी रुकावट के, 2 -3 सप्ताह का समय कब मिलने वाला है कि आप बस बैठे रहें और किताबें पढ़ सकें? ऐसा करने के लिये यह बहुत अच्छा समय है। मृत्यु हम पर नज़रें गड़ाये हमें देख रही है।

4. सोशल मीडिया का उपयोग अधिक जिम्मेदारी के साथ करें

लॉकडाउन के इस समय में हम सोशल मीडिया का उपयोग, बिना एक दूसरे पर ज़हर उगले, जिम्मेदारीपूर्वक करना सीख सकते हैं। ये एक काम है जो आप कर सकते हैं क्योंकि विषाणु पहले ही आप को मृत्यु देने के लिये तैयार बैठा है। अतः आप को अन्य लोगों पर हर समय हथियार चलाने की ज़रूरत नहीं है। इन 15 दिनों में हम जिस तरह से भी, बिना शारीरिक रूप से निकट हुए लोगों के साथ संपर्क में रह सकें, हमें उन माध्यमों का उपयोग अपना प्रेम, अपनी करुणा, अपनी नम्रता एवं मानवता को प्रकट करने के लिये करना चाहिये। मैं देख रहा हूँ कि एक राष्ट्र के रूप में, बहुत से लोग बस सरकार, प्रशासन और मेडिकल व्यवस्था की खामियाँ ढूंढने में लगे हैं। ठीक है, वह सब ज़रूरी है पर यह समय गलतियाँ निकालने का नहीं है। ये वो समय है जब जो भी काम हो रहा है, उसकी प्रशंसा करनी चाहिये, धन्यवाद देना चाहिये।

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5. घर में भी दूरी बनाये रखें

यह वो समय है जब मनुष्यों को जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार करना चाहिये तथा सभी व्यक्तियों को एक दूसरे से दूरी बनाये रखनी चाहिये। इसका अर्थ ये नहीं है कि बाहरी दुनिया में तो हम सामाजिक दूरी रखें पर अपने कमरे में या घर में पार्टी करें। हमें सभी लोगों से, सभी जगह पर, शारीरिक दूरी बनाये रखनी चाहिये। खास तौर पर समाज में और घरों में जो अपेक्षाकृत कमज़ोर लोग हैं - हमारे माता पिता, दादा दादी, तथा अन्य वृद्ध लोग - हमें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कोई भी उनसे दो मीटर की दूरी के अंदर न आये। अगर आप ये करते हैं तो हम इस परिस्थिति में से कम से कम नुकसान के साथ बाहर निकल पायेंगे।

सिर्फ अपनी आँखें बंद रखें, किसी चीज़ की ओर न देखें। 1 घंटे से शुरू करें और इसे 6 से 12 घंटों तक बढ़ायें।

6. अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत करें

इस समय, यह महत्वपूर्ण है कि आप अपनी रोग प्रतिरोधक शक्ति को थोड़ा ज्यादा शक्तिशाली बनायें। इसी से तय होगा कि आप के लिये कोरोना विषाणु मृत्युदायक होगा, या आप को गंभीर नुकसान पहुंचायेगा, या हल्के लक्षणों के साथ आप में से निकल जायेगा। अपनी प्रतिरोधक शक्ति को मजबूत करने के लिये आप कई चीज़ें कर सकते हैं। आप के इम्यून सिस्टम को मज़बूत करने के लिये यहाँ 8 सुझाव हैं।

यहाँ हैं  -  इम्युनिटी बढ़ाने के आठ टिप्स.

7. किस तरह से रहना है, सीखें

हम मनुष्य इस विषाणु के लिये वाहन का काम कर रहे हैं। ये एक बड़ी समस्या है पर साथ ही इसमें एक बड़ा फायदा भी है, क्योंकि हम मनुष्य हैं। हमको अभी यह तय कर लेना चाहिये कि हम मनुष्य हैं या सिर्फ मानव रूप में सामान्य प्राणी हैं? अगर हम मनुष्य हैं तो हमें मालूम होना चाहिये कि हमें कैसे रहना है ? अगर हम मनुष्य हैं तो अगले मनुष्य को इस विषाणु से संक्रमित न करने के आसान से नियम का पालन करना बिल्कुल संभव है। यदि आप जानते हैं कि आप को कैसे रहना है तो सामाजिक व्यवहार आप के चयन के अनुसार होना चाहिये। अगर ये ज़रूरी न हो तो आप अपने आप को केवल स्वयं तक ही सीमित रख सकते हैं। कुछ भी न कर के आप को एक बड़ा संतोष मिल सकता है कि आप ने दुनिया के लिये कुछ अच्छा, कुछ अद्भुत काम किया है।

योग का एक अंग है - प्रत्याहार, जिसका अर्थ है संसार के साथ अपने इन्द्रियगत संपर्क को हटा देना और उसे अंदर की ओर मोड़ लेना। यह प्रयोग करने के लिये यह एक अच्छा समय है। इसके लिये आप को किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ आँख बंद कर के बैठें। आप जितने भी घंटों तक ऐसा कर सकें, बाहरी दुनिया के साथ कोई संपर्क न रखें। शुरुआत में आप का मन चारों ओर दौड़ेगा। ये ठीक है, इसे नियंत्रित करने का प्रयत्न न करें। ये जहाँ जाना चाहता है, इसे जाने दें। सिर्फ अपनी आँखें बंद रखें, किसी चीज़ की ओर न देखें। 1 घंटे से शुरू करें और इसे 6 से 12 घंटों तक बढ़ायें। आप देखेंगे कि आप अपनी ऊर्जा के शिखर पर होंगे।

8. अपने आप को रोज थोड़ा-थोड़ा सुधारें

अपने शरीर के लिये, अगले कुछ सप्ताहों के लिये, कुछ छोटे लक्ष्य तय कर लीजिये। आप जब 18 साल के थे, तब अगर आप झुकते थे तो कहाँ तक पहुँचते थे? उस समय, संभवतः आप के हाथ पूरी तरह फर्श पर लग जाते थे, पर आज शायद घुटनों तक ही पहुंचते होंगे। देखिये, क्या आप 6 इंच और आगे जा सकते हैं?

आप जब 18 कि उम्र के थे तो कितनी तेजी से सीढियाँ चढ़ जाते थे और आज कैसे घिसट - घिसट कर जाते हैं? प्रयत्न कीजिये कि अगले सप्ताह तक आप 10% से 20% तक सुधार कर लें!

18 या उससे कम की आयु वाली अपनी तस्वीरें ज़रा देखिये, आप की मुद्रा कैसी सीधी होती थी और आज, अभी आप कैसे झुक गए हैं? तो अपनी मुद्रा को थोड़ा सीधा कीजिये!

करोना आप को स्पष्ट रूप से बता रहा है कि मनुष्य का जीवन कितना नाजुक है - कि एक दिखाई भी न देने वाला, अत्यंत सूक्ष्म जीवाणु भी हमारे जीवन को समाप्त कर सकता है

और पीछे जा कर देखिये - आप की मुस्कान कैसी थी जब आप 6, 8 या 10 साल के थे? प्रयत्न कीजिये कि उस मुस्कान का लगभग 50% आप के चेहरे पर हर समय हो। और ये खाली-खाली, नकली मुस्कान न हो, वो जादू अपने में वापस लाईये।

अगर आप कुछ अद्भुत न भी कर सकें तो भी कम से कम इस धरती पर जीवन के एक सुखद टुकड़े की तरह तो रहिये! ये वो काम है जो आप को अपने स्वयं के लिये और अपने आसपास के सभी लोगों के लिये करना ही चाहिये। आप अपने स्वयं के लिये आवश्यक लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं। ये कोई मुश्किल काम नहीं है। बस, थोड़ा ध्यान देने की ज़रूरत है।

9. समाज में कम से कम 2 ज़रूरतमंदों को सहारा दें

भारत में इस विषाणु से आयी विपत्ति के दौर में सबसे मुख्य चिंता के जो विषय हैं, उनमें से एक है - गरीबों में सबसे गरीब, रोज कमाकर खाने वाले लोग। सौभाग्यवश, केंद्रीय सरकार ने किसानों, मजदूरों तथा निर्माण कार्य में काम करने वालों को सहारा देने के लिये, तीन महीनों का एक विस्तृत पैकेज बनाया है।

उससे कम से कम ये होगा कि समाज का ये हिस्सा भुखमरी की ओर नहीं जायेगा। फिर भी, ऐसे बहुत से लोग होंगे जो बड़ी मुश्किलों में होंगे। सिर्फ समाज ही ऐसे लोगों को बचाने के लिये आगे आ सकता है। मैं हरेक से विनती करता हूँ कि आप चाहे जहाँ हों, ये सुनिश्चित करें कि भूख के कारण वहाँ कोई दुःख या मौत न हो। अगर हम किसी को ऐसी दशा में देखें तो हमें उन तक पहुँचने के उपाय करने चाहियें, या तो अपने स्वयं के संसाधनों से या फिर किसी और का ध्यान उनकी ओर खींच कर, जो उन्हें मदद कर सके। मैं प्रत्येक स्वयंसेवक से विनती करता हूँ कि वे कम से कम दो लोगों की सहायता करें जो ऐसी परिस्थिति में हों। पहले दो सप्ताहों तक लोग किसी तरह चला लेंगे पर तीसरे सप्ताह तक लोग वास्तव में कष्ट में हो सकते हैं। हमें उनका ख़याल रखना होगा।

10. प्रफुल्लित रहना है, अवसाद में नहीं

करोना आप को स्पष्ट रूप से बता रहा है कि मनुष्य का जीवन कितना नाजुक है - कि एक दिखाई भी न देने वाला, अत्यंत सूक्ष्म जीवाणु भी हमारे जीवन को समाप्त कर सकता है, तथा हमने हर जिस चीज़ को बनाया है, उसे अशांत, नष्ट भ्रष्ट कर सकता है। वैसे भी हमारी दुनिया में बहुत मुश्किलें हैं। हमें अपने जीवन को दुःखी या हताश नहीं करना चाहिये। हमें तकलीफों का स्रोत नहीं बनना चाहिये। इस समय, सबसे ज्यादा आवश्यक बात ये है कि हम आनन्दपूर्ण रहें, प्रफुल्लित हों, और दूसरों की सहायता करें।

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Editor’s Note: Watch Sadhguru every day at 6 PM, from now until 14 April, in a series of talks aptly called, “With Sadhguru in Challenging Times.”