मेरे जीवन को मिली एक नई दिशा: प्रहलाद कक्कड़
जाने-माने ऐड गुरु प्रहलाद कक्कड़ ने जब ईशा योग केंद्र पर सद्गुरु के सानिध्य में कुछ वक्त बिताया तो उन्हें अपने भीतर एक जबर्दस्त बदलाव का अहसास हुआ। इस अहसास के बारे में उनके विचार जानिए...
जाने-माने ऐड गुरु प्रहलाद कक्कड़ ने जब ईशा योग केंद्र पर सद्गुरु के सानिध्य में कुछ वक्त बिताया तो उन्हें अपने भीतर एक जबर्दस्त बदलाव का अहसास हुआ। इस अहसास के बारे में उनके विचार जानिए इस बातचीत के जरिए:
प्रहलाद कक्कड़: मैं पिछले दो वर्षों से ईशा से जुड़ा हूं। जब मैंने पहली बार सद्गुरु को देखा, तो उनका मुझ पर काफी गहरा असर हुआ। जब मैं यहां इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम के लिए आया था, उस समय मैंने यह नहीं सोचा था कि मेरा जीवन इस तरह बदल जाएगा। मुझे लगता है कि दो साल जो मैंने ईशा के साथ व्यतीत किए, बहुत ही स्फूर्तिदायक रहे हैं। सद्गुरु के सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में से एक न होते हुए भी मैं इस स्फूर्ति को लंबे समय तक बनाए रख पाने में कामयाब हूं।
प्रश्न: चीजों को देखने का आपका नजरिया इस सबसे किस तरह बदला है?
प्रहलाद कक्कड़: देखिए, मेरे बारे में एक इंसान के तौर पर लोगों का देखने का नजरिया बिल्कुल नहीं बदला है। वे बाहर से मेरे बदले हुए व्यवहार और तरीकों को नहीं जानते, लेकिन जो लोग मेरे साथ बैठते हैं और मुझे काफी समय से जानते हैं, उन्होंने फौरन जान लिया कि मेरे अंदर दो चीजें बदली हैं। पहली चीज तो यह है कि मेरा ऊर्जा स्तर जबर्दस्त तरीके से बढ़ा है। मेरी एकाग्रता के स्तर में भी बढ़ोतरी हुई है। मुझे लगता है, अब मैं उतना धैर्यहीन नहीं रहा, जितना इससे पहले मैं आमतौर पर दूसरे लोगों के साथ रहता था। मुझे बहुत बड़ी अनुकम्पा और समझ मिली। अब मैं लोगों पर हर वक्त सवार नहीं रहना चाहता। मैं अपना आपा भी आसानी से नहीं खोता, जो कि एक उल्लेखनीय बात है।
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प्रश्न: बहुत खूब। आश्रम का आपका अनुभव कैसा रहा?
प्रहलाद कक्कड़: मैं जो कुछ करना चाहता था, उन तमाम चीजों को लेकर मुंबई और भारत की दूसरी जगहों पर मैं परेशान ही रहा। अचानक मैं आश्रम आया और मैंने यहां चीजों को अपने आप होता हुआ पाया। मैं अकसर अपने लोगों पर चीखता चिल्लाता था कि ऐसा करो, वैसा मत करो, लेकिन यहां आकर मैंने देखा कि जैसे सब कुछ बिना किसी कोशिश के ही चल रहा है। किसी को कुछ भी कहने की आवश्यकता ही नहीं है। दरअसल, यहां आश्रम में लोग कोई नौकरी नहीं कर रहे हैं। यहां हर कोई स्वयंसेवी है और वे जो भी करते हैं, पूरे जोश, लगन और प्रेम के साथ करते हैं। आपको उन्हें कुछ भी बताने की आवश्यकता नहीं होती। यहां ईशा और सद्गुरु के चारों ओर लोगों में प्रतिबद्धता का एक स्वाभाविक बहाव है, जो बहुत ही अद्भुत है।
ईशा केवल आध्यात्मिक संस्था ही नहीं है, बल्कि इसने ईशा विद्या के नाम से गांवों के गरीब बच्चों के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए हैं और ये होम स्कूल भी चला रहे हैं। जाहिर है, यह एक उल्लेखनीय कदम है। जब मैं वहां बच्चों से मिलने गया तो मैंने उनके अंदर बढ़िया स्तर की आई क्यू और गजब की जिज्ञासा देखी। यह एक ऐसा स्कूल है, जिसमें पढ़ना मुझे हमेशा अच्छा लगता।
यहां मैंने कई तरह के लोगों को देखा है। जीवन के हर क्षेत्र से आए हुए लोग यहां हैं। हार्वर्ड, आईआईएमस, आईआईटी आदि बड़े संस्थानों से जुड़े ऐसे तमाम लोग हैं, जिन्होंने अपनी बड़ी नौकरियों को छोडक़र अपने जीवन के एक, दो और तीन साल तक यहां ईशा के सामाजिक कार्यक्रमों तथा फुलटाईम स्वयंसेवा को समर्पित कर दिए हैं। मुझे लगता है कि अगर इतने सारे लोग एक ही सोच के साथ मानव जाति के उत्थान के लिए काम करते हैं तो यह वास्तव में एक शानदार अनुभव है और यह आपको विनम्र भी बनाए रखता है। अगर आप देखें तो यहां की हर एक ईंट और गारे का काम स्वयंसेवियों द्वारा किया गया है और वह इसलिए है, क्योंकि वे इसे अपने मन से करना चाहते हैं, इसलिए नहीं कि यह काम उन्हें करना पड़ता है।
प्रश्न: आपने सद्गुरु के साथ काफी समय व्यतीत किया है। क्या आप अपने अनुभव के बारे में कुछ कहना चाहेंगे?
प्रहलाद कक्कड़: सद्गुरु से मिलते ही पहली चीज जो मेरे मन में आई, वह यह थी कि वह सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी लोगों में से एक हैं, जिनसे मैं किसी भी संभावित विषय पर बात कर सकता हूं। ये मुद्दे राजनीति से जुड़े भी हो सकते हैं, राज्यों से जुड़े भी हो सकते हैं, हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए यह विषय भी हो सकता है। इसके अलावा लोगों तक पहुंचने, उनसे संवाद स्थापित करने और उनके जीवन को स्पर्श करने, जैसे मामले भी हो सकते हैं। मुझे याद नहीं आता कि मैं अपने पूरे जीवन में किसी ऐसे व्यक्ति से मिला हूं जिसकी पहुंच इतने सारे लोगों तक हो, जिसने उनकी जिंदगियों में एक सकारात्मक बदलाव किया हो। सद्गुरु ने ऐसा किया है और यही आधार था मेरे प्रभावित होने का।
मुझे नहीं लगता कि विश्व मंच पर इस देश के लिए उनसे बेहतर राजदूत या प्रतिनिधि कोई और हो सकता है, क्योंकि उनका अपने कौशल पर पूर्ण अधिकार है। वह गूढ़ और रहस्यमयी चीजों के बारे में बहुत गहरा ज्ञान रखते हैं। वह किताबी बातें नहीं करते, जो कुछ ज्ञान देते हैं, अपने अनुभव द्वारा ही देते हैं। वह कोई ऐसे व्यक्ति नहीं हैं, जो हिमालय पर जाकर वहां से गायब हो गए हों और वापस आने पर सब चीजों से पूरी तरह से अछूते हों। आज देश में घटित होने वाली हर एक घटना के बारे में उन्हें सब पता होता है और साथ ही वह भारत की आध्यात्मिक परंपराओं और इसके मुद्दों के बारे में भी पूरी जानकारी रखते हैं। यह बहुत ही दुर्लभ है। मुझे नहीं लगता कि सद्गुरु जैसा कोई और व्यक्ति इस धरती पर होगा।
इसका दूसरा पहलू भी है। यहां एक ऐसा इंसान भी है, जिसने खुद को इतने सारे लोगों के लिए समर्पित कर दिया है। मैं तो यह सब देखकर ही अवाक रह जाता हूं इसीलिए मैं इस बात की कल्पना कर सकता हूं कि जब वह दूसरों के लिए इतना कुछ करते हैं, तो उन्हें कैसा महसूस होता होगा। ये वे लोग हैं, जो तमाम परेशानियों से घिरे हैं। वे उनके पास इसलिए आते हैं, ताकि किसी न किसी रूप में सद्गुरु का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त कर सकें। क्या आप जानते हैं कि उनके प्रभाव में आ कर और उनकी कृपा व प्रोत्साहन पाकर लोग ऐेसे काम भी कर जाते हैं, जिनके बारे में उन्हें लगता है कि वे कर नहीं सकते थे। वह उन लोगों की कायापलट कर देते हैं, उन्हें सही दिशा की ओर मोड़ देते हैं। अच्छी बात यह है कि इन लोगों ने इस आश्रम में, इस राज्य में हर उस व्यक्ति के लिए जो उनके संपर्क में आया, अद्भुत काम किए हैं। हर वह शख्स, हर वह स्वामी जो खुद को सद्गुरु को सौंप देता है, अपने आप में एक अद्भुत व्यक्ति बन जाता है।