महाशिवरात्रि का कार्यक्रम जबरदस्त रहा। शायद ऐसी उत्साही भीड़ कभी नहीं देखी गई। निश्चित रूप से यह आनंद आलई प्रोग्राम का प्रभाव है। जैसे ही संगीत शुरू हुआ, लोग उसकी धुन पर अपनी अपनी कुर्सियों से उठ कर तालियां बजाने और नाचने लगे और सिलसिला तकरीबन 12 घंटों तक लगातार चला। हमारे बेहतरीन संगीतकारों और कलाकारों ने अपने फन के जरिए रात भर लोगों को जगाए और सचेत रखा। वसीफुद्दीन डागर ने जब अपने भाव विभोर स्वर में एक शिवाराधना प्रस्तुत की तो सभी लोग लगभग ध्यानावस्था में पहुंच गए, उसके बाद कैलाश खेर ने अपने लोकप्रिय गीतों से सबको थिरकने पर मजबूर कर दिया।  जबकि कोलोनियल कजंस और हमारी संगीत मंडली साउंड ऑफ ईशा पर लोग सुबह 6 बजे तक झूमते रहे।

महाशिवरात्रि पर आखिर रातभर जागने की जरूरत क्यों होती है। दरअसल,  इसकी सीधी सी वजह है कि इस रात में जबदस्त संभावनाएं छिपी होती हैं। सूर्य, चंद्र और पृथ्वी के बीच खास तरह का संबंध होने से इस रात मानव शरीर की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊर्घ्‍वाधर या ऊपर की ओर उठी हुई होती है। इस स्थिति का बेहतर लाभ उठाने के लिए हमें रात भर अपने मेरुदंड को सीधा रखते हुए जाग्रत व सचेत रहना चाहिए, ताकि जो भी साधना हम कर रहे हैं, उसमें हमें प्रकृति से पूरा सहयोग मिले और हमारे भीतर ऊध्र्वगामी गति पैदा हो। इंसान का क्रमिक विकास मूलरूप से ऊर्जाओं की ऊर्घ्‍वगामी गति की वजह से ही हुआ है। कोई आध्यात्मिक व्यक्ति जो भी साधना या आध्यात्मिक क्रिया करता है, उसका मकसद ऊर्जाओं को ऊर्घ्‍वगामी दिशा देना ही है।

तो महाशिवरात्रि पर हमारे ये अदभुद् कलाकार हमें सचेत और जाग्रत बनाए करने के लिए ही यहां मौजूद थे। अगर ये न होते तो बैठे-बैठे कुछ ही घंटों में आपका शरीर धीरे-धीरे कुर्सियों पर पसरने लगता। जब तक आप शरीर से परे जाकर किसी दूसरे आयाम का अनुभव नहीं कर लेते, तब तक आपको शरीर की प्रतिबद्धता और अनिवार्यता ही वास्तविक लगती है। लेकिन अगर आप इस जीवन को इतना सघन रखते हैं कि जहां आपके लिए शरीर की सीमा कोई मायने ही नहीं रखती तो आप इस शारीरिक सीमा से परे दूसरे आयाम तक पहुंचने में सफल हो सकते हैं और तब अचानक आपको लगेगा कि समय आपके लिए मुद्दा ही नहीं रहा।

इसलिए पूरी रात गायन, नृत्य-संगीत और थिरकने का सिलसिला होता है। जिससे आप क्षणिक तौर पर ही अपनी शारीरिक सीमाओं से परे निकल सकें। अगर आप एक पल को भी शरीर से परे जाकर दूसरे आयाम का स्पर्श कर पाए तो सहसा आप पाएंगे कि आपकी आंखें रात भर के लिए खुली रहेंगी। मैं चाहता हूं कि आप इसे जानें। मैं नहीं चाहता कि यहां वहां से कुछ सुन कर या इधर-उधर से कुछ पढ़ पढ़ाकर आप इसके बारे में जानें, बल्कि मैं चाहता हूं कि आप खुद इसे जानें। और महाशिवरात्रि की यह रात आध्यात्मिकता की राह पर चलने वालों के लिए बेहतरीन संभावनाओं से भरी रात है। इससे बेहतर और कोई रात हो ही नहीं सकती।

अब तक महाभारत के आठ और यक्ष के सात दिन बीत चुके हैं। उसके बाद हुआ "कन्वर्सेशन विद मिस्टिक" और फिर 12 घंटे का निरंतर महाशिवरात्रि का उत्सव। अब सम्यमा में बस एक दिन बाकी है.... फिर समय होगा गोल्फ के मैदान में हाथ आजमाने का।

प्रेम व प्रसाद

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