हर दस साल में बाज़ार पूरी तरह से बदल रहा है

श्री के वी कामत – इनसाइट के पिछले सत्र में श्री जीएम राव ने उस वर्कशॉप के बारे में संक्षेप में बताया था जो उनके बेटे ने मेरे साथ किया था। मैंने उनके बेटे को एक बहुत ही आसान अभ्यास दिया था। मैंने उनसे कहा, 'मैं चाहता हूं कि तुम 1980 के दशक के बाद के कारोबार जगत का विश्लेषण करो और देखो कि देश में पूंजी के हिसाब से कौन सी पंद्रह सबसे बड़ी कंपनियां रही हैं?मैंने उससे कहा, 'तुम कोई भी प्रकाशित आंकड़े उठा लो और 1970, 80, 90, 2000, 2010 के आधार पर विश्लेषण करो, इससे आसानी होगी। उसके बाद मैं चाहता हूं कि तुम इनमें से पांच शीर्ष कंपनियों को लो और पता करो कि उनके साथ क्या सही हुआ और क्या गलत हुआ?लगभग सभी मामलों में कुछ न कुछ गड़बड़ हुआ होगा, क्योंकि 1980 के दशक में जो कंपनियां, चोटी की दस कंपनियों में शामिल थीं, आज वह किसी भी सूची में नहीं हैं। यहां तक कि वे कंपनियां 2000 में भी कहीं नहीं थीं। तो बुनियादी रूप से लगभग हर दस साल में चीजें पूरी तरह से बदल जा रही हैं।

चीन को लेकर यह कहना हम लोगों की एक प्रवृत्ति बन चुकी है कि हम लोग चीन से पीछे हैं। इस सिलसिले में मैं चीजों को सही संदर्भ में रखने की कोशिश करूंगा, फिर आप तय कीजिएगा कि हम लोग चीन से कितना पीछे हैं।

इसलिए मुझे लगता है कि यह चीज उनके लिए जानना बहुत जरूरी है, जो लोग भी अपना बिजनेस बढ़ा रहे हैं और जिनकी नजरें एक आदर्श कंपनी या चोटी की कंपनियों पर टिकी हुई हैं। अपने कारोबार के लिहाज से उन्हें जो कुछ भी करना चाहिए, अगर वो नहीं करती हैं तो वे आज जहां हैं, उस जगह पर उनका बने रहना मुश्किल होगा।

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एशियन डेवलपमेंट बैंक में काम करने का अनुभव

मुझे लगता है कि मेरे शुरुआती दिनों ने भी मुझे काफी कुछ सिखाया। सीखने का ऐसा मौका मुझे तब मिला, जब मैं 'एशियन डेवलपमेंट बैंक’ में गया, जहां मैंने अपने शुरुआती आठ साल दक्षिण पूर्व एशिया में लगाए। चीन उस वक्त विकास कर रहा था। यहां मैं चीन को लेकर हुए अपने कुछ अनुभवों को आपके साथ साझा करूंगा। चीन को लेकर यह कहना हम लोगों की एक प्रवृत्ति बन चुकी है कि हम लोग चीन से पीछे हैं। इस सिलसिले में मैं चीजों को सही संदर्भ में रखने की कोशिश करूंगा, फिर आप तय कीजिएगा कि हम लोग चीन से कितना पीछे हैं।

खुले बाज़ार पर कई देशों की पहल

एशियन डेवलपमेंट बैंक में काम करने के दौरान हमने थाईलैंड, फिलीपींस और इंडोनेशिया का काम भी देखा। इंडोनेशिया में मैंने तीन से चार साल काम किया। ये सभी अनुभव आपको यह समझने में मदद करते हैं कि दूसरे देश क्या कर रहे हैं, वे हमारे मॉडल से अलग किस तरह का प्रयोग कर रहे हैं। उस समय हमारे देश में लाइसेंस-राज का मॉडल चल रहा था, जहां हर चीज का लाइसेंस होता था। यहां मैं बताना चाहूंगा कि इन देशों ने खुले बाजार की सोच पर हमसे कहीं पहले काम करना शुरू कर दिया था।

मैंने अभी ऊपर जिन देशों का जिक्र किया, अगर उन पर गौर किया जाए तो लोगों की बदलती हुई इच्छाओं का अंदाजा बड़े रोचक तरीके से आपको मिल सकता है। अगर बदलाव पर नजर डालें तो सबसे पहले जिस चीज पर नजर जाएगी, वह मॉल होंगे।

तो उस समय चीन में बदलाव का दौर शुरू ही हुआ था, लेकिन हमसे काफी पहले बदलाव शुरू होने का नतीजा आप थाईलैंड, इंडोनेशिया में भी देख सकते हैं। आप बदलाव के पेड़ को अच्छी तरह से फलते-फूलते दक्षिण कोरिया और ताइवान में देख सकते हैं, जहां आर्थिक सुधार की प्रक्रिया शायद साठ के दशक से शुरू हो चुकी थी। इन सब देशों में बदलाव को हम साफ देख सकते थे। तो जो देश विकासशील देशों की श्रेणी से निकलकर विकसित देशों की श्रेणी में थे और उनके बाद आपके सामने चीन जैसे देशों का उदाहरण है, जो बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रहे थे, जबकि हम लोग जस के तस समय के बीच अटक गए थे।

लोगों की इच्छाएं बदलने का वक्त आने वाला है

इसके अलावा, मैंने एक और चीज पर भी गौर किया। मैंने देखा कि जब पांच सौ डॉलर से हजार डॉलर के बीच प्रति व्यक्ति आय होती है, तब लोगों की इच्छाएं व आकांक्षाएं आश्चर्यजनक ढंग से बदलती हैं। मैंने अभी ऊपर जिन देशों का जिक्र किया, अगर उन पर गौर किया जाए तो लोगों की बदलती हुई इच्छाओं का अंदाजा बड़े रोचक तरीके से आपको मिल सकता है। अगर बदलाव पर नजर डालें तो सबसे पहले जिस चीज पर नजर जाएगी, वह मॉल होंगे। अचानक उस व्यवस्था में शॉपिंग मॉल आने शुरू हो जाएंगे। अब मॉल बहुत अच्छे हैं या बुरे, इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। मैं तो सिर्फ तथ्यों के आधार पर एक बयान दे रहा हूं। विकास के दौर में आप अगली चीज देखेंगे कि अचानक सड़क परिवहन का जाल तेजी से बढऩा शुरू हो जाता है, हाईवे बनने लगते हैं, टोल रोड्स सामने आने लगते हैं। लोगों के पास ऐसी चीजों को खरीदने की क्षमता आ जाती है, जिनसे उनका यातायात आसान हो सके - जैसे कार, मोटरसाइकिल आदि। अब वे अपने घर में सुविधाओं से जुड़ी चीजें रखना चाहते हैं - जैसे फ्रिज, टीवी और ऐसी दूसरी चीजें।

 

जब मैं भारत पर नजर डालता हूं, तो हम लोग अभी इस स्थिति में नहीं पहुंचे हैं और न ही हम इन चीजों को होते हुए देख पा रहे हैं। दरअसल, ज्यादातर समय हम लोग इसी का रोना रोते रहे कि यह क्यों नहीं हो रहा। तो प्रति व्यक्ति आय और बदलाव का जो रिश्ता मैंने निकाला है, हो सकता है कि भारत में उसे साकार होने में अभी कुछ और साल लगें, इसके लिए हमें उस जादुई आंकड़े को पाना होगा। हालांकि यह नंबर कोई पत्थरों पर खुदा हुआ नहीं है, यह मेरी उस वक्त बनी धारणा पर आधारित है। यह जादुई आंकड़ा पांच सौ डॉलर प्रति व्यक्ति आय का है, जैसे ही वह होगा, चीजें अपने आप आगे बढ़ने लगेंगी।