गुरु बनाते हैं सही कॉकटेल

सद्गुरु बता रहे हैं कि एक जिज्ञासु के जीवन में एक गुरु की क्या भूमिका है और एक जीवित गुरु का क्या महत्व है।

सद्‌गुरु: अभी आप जिन चीजों का अनुभव कर पाते हैं, वे हैं आपका शरीर, आपका मन और आपकी भावनाएं। आप कुछ हद तक उन्हें जानते हैं और यह अनुमान लगा सकते हैं कि इन तीनों चीजों के घटित होने के पीछे एक ऊर्जा जरूर होगी। ऊर्जा के बिना यह सब घटित नहीं हो सकते। मसलन, माइक्रोफोन ध्वनि को बढ़ाकर पेश करता है। चाहे आप माइक्रोफोन के बारे में कुछ नहीं जानते, फिर भी आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसे किसी स्रोत से ऊर्जा मिलती है।

आपके जीवन की यही चार हकीकतें हैं: शरीर, मन, भावना और ऊर्जा। आप अपने साथ जो भी करना चाहते हैं, उसे इन चार स्तरों पर होना चाहिए।

जब आप अपनी भावनाओं के जरिये परम तत्व तक पहुंचने की कोशिश करते हैं, तो इसे भक्ति योग या भक्ति का मार्ग कहते हैं। अगर आप अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए परम तत्व तक पहुंचने की कोशिश करते हैं, तो इसे ज्ञान योग, यानी बुद्धि का मार्ग कहते हैं। अगर आप अपने शरीर या शारीरिक क्रिया के द्वारा परम तत्व तक पहुंचना चाहते हैं, तो इसे कर्म योग कहते हैं। अगर आप अपनी ऊर्जा को रूपांतरित करते हुए परम तत्व तक पहुंचने की कोशिश करते हैं, तो इसे क्रिया योग कहते हैं, जिसका अर्थ है आंतरिक कर्म।

आप इन चार तरीकों से ही खुद पर मेहनत कर सकते हैं। किसी व्यक्ति में हृदय प्रबल हो सकता है तो किसी में दिमाग। किसी व्यक्ति में हाथ प्रधान हो सकते हैं। मगर हर कोई इन चारों का एक मिश्रण होता है, इसलिए आपको इन चारों के मिश्रण की जरूरत है। सही अनुपात में इन चारों का मिश्रण आपके लिए सबसे असरदार होता है। एक व्यक्ति के लिए जो सही है, हो सकता है कि वह आपके लिए कारगर न हो। सही अनुपात में मिश्रित होने पर ही वह आपके लिए काम करता है। इसीलिए आध्यात्मिक मार्ग पर एक जीवित गुरु को इतना महत्वपूर्ण समझा गया है। वह आपके लिए सही मिश्रण तैयार करता है। वरना, आपको उसका असर नहीं होगा।

आपके सभी अनुभव शरीर, मन, भावना और ऊर्जा के चार मूलभूत तत्वों पर केंद्रित होते हैं। उन पर ध्यान दिए बिना कोई आगे की ओर नहीं बढ़ सकता।

योगिक शिक्षा में एक बहुत सुंदर कहानी है। एक दिन एक ज्ञान योगी, एक भक्ति योगी, एक कर्म योगी और एक क्रिया योगी एक साथ जंगल में टहल रहे थे। आमतौर पर ये चारों एक साथ नहीं रह सकते,क्योंकि ज्ञान योगी योग के किसी दूसरे प्रकार को तुच्छ समझता है। बुद्धि का इस्तेमाल करने के कारण वह हर किसी को घृणा से देखता है। भावनाओं और प्रेम से भरपूर भक्ति योगी समझता है कि ज्ञान, कर्म और क्रिया योग समय की बर्बादी हैं। बस ईश्वर से प्रेम करने से सब कुछ हो सकता है। कर्म योगी सोचता है कि हर कोई आलसी है और उनके पास पास बस दिखावटी सिद्धांत हैं। बस कर्म किए जाने की जरूरत है। व्यक्ति को सिर्फ कर्म करना चाहिए। क्रिया योगी सबको उपहास की दृष्टि से देखता है, क्योंकि संपूर्ण जीवन ऊर्जा ही तो है। यदि आप अपनी ऊर्जा को रूपांतरित नहीं करते, तो चाहे आप ईश्वर की इच्छा करें या किसी और चीज की, कुछ नहीं हो सकता।

तो ये चार लोग कभी एक साथ नहीं रह सकते। लेकिन आज वे एक साथ टहल रहे थे। एकाएक बारिश होने लगी। भीगने से बचने की जगह ढूंढने के लिए चारों ने भागना शुरू कर दिया। उन्हें एक प्राचीन मंदिर मिला, जिसमें सिर्फ छत थी, दीवारें नहीं। मंदिर के बीच में एक शिवलिंग था। ये लोग तूफान से बचने के लिए मंदिर के अंदर चले गए। तूफान और प्रचंड हो गया और मूसलाधार बारिश भी होने लगी। तूफान की प्रचंडता मंदिर के अंदर भी आ रही थी, इसलिए वे चारों शिवलिंग के करीब जाते गए। और कोई तरीका नहीं था क्योंकि हर ओर से बौछारें आ रही थीं। फिर तूफान और तेज हो गया। उसके वेग से बचने का अब बस एक ही तरीका था - वे चारो लिंग से चिपक कर बैठ गए। अचानक एक जबर्दस्त चीज हुई। वहां पांचवीं मौजूदगी प्रकट हो गई, उनके सामने ईश्वर आ गए। फिर उन सब ने कहा ‘अभी ही क्यों? इतने सालों तक हम आपकी आराधना करते रहे और कुछ नहीं हुआ। तो अब क्यों?’

तब शिव बोले, ‘आखिरकार तुम चारों एक साथ हो गए। इस क्षण की मैं कब से प्रतीक्षा कर रहा था।’

आपके सभी अनुभव शरीर, मन, भावना और ऊर्जा के चार मूलभूत तत्वों पर केंद्रित होते हैं। उन पर ध्यान दिए बिना कोई आगे नहीं बढ़ सकता। आप अभी जहां हैं, वहीं से यात्रा शुरू कर सकते हैं।