यक्ष महोत्सव - 2013: नृत्य और संगीत की झाकियां (भाग -1)
पूरे साल के इंतजार के बाद, आखिर आ ही पहुंचा - यक्ष महोत्सव! पिछले 4 दिनों से हर शाम देश के मशहूर कलाकारों के द्वारा संगीत और नृत्य की प्रस्तुतियां हो रही हैं, लिंग भैरवी मंदिर परिसर हर रोज नई सजावटों से दमक रहा है और जगह-जगह से आए दर्शकों, स्वयंसेवियों ...
पूरे साल के इंतजार के बाद, आखिर आ ही पहुंचा - यक्ष महोत्सव! पिछले 4 दिनों से हर शाम देश के मशहूर कलाकारों के द्वारा संगीत और नृत्य की प्रस्तुतियां हो रही हैं, लिंग भैरवी मंदिर परिसर हर रोज नई सजावटों से दमक रहा है और जगह-जगह से आए दर्शकों, स्वयंसेवियों और कलाकारों का जैसे मेला लगा हुआ है।
जी हां, वाकई यक्ष महोत्सव का मुग्धकारी माहौल सबको आनंदित कर रहा है।
आईए शामिल हो इस महोत्सव में...
3 मार्च (पहला दिन)
श्री टी एन कृष्णनन (कर्णाटक वायलिन वादक)
84 साल के महान कर्णाटक वायलिन वादक, श्री टी एन कृष्णनन, का जन्म दक्षिण भारत में संगीतज्ञों के परिवार में हुआ। उन्हें 1973 में पद्दमश्री और 1992 में पद्दम भूषण से भी सम्मानित किया गया।
इसके बाद, उन्होंने राग कल्याणी में 'निधि चला सुखमा-सन्निधि चला सुखमा’ पेश किया। इन पंक्तियों में कवि सोच में डूबा है कि निधि (धन-दौलत) और सन्निधि (भगवान राम से समीपता) में से कौन सा ज्यादा अच्छा है? यह समझाते हुए श्री कृष्णनन ने वहां बैठे दर्शकों को इसका फैसला खुद करने को कहा!
वहां मौजूद सभी लोगों ने गायन का भरपूर आनंद उठाया।
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4 मार्च (दूसरा दिन)
श्री अभिषेक लाहिरी (सरोद वादक)
सिर्फ 28 साल के श्री अभिषेक लाहिरी यक्ष उत्सव के सबसे छोटी उम्र के कलाकारों में से एक हैं। सरोद की हिन्दुस्तानी शास्त्रीय शैली में प्रशिक्षित, वे विख्यात सरोद वादक पंडित आलोक लाहिरी के पुत्र हैं। 5 साल के उम्र से सरोद सीख रहे श्री अभिषेक लाहिरी ने 10 साल की उम्र में अपना पहला कार्यक्रम पेश किया और उसके बाद फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
हालांकि उनकी शैली शाहजानपुर, मैहर और बीनकर घरानों की है, लेकिन पश्चिमी शास्त्रीय संगीत जैसे फैमिंगो,जैज़ और पश्चिम की पारम्परिक शैलियों में भी उनका काफी रूझान है। जापान के हिदेकी सूजी के साथ उनके म्यूजिक एल्बम 'आयोना ट्रायो’ को दुनिया भर में बहुत सराहा गया।
वीडियो का आनंद लें:
5 मार्च (तीसरा दिन)
सुश्री माधवी मुदगल (उडीसी नृत्य)
सुश्री माधवी मुदगल के पिता श्री विनय चन्द्र मौदगल्य ने ही भारत के विख्यात शास्त्रीय संगीत-नृत्य केन्द्र 'गंधर्व महाविद्यालय’ की स्थापना की। अपने गुरू श्री हरेकृष्ण बेहेरा के प्रशिक्षण में, सुश्री माधवी मुदगल ने सिर्फ चार साल की उम्र में अपना पहला कार्यक्रम पेश किया।
भरतनाट्यम और कथक में प्रशिक्षित होने के बावजूद, उन्होंने इन तीनों नृत्यशैलियों में से उडीसी को चुना और प्रसिद्ध उडीसी कलाकार श्री केलुचरण माहापात्रा की शिष्या बनीं। नृत्यकला में अपने योगदान के लिए 1990 में उन्हें पद्दमश्री से सम्मानित किया गया।
5 मार्च के यक्ष उत्सव में अपने कार्यक्रम की शुरूआत उन्होंने पारम्परिक 'मंगलाचरण’ से की और कार्यक्रम का अंत उन्होंने नृत्य और नृत्यांगना के एकीकार होने के जरिए आत्मा का शून्य में विलीन होने को दर्शाती पेशकश 'मोक्ष’ से की।
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6 मार्च (चौथा दिन)
पंडित उल्हास कशलकर (हिंदुस्तानी गायकी)
ग्वालियर, जयपुर और आगरा के तीनों घरानों में निपुण, पंडित उल्हास कशलकर, लुप्त होते पारम्परिक रागों को सही तरह से पेश करने के लिए जाने जाते हैं। कोलकत्ता की आई‐टी‐सी संगीत रिसर्च अकादमी में 1993 से गुरु के तौर पर काम कर रहे पंडित उल्हास कशलकर को 2010 में पद्दमश्री से सम्मानित किया गया।
पंडित उल्हास कशलकर ने कार्यक्रम की शुरूआत राग केदार में 'जोगी रवल’ से की। इसके बाद, उन्होंने एक ताल में 'तुम सुधर चतुर भय्या’ और राग मलकौंस के झप ताल में ’सुंदर बदन के’ पेश किए। उनके इन मधुर रागों और आलापों से आनंदित होकर दर्शक खुद-ब-खुद तालियां बजाकर पंडित उल्हास कशलकर का अभिनंदन करने लगे। कार्यक्रम के अंत में उन्होंने राग भैरवी में 'आयो फागुन मास’ सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।