जिस गुंबद में ध्यानलिंग स्थित है, उसे ढाई लाख ईंटों से तैयार किया गया और उसका वज़न 700 टन के लगभग है। इसकी ऊँचाई 33 फीट तथा व्यास 76 फीट है, यह एक भी स्तंभ की सहायता लिए बिना खड़ा है। इस वास्तुशिल्प के अद्भुत नमूने में एक सादी सी तकनीक प्रयोग में लाई गई है वास्तुशिल्पis this – सारी ईंटें एक साथ ही गिरने की कोशिश कर रही हैं! परंतु जिस तरह उन्हें एक साथ बांधा गया है, वे कभी नहीं गिर सकतीं। हर ईंट को उसकी पड़ोर्सी इंट का सहारा है, इसी तरह आगे से आगे एक श्रृंखला बनती गई। इस तरह का यह नमूना, गुंबद को कम से कम 5000 वर्षों की जीवन अवधि प्रदान करता है।

सद्‌गुरु: मानो आप सब एक ही द्वार से बाहर जाना चाह रहे हैं, परंतु कोई नहीं जा सकता क्योंकि आप सब दरवाजे में अटक गए हैं। अगर एक भी व्यक्ति ज़रा सा शिष्टाचार दिखाते हुए, कदम पीछे हटा लेगा तो सभी जा सकते हैं। पर मेरा विश्वास करें, ईंटों में इस तरह का शिष्टाचार नहीं पाया जाता!

यह एक नायाब नमूना है - जितना कोमल, उतना ही ठोस और शक्तिशाली। मैं चाहता हूँ कि आप इसका अनुभव लें।

यह दुःसाहस से भरी रचना है। जिसे साइकिल की सवारी नहीं करनी आती, वह तो यही कहेगा, ”जरा इन संकरे पहियों को तो देखो, ये सुरक्षित नहीं हैं। कहीं ऐसा हो गया, कहीं वैसा हो गया।“ संसार इस तरह नहीं चलता। सर्जक भी तो ऐसा ही है - वह कितना दुःसाहस या निडरता से भरा है। ज़रा उसके कामों पर भी तो गौर करो, अगर आपके भीतर अगली श्वास न जाए तो आप वहीं समाप्त हो जाएँगे। पर फिर भी यह देह कितनी ताकतवर है। ज़रा इंसानी कामों को देखें। यह नमूना अनूठा और दुःसाहस से भरा होने के कारण ही अद्भुत है - जितना कोमल, उतना ही ठोस और शक्तिशाली, मैं चाहता हूँ कि आप इसका अनुभव लें।

जो भी वस्तु प्रकाशित होती है, चाहे वह प्रकाश हो या ताप, सदा एक गोल घेरा बनाती है। अगर हमने कोई वर्गाकार इमारत बनाई होती, और आप संवेदनशील होते, तो आपको उस स्थान पर थोड़ा अटपटापन सा महसूस होता। इसलिए ध्यानलिंग के लिए गोल इमारत का बनना ज़रूरी था।

मैंने जिस तरह ध्यानलिंग के भवन-समूह के नमूने के लिए समझौता किया, वह मेरे जीवन का एक पहलू है, जो आज भी मुझे सिहरने पर विवश कर देता है। जब भी मैं वहाँ जाता हूँ, तो मैं जानता हूँ कि वह क्या हो सकता था और हमने अपने बजट और समय को देखते हुए, क्या बनाया है। प्रारंभ में, मैं इसे धरती से लगभग 60 फीट नीचे रखना चाहता था और इसके आसपास पानी का बड़ा सरोवर बनाना चाहता था। वह इसे बनाने का सबसे बढ़िया तरीका होता। पर जब हम इसे बना रहे थे, तो मुझे इसे जल्दी पूरा करना पड़ा क्योंकि मेरा जीवन एक विशेष चरण से हो कर गुज़र रहा था। समय और बजट की सीमाओं को देखते हुए, हमें इसे जल्दी-जल्दी तैयार करना था। इसके लिए मेरे पास एक प्लान बी था। वह भी बहुत महंगा था इसलिए हमें प्लान सी पर काम करना पड़ा। अब हम अपनी ओर से हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि प्लान सी को ही सुंदर बना कर सकें।

वास्तुशिल्प की दृष्टि से, ध्यानलिंग का गुंबद बहुत ही अनूठा है। अक्सर, गुंबद ताजमहल या गोल गुंबज के गुंबद की तरह अद्र्ध-गोलाकार होते हैं, किंतु हमने इसे एक बड़े अण्डाकार की तरह बनाने की सोची। यह स्टील, कंक्रीट या सीमेंट के बिना जिस तरह खड़ा है, इसे उस तरह बनाना किसी चुनौती से कम न था। इसीलिए ये गुम्बद अनूठा है। अगर आप सरसरी तौर पर देखें, तो यह आपको आधे गोले की तरह दिखेगा जबकि असल में यह अण्डाकार का एक हिस्सा है। हम इसे इस तरह बनाना चाहते थे क्योंकि लिंग भी दीर्घवृत्ताभ यानी अण्डाकार है। लिंग की ऊर्जा के लिए इससे बेहतर आकार नहीं हो सकता था। फिर हमने थोड़ा दुःसाहस से भरा कार्य किया और गुंबद में नौ फुट का छिद्र बना दिया ताकि गर्म हवा बाहर जा सके। प्रायः लोग यही मानते हैं कि गुम्बद में छिद्र नहीं बनाया जा सकता। लोग कहते हैं, ”गुंबद को बंद ही होना चाहिए अन्यथा यह गिर जाएगा।“ मैं कहता हूँ, ”चिंता मत करो। ये उस तरह से नहीं खड़ा है। यह गुंबद ग्रह के सभी बलों के साथ पूरी तरह से तालमेल में है।

ईशा योग केंद्र भूकंप के प्रति संवेदनशील है, इसलिए हमने गुंबद को रेत की नींव पर बनाया। हमने बीस फीट खोदा और उसे रेत से भर दिया ताकि वह कुशन की तरह काम कर सके। यह किसी भी तरह के कंपन को अवशोषित या सोख सकता है।

स्वयंसेवकों ने, इन ढाई लार्ख इंटों को मापा और गुंबद में लगाया। मैं उन्हें बैठ कर समझाता, ”देखो, इस बात का यह मतलब है, मैं इसे तुम्हारे हाथों में सौंप रहा हूँ। अगर किसी ने अपने काम में दो मिलीमीटर की भी गलती की, तो यह सारा ढाँचा नीचे आ जाएगा।“ स्त्री-पुरुष और बच्चे, दिन-रात, बैठ कर नाप-जोख करते, मैं इस इमारत को इसी तरह तैयार करना चाहता था, मैं चाहता था कि यह लोगों के प्रेम की नींव पर तैयार हो और ऐसा हुआ भी।