अपने देश को हम भारत, हिंदुस्तान और इंडिया इन तीनों नामों से बुलाते हैं। क्या है इन नामों का इतिहास और किस तरह की समझ और भावनाएं जुड़ी हुई हैं इन तींनों नामों से?

कुछ दिनों पहले जानी-मानी हस्ती किरण बेदी ने भारत के नाम और संस्कृति से जुड़े विषय पर सद्‌गुरु से बातचीत की। पेश है उस बातचीत की एक कड़ी:

किरण बेदी:

क्या वही हिन्दुस्तान, भारत था? क्या आज का इंडिया उससे अलग है? क्या इंडिया बदल गया है और उसने भारत को बदल दिया है?

सद्‌गुरु:

भारत बना है भा-र-त से मिलकर। जिसमें ‘भा’ का मतलब है- भाव। सुनना, देखना, चखना, सूंघना व स्पर्श करना अलग-अलग तरह के भाव या संवेदनाएं हैं। जीवन के प्रति आपका पूरा अनुभव फिलहाल इंद्रियों पर आधारित है। दूसरे शब्दों में कहें तो आप की संवेदनाएं ही आपके अनुभवों के आधार हैं। भा का मतलब है, भाव या संवेदना, जिससे भावनाएं उत्पन्न होती हैं। ‘रा’ का आशय राग से है। यह राग आपका नहीं है, सृष्टि ने इसे पहले ही तैयार कर रखा है। अब बस आपको वो लय ढूंढनी है, जो ‘त’ यानी ताल हुई। अगर आपको सही लय या ताल मिल गई तो आप एक शानदार इंसान हैं। अगर आप इस लय से चूक गए तो जीवन प्रक्रिया आपको रौंद देगी।

हम लोग इस देश को भारत कहते हैं। इस देश के इतिहास में महान शासकों में एक शासक भरत हुए हैं। कहते हैं कि इस देश का नाम उनके नाम पर भारत पड़ा।

देश का नाम भारत से बदलकर इंडिया रखना एक गंभीर गलती थी। जब भी कोई आक्रमणकारी किसी देश को जीतता है तो सबसे पहले वह उसका नाम बदल देता है। यह लोगों पर प्रभाव जमाने की और उन्हें गुलाम बनाने की तकनीक है।
लेकिन असलियत में उनका नाम ‘भरत’ इस देश के नाम पर पड़ा। यहां इतने ज्यादा भरत, भारत और भारती हुए हैं, जिनका नाम इस देश के नाम पर रखा गया। राजा भरत के नौ बेटे थे, लेकिन जब राज्य का उत्तराधिकार सौंपने की बात आई तो उन्होंने अपना राज्य भूमन्यु को दिया, जो भारद्वाज ऋषि का पुत्र था। यह बालक जंगल में बड़ा हुआ था। जब वह पहली बार राजदरबार में आया तो राजा ने उसे देखते ही कहा कि इसी बच्चे को राजा बनना चाहिए, मेरे बेटों को नहीं। लोगों ने जब यह सुना तो वे हैरान रह गए। दरअसल, राजा के नौ पुत्र न सिर्फ अपने राज्याभिषेक की प्रतीक्षा कर रहे थे, बल्कि उनमें से कौन राजा बनेगा, इसे लेकर आपस में लड़ भी रहे थे। लोगों ने सवाल किया- ‘यह कौन है? यह तो जंगल में पलकर बड़ा हुआ है।’ इस पर भरत ने जवाब दिया- ‘मैं उसकी आंखों में एक जबदस्त प्रतिभा और उसके दिल में एक धधकती हुई आग देख रहा हूं। यह एक सुयोग्य और स्थिर-चित्त बालक है। इसलिए इसी को राजा होना चाहिए।’ हजारों साल पहले घटित यह घटना इस देश में लोकतंत्र का पहला उदाहरण था। मुझे उम्मीद है कि हम आज इसका अनुसरण करते हैं।

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किरण बेदी:

अपने देश का नाम भारत से बदलकर इंडिया करने में क्या हमने गलती की?

सद्‌गुरु:

देश का नाम भारत से बदलकर इंडिया रखना एक गंभीर गलती थी। जब भी कोई आक्रमणकारी किसी देश को जीतता है तो सबसे पहले वह उसका नाम बदल देता है। यह लोगों पर प्रभाव जमाने की और उन्हें गुलाम बनाने की तकनीक है। अगर आप अफ्रीकी-अमेरिकी इतिहास पर नजर डालें तो जब अफ्रीकी लोग अमेरिका लाए गए तो सबसे पहले अमेरिकियों ने उनका नाम छीन कर उन्हें कोई मूर्खतापूर्ण नाम दे दिया। कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी किया गया। तिरुअनंतपुरम, त्रिवेंद्रम हो गया और चेन्नै मद्रास। अंग्रेजी में बोलेंगे तो इसका उच्चारण होगा ‘मैडरास’ अब हमें पता नहीं कि हम ‘मैड’ यानी पागल हैं या फि र ‘रास्कल’ यानी धूर्त। इसी तरह देश का नाम इंडिया हो गया।

भा का मतलब है, भाव या संवेदना, जिससे भावनाएं उत्पन्न होती हैं। ‘रा’ का आशय राग से है। यह राग आपका नहीं है, सृष्टि ने इसे पहले ही तैयार कर रखा है। अब बस आपको वो लय ढूंढनी है, जो ‘त’ यानी ताल हुई।
आखिर इसका मतलब क्या है? इसका कोई मतलब नहीं है। अगर मैं आपको एक अर्थहीन नाम दूं तो आप मेरे सामने एक अर्थहीन और मूर्ख इंसान बन जाएंगे, क्योंकि मेरे पास एक अर्थपूर्ण नाम है, मेरे पास एक परंपरा है, एक संस्कृति है- आपके पास कुछ नहीं है। तो इस संदर्भ में हम इंडिया हो गए।

किसी भी देश की अवधारणा हरेक व्यक्ति के दिलोदिमाग में उतरनी जरूरी है, क्योंकि कोई भी देश सिर्फ एक विचार भर है। जब यह विचार आपके दिमाग में कौंधता है और आपके दिल में उतरता है और फिर जब भावनाएं जागती हैं तो वह सच्चा देश कहलाता है। वर्ना तो राष्ट्र महज कागजों पर होते हैं। आज यह हमारे लिए यह एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है।

1947 में अंग्रेजों के भारत छोडने के बाद सबसे पहला काम जो हमें करना चाहिए था, वह था इसका नाम बदलना। हमें इसका नाम इस तरह बदलना चाहिए था, ताकि यह हरेक देशवासी के दिल व दिमाग में गूंज सके। आज आप भारतीय देश के लिए एक अंग्रेजी नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस देश में महज कुछ प्रतिशत लोग ही ठीक से अंग्रेजी बोल सकते हैं। जबकि बाकी सब इससे बचे हुए हैं। मैं देश के मौजूदा प्रधानमंत्री से एक गुजारिश करना चाहूंगा कि हमें अपने देश का फिर से ऐसे नाम बदल देना चाहिए, ताकि वो नाम यहां के हरेक देशवासी के दिल में धडक़ने लगे।

मुझे पता है कि बौद्धिक लोगों का एक बड़ा तबका कहने लगेगा, ‘आखिर नाम में क्या रखा है?’ ठीक है, तो आप अपना नाम टोबू या मोमो रख लीजिए। हालांकि लोग ऐसा कर रहे हैं। मैं किसी भी चीज के खिलाफ नहीं हूं। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि जब आप अपने नाम का उच्चारण करते हैं तो उस नाम के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक मायने तो होते ही हैं, साथ ही उस ध्वनि का अपना एक अस्तित्व और ताकत भी होती है। ‘भारत’ में एक ताकत है। यह ताकत इस देश के हरेक वासी के दिल में गूंजनी चाहिए। एक भारतीय होने का मतलब यानी जो मूल भाव है, वह हरेक देशवासी के भीतर उभरना चाहिए। क्योंकि अगर हरेक देशवासी की आकांक्षाएं देश की आकांक्षाओं से नहीं मिलेंगी तो फिर वो देश, देश नहीं होगा।

किरण बेदी:

अगर हम इंडिया को ‘भारत’ कहना शुरू कर दें तो क्या यहां महिलाएं खुद को पहले से ज्यादा सुरक्षित महसूस करना शुरू कर देंगी? आप तो जानते ही हैं कि अपने यहां महिलाओं के साथ कैसा बर्ताव हो रहा है, खासकर ग्रामीण भारत और समाज के कमजोर तबकों में।

सद्‌गुरु:

ऐसा नहीं है कि नाम ही सबकुछ करेगा, लेकिन नाम लोगों में देश के प्रति भावना व प्रेरणा जगाने का काम करता है। फिलहाल तो उनमें सिर्फ हारमोन जनित भावनाएं ही काम कर रही हैं, देश के लिए किसी तरह की भावनाएं नहीं हैं। इसलिए महिलाओं के साथ इस तरह की घटनाएं घट रही हैं।

एक देश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आप अपनी पसंद-नापसंद से आगे जाकर अपने जूनुन, जुड़ाव, और सरोकारों का विस्तार करते हैं। आप पूछ सकते हैं कि ‘हम पूरी दुनिया के बारे में ऐसा क्यों नहीं सोच सकते?’ एक आध्यात्मिक व्यक्ति होने के नाते मैं कोई राष्ट्रवादी इंसान नहीं हूं। मैं इस धरती के हर इंसान, हर प्राणी को एक ही भाव या नजर से देखना चाहूंगा। मैं ऐसा ही हूं। लेकिन कोई भी देश मानवता का एक बड़ा हिस्सा है और जिसके प्रति फिलहाल आप समर्पित हो सकते हैं। जब आप इस देश व उसके कल्याण के प्रति समर्पित होते हैं तो आप भले ही दुनिया के सवा सात अरब लोगों के प्रति समर्पित न हो रहे हों, लेकिन कम से कम सवा अरब लोगों के प्रति तो समर्पित होते ही हैं। अपने निजी व्यक्तित्व के प्रति समर्पित होने की अपेक्षा इतनी बड़ी मानवता के प्रति समर्पित होना एक महान कदम होगा।

संपादक की टिप्पणी: पढ़ें इसी श्रृंखला की एक अन्य कड़ी