सद्‌गुरुयोगिक विज्ञान में  भगवान शिव को रूद्र कहा जाता है। रूद्र का अर्थ है वह जो रौद्र या भयंकर रूप में हो। शिव को सृष्टि -कर्ता भी कहा जाता है। आइये जानते हैं कि कैसे शिव के इन्हीं दोनों पक्षों के मेल को ही विज्ञान बिग-बैंग का नाम दे रहा है...

आपको पता है आजकल वैज्ञानिक कह रहे हैं कि हर चीज डार्क मैटर से आती है साथ ही उन्होंने डार्क एनर्जी के बारे में भी बात करना शुरू कर दिया है। योग में हमारे पास दोनों मौजूद हैं- डार्क मैटर भी और डार्क एनर्जी भी। यहां शिव को काला माना गया है यानी डार्क मैटर और शक्ति का प्रथम रूप या डार्क एनर्जी को काली कहा जाता है।

हाल ही में स्कॉटिश यूनिवर्सिटी के कुछ वैज्ञानिक कह रहे थे कि डार्क मैटर और डार्क एनर्जी के बीच एक तरह का लिंक है। उन्हें लगता था कि ये चीजें अलग-अलग हैं। अब वे कह रहे हैं कि वे एक दूसरे से जुड़ी हैं।

अब मैं आपको बताता हूं कि योग कैसे सृष्टि को भीतर से समझाता है। यह एक तार्किक संस्कृति है। अगर आप चाहें तो मैं आपको इसके बारे में सारी जानकारी दे सकता हूं, लेकिन छोडि़ए, बस इस संस्कृति का आनंद लीजिए।

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जिस तरह से ब्रह्मांड विकसित हुआ है, इन सबकी जानकारी अपने भीतर झांकने से ही मिल सकती थी। हम न जाने कितना पैसा, समय और ऊर्जा इन चीजों को ढूंढने में लगा चुके हैं।
इसकी शब्दावली की अपनी एक खास पहचान है, क्योंकि यह एक ऐसे पहलू के बारे में बात कर रही है जो हमारी तार्किक समझ के दायरे में नहीं है। लेकिन इसे तार्किक ढंग से बताना ज्यादा अच्छा है। तो कहानी कुछ इस तरह है - शिव सो रहे हैं। जब हम यहां शिव कहते हैं तो हम किसी व्यक्ति या उस योगी के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, यहां शि-व का मतलब है “वह जो है ही नहीं”। जो है ही नहीं, वह सिर्फ सो सकता है। इसलिए शिव को हमेशा ही डार्क बताया गया है।

शिव सो रहे हैं और शक्ति उन्हें देखने आती हैं। वह उन्हें जगाने आई हैं क्योंकि वह उनके साथ नृत्य करना चाहती हैं, उनके साथ खेलना चाहती हैं और उन्हें रिझाना चाहती हैं। शुरू में वह नहीं जागते, लेकिन थोड़ी देर में उठ जाते हैं। मान लीजिए कि कोई गहरी नींद में है और आप उसे उठाते हैं तो उसे थोड़ा गुस्सा तो आएगा ही, बेशक उठाने वाला कितना ही सुंदर क्यों न हो। अत: शिव भी गुस्से में गरजे और तेजी से उठकर खड़े हो गए। उनके ऐसा करने के कारण ही उनका पहला रूप और पहला नाम रुद्र पड़ गया। रुद्र शब्द का अर्थ होता है - दहाडऩे वाला, गरजने वाला।

मैंने एक वैज्ञानिक से बिग बैंग के धमाकों के बारे में पूछा - अगर कई धमाकें हों, तो क्या वह एक गर्जना जैसी नहीं होगी? अगर धमाकों की एक श्रृंखला बन जाए तो वह ऐसे ही होगा, जैसे किसी इंजन की आवाज हो। मैंने फिर पूछा - क्या केवल एक ही धमाका था या यह लगातार होने वाली प्रक्रिया थी? वह कुछ सोचकर बोला - यह एक धमाका नहीं हो सकता, यह धमाका एक पल से ज्यादा लंबा चला होगा। फिर मैंने पूछा - तो आप इसे धमाका क्यों कह रहे हैं? क्या यह एक गर्जना जैसा नहीं है? जैसे कि शिव हुंकार भरकर खड़े हो गए हों।

अब इस वैज्ञानिक ने एक बड़ा धमाका होने के बाद की पहली तस्वीर पेश की जो एक खंभे की तरह दिखती थी, जिसमें ऊपर के सिरे पर छोटे-छोटे मशरूम लगे हुए हैं। यह ठीक वैसी दिखती है जैसा कि योगिक विद्या में हमेशा से बताया गया है। इसीलिए ऐसा कहा गया कि वह उठ खड़े हुए और निर्माण के लिए तैयार हो गए। तो इसे लिंग का नाम दिया गया है। चूंकि हम इंसान हैं इसलिए हम सोचते हैं कि जीवन की रचना का मतलब कामुकता है और इस क्रिया में शरीर भी भाग लेता है। इसीलिए हम कहते हैं कि शिव ने जो पहला रौद्र रूप लिया, उसका रूप लिंग के समान था।

जब शिव को शक्ति ने जगाया तो वे गरजे, उठ खड़े हुए और धीर-धीरे शांत हो गए। वह कुछ समय तक रूद्र रूप में थे। जब उनका गुस्सा ठंढ़ा हुआ तो उन्होंने दीर्घवृत्ताभ (इलिप्सॉइड) का रूप ले लिया। आज के वैज्ञानिकों का कहना है - दीर्घवृत्ताभ पहली आकृति है और यह सारी सृष्टि उसी आकार में थी। यह दीर्घवृत्ताकार आकृति गैस का विशाल पिंड थी, जो तब भी गर्जना कर रही थी। लेकिन धीरे-धीरे वह गैसीय पिंड ठंडा होता गया। इस शीतलता के कारण इस जगत की रचना हुई। इसी के समकक्ष योग कहता है कि जब शक्ति ने शिव को जगा दिया तो वह गुस्से में दहाड़ते हुए उठे। वह कुछ समय के लिए रूद्र बन गए थे। जब उनका गुस्सा ठंडा हुआ तो वह दीर्घवृत्ताभ बन गए, जिसे हम लिंग कहते हैं। जब शिव ने शक्ति को देखा, वह उन पर मोहित होकर उठ खड़े हुए। और इस तरह उन्होंने लिंग का रूप धारण किया।

शिव सो रहे हैं और शक्ति उन्हें देखने आती हैं। वह उन्हें जगाने आई हैं क्योंकि वह उनके साथ नृत्य करना चाहती हैं, उनके साथ खेलना चाहती हैं और उन्हें रिझाना चाहती हैं।
फिर धीरे-धीरे शक्ति के प्रेम के कारण वे शांत होते गए। विज्ञान के अनुसार भी ये गर्म गैसें ठंडी हुईं और इस जगत का निर्माण हो गया। पूरा जगत इसी तरह से बना है। इस तरह हमारे पास दोनों मौजूद हैं- डार्क मैटर भी और डार्क एनर्जी भी। यहां शिव को काला माना गया है और शक्ति का प्रथम रूप या डार्क एनर्जी को काली कहा जाता है।

हमारी यह सृष्टि दीर्घवृत्त के आकार में है, जो ऊष्मा, गैसों के फैलाव और संकुचन तथा उनके द्रव्यमान की सघनता पर निर्भर है। इसका ज्यादातर हिस्सा खाली है। यहां-वहां द्रव्य के कण, तारे, ग्रह और बाकी आकाशीय पिंड बिखरे हुए हैं। हमारे हिसाब से यह असाधारण है, लेकिन वास्तव में अगर आप देखें तो ज्यादातर चीजें अब भी आकार नहीं ले पाई हैं। बस थोड़ा सा हिस्सा ही सघन होकर पिंड का रूप ले सकी है और बाकी भाग खाली है। जब हम आकाश की तरफ  देखते हैं तो ऐसा लगता है जैसे रचना के कुछ बिंदु भर ही हैं, बाकी बहुत बड़ा भाग खाली है।

विज्ञान ने जो बात इतना गोल-गोल घूमने के बाद समझा है, उसे तो बहुत पहले समझा जा चुका था। यह शरीर भी वैसे ही है, जैसे कि यह संपूर्ण सृष्टि। आज अगर आप कोई पेड़ काटें (कृपया ऐसा काम न करें) तो आपको उसके अंदर छल्ले दिखाई देते हैं। ये छल्ले आपको वो सब कुछ बता सकते हैं जो उनके जीवन-काल में इस धरती पर घटित हुआ है। इसी तरह अगर आप इस शरीर को देखें तो इसे खोले बिना ही इससे आपको पता चल जाएगा कि यह सारी रचना कैसे हुई।

जिस तरह से ब्रह्मांड विकसित हुआ है, इन सबकी जानकारी अपने भीतर झांकने से ही मिल सकती थी। हम न जाने कितना पैसा, समय और ऊर्जा इन चीजों को ढूंढने में लगा चुके हैं, लेकिन अगर आप अपने भीतर देखने को तैयार हैं, तो बस देखने भर से ही हर प्राणी के लिए इन पहलुओं को जानना संभव है।

संपादक की टिप्पणी: जानें शिव के अन्य आयामों के बारे में, पढ़ें यह ब्लॉग

Image courtesy: Laxman Thapa