नमस्ते, मेरा नाम धन्या रवि है।

मैं एक बहुत कम पाए जाने वाले अनुवांशिक (माता-पिता से मिलने वाले) रोग के साथ जन्मी हूँ, जिसे ओस्टोजेनेसिस इमपरफेक्टा कहते हैं, या सामान्य भाषा में भुरभुरी अस्थि(ब्रिटल बोन्स). इसका अर्थ यह है कि मेरी हड्डियां, कांच की तरह, बहुत ही नाजुक हैं। किसी के शरीर में हड्डियों की जितनी संख्या होती है, उससे ज्यादा बार, मेरी हड्डियां टूट चुकी हैं। आज एक प्रश्न से भी ज्यादा मेरी एक विनम्र इच्छा है कि कभी भविष्य में, बहुत अच्छा होगा आप विकलांगता के बारे में कुछ कहें। मेरा विश्वास है कि इससे अपंग लोगों की तरफ लोगों का ज्यादा ध्यान जायेगा।

हम खुद भी अपंग कहला सकते हैं

सद्‌गुरु : यह हमारे लिये एक सम्मान की बात है कि आप यहां हैं। जीवन अनेक प्रकार से सामने आता है लेकिन हमारे समाज में हम यह तय कर लेते हैं कि क्या सामान्य है और क्या नहीं। लेकिन असल में, जब हम ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जिसके दोनों हाथ पैर ठीक हैं तो क्या वो भी किसी अन्य व्यक्ति की तुलना में, जीवन के किसी अन्य आयाम में अपंग नहीं कहला सकता? यदि आप उसाइ बोल्ट के साथ दौड़ते हैं, तो क्या दोनों पैर अच्छे, मजबूत होने के बावजूद आप अपने को एक अपंग की तरह महसूस नहीं करेंगे।

तो हमें खुद पर या किसी अन्य पर, किसी भी प्रकार की छाप नहीं लगानी चाहिये - क्योंकि जीवन बहुत रूपों में प्रकट होता है। आपको इस बात का सम्मान करना चाहिये और अपनी ओर से जो हो सके वो करना चाहिए, क्योंकि यह एक प्रकार का चमत्कार है। आज सुबह आपने जो इडली या डोसा खाया, वह उसी मिट्टी से आया है जिस पर हम चलते हैं और वह भोजन आपके लिये मांस और हड्डी बन जाता है। यह एक अद्भुत, जटिल प्रक्रिया है जिसको हमने दुर्भाग्य से महत्वहीन मान लिया है। इस प्रक्रिया में कुछ चीज़ें कभी-कभी वैसे काम नहीं करतीं जैसा हम चाहते हैं।

तो कभी अपने आप को अपंग मत कहिये। आप एक तरह के हैं, मैं दूसरी तरह का हूँ। कोई व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि उसका शरीर या मन एकदम परिपूर्ण है। मैं एक तरह से अपंग हूँ, आप दूसरी तरह से अपंग हैं। अगर हम अपनी तुलना दूसरों से करते हैं तो हम सभी किसी न किसी रूप में अपंग ही है।

 

भीतरी स्थिति के मामले में कोई अपंग नहीं है

आपकी हड्डियां टूटती हैं, यह बहुत बड़ी परेशानी है और दुर्भाग्यपूर्ण है। लेकिन सामान्य कहलाए जाने वाले ज्यादातर लोग अपने दिमाग को रोज तोड़ रहे हैं। वे उसे दबाव, तनाव, व्यग्रता, चिंता आदि कई नाम देते हैं, लेकिन वास्तव में वे किसी न किसी रूप में अपने दिमाग को तोड़ रहे हैं। यह शरीर एक यांत्रिक(मैकेनिकल) प्रक्रिया है। इसके साथ कभी-कभार कुछ चीज़ें गलत हो सकती हैं। यह जन्म के समय सामान्य हो सकता है और बाद में इसमें कुछ गड़बड़ हो सकती है, या गर्भ में ही, निर्माण के दौरान कुछ गलत हो सकता है। इसका उस व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। इसका संबंध बहुत सी अलग-अलग चीज़ों से है क्योंकि यह प्रक्रिया इतनी ज्यादा जटिल है, कि इसमें कुछ चीज़ें गलत हो सकती हैं।

कोई अन्य यह तय नहीं कर सकता कि मैं अपने अंदर कैसे रहता हूँ। इस अर्थ में देखा जाए, तो कोई भी अपंग नहीं है।

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लेकिन इससे यह तय नहीं होना चाहिये कि आप अपना जीवन कैसे जीते हैं। हम शारीरिक रूप से कैसे रहते हैं, यह बहुत सी बातों पर निर्भर है। लेकिन हमारे सिवाय कोई भी यह तय नहीं कर सकता - कि हम अपने आप में कैसे रहते हैं। कोई अन्य यह तय नहीं कर सकता कि मैं अपने अंदर कैसे रहता हूँ। इस अर्थ में देखा जाए, तो कोई भी अपंग नहीं है।

 

सच्ची समानता प्राप्त करना

शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक आयामों से परे, जीवन का हर रूप एक सा है। इसके लिये बदकिस्मती से, हमें एक ऐसे शब्द का उपयोग करना पड़ता है जो अब बहुत भ्रष्ट हो गया है – वो शब्द है "आध्यात्मिकता"। आध्यात्मिक प्रक्रिया का अर्थ यह नहीं है कि हम ऊपर देखें या नीचे देखें। इसका सार यह है कि हम अंदर की ओर मुड़ें और अपनी शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक संरचना से परे के आयाम को छुएँ। ऐसी अवस्था में, आप में, मुझमें और अन्य किसी में, कोई अंतर नहीं है।

यही कारण है कि आध्यात्मिकता बहुत महत्वपूर्ण है। हम समानता के बारे में चाहे जितनी बातें कर लें, लेकिन जब हम शरीर और मन को आगे रख कर बात करते हैं तब तक कोई समानता नहीं हो सकती। लेकिन जब हम शरीर और मन के परे जा कर, जीवन के इस आयाम को आगे लाते हैं, तब सब कुछ एक जैसा होता है।

 

इंसानों को ये चीज़ अनुभव करनी चाहिए

अगर यह एक अनुभव मानवता में आ जाये तो आपको यहां एकदम शानदार ढंग से समन्वित(जिसमें सभी शामिल हों) अस्तित्व दिखेगा। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि कौन किस योग्यता के साथ यहां आया है। प्रत्येक जीवन के लिये यहाँ स्थान होगा। लेकिन आज हम शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक क्षमताओं के आधार पर तय कर रहे हैं कि यह अच्छे स्तर का है और यह कम स्तर का। ऐसा मत कीजिये।

प्रकृति ने हमे यह संभावना दी है - हमें बुद्धि प्रदान की है - जिससे हम जीवन के इन सब रूपों से ऊपर उठें।

क्या आप यह कह सकते हैं कि एक गाजर का या घास के कीड़े का जीवन आपसे कम है? वे आराम से आपके बिना रह सकते हैं लेकिन आप उनके बिना नहीं रह सकते। प्रकृति ने हमे यह संभावना दी है - हमें बुद्धि प्रदान की है - जिससे हम जीवन के इन सब रूपों से ऊपर उठें। जब आप एक विशेष स्तर तक ऊपर उठते हैं, और अगर आप बेवकूफ हैं तो आपको यह लगेगा कि आप दूसरों पर हावी हो सकते हैं। नहीं। यदि आप ऐसे स्तर पर आते हैं, जहां बाकी जीवन जाने-अनजाने में आपकी ओर उम्मीद से देख रहा है तो आपके लिये यह समय सभी को अपने साथ शामिल करने का और सभी के साथ घुलमिल जाने का है। यह प्रभुत्व(हावी होना) जमाने का समय नहीं है क्योंकि अगर आप ऐसा करते हैं तो आप सबसे दूर हो जायेंगे।

 

 

सभी की कल्पना से परे का जीवन

ये मेल तभी होगा, जब मनुष्यों को कम से कम थोड़ा सा भीतरी अनुभव होगा। ऐसा अनुभव जो शरीर और मन से परे है। आपका शरीर अलग है, मेरा अलग है। जब तक हम जीवित हैं, तब तक हमें ऐसा ही लगता रहेगा। जब वे हमें दफना देंगे तब पता चलेगा कि सब मिट्टी एक ही है। मेरा मन अलग है, आपका अलग है। लेकिन जब बात जीवन की आती है, तो मेरा जीवन और आपका जीवन ऐसा कुछ नहीं होता। यह एक जीवित ब्रह्मांड है। प्रश्न यही है कि आपने जीवन के कितने भाग पर अधिकार कर लिया है? यही महत्वपूर्ण है - आपके शरीर या दिमाग का साइज़ नहीं। आप कितना बड़ा जीवन जीते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कितना जीवन अपने अधिकार में ले लिया है!

योग का अर्थ है, एकीकरण(एक हो जाना)। एकीकरण का अर्थ है कि आप सचेतन होकर अपने व्यक्तित्व को तोड़ देते हैं।

आपके पास इस समय जितना जीवन है, अगर आपको उससे अधिक जीवन पर अधिकार करना है तो आपको अपनी व्यक्तित्व की सीमाओं को, बंधनों को खोलना होगा। आपका व्यक्तित्व धीरे धीरे एक ऐसे पिंजड़े में बदल रहा है जिसे कोई तोड़ नहीं सकता। यदि आप अपने इस व्यक्तित्व को तोड़ लेते हैं, मिटा देते हैं तो उसी को हम योग कहते हैं।

योग का अर्थ अपने शरीर को तोड़ना, मरोड़ना नहीं है, न ही सिर के बल खड़ा होना है। योग का अर्थ है, एकीकरण(एक हो जाना)। एकीकरण का अर्थ है कि आप जागरूक होकर अपने व्यक्तित्व को तोड़ देते हैं। अब आपके भीतर का जीवन किसी की भी कल्पना से परे है। इस विशाल स्तर के जीवन के कारण हर चीज़ स्वाभाविक रूप से आपका सहयोग करने लगती है।

 

 

संपादक का नोट : चाहे आप एक विवादास्पद प्रश्न से जूझ रहे हों, एक गलत माने जाने वाले विषय के बारे में परेशान महसूस कर रहे हों, या आपके भीतर ऐसा प्रश्न हो जिसका कोई भी जवाब देने को तैयार न हो, उस प्रश्न को पूछने का यही मौक़ा है! - unplugwithsadhguru.org
 

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