ताकतवर हमेशा अपने से कमजोर पर राज करता है। ताकतवर द्वारा कमजोर पर दादागीरी का सिद्धांत हर समय हर जगह लागू होता है, फिर चाहे वह देशों का मामला हो या समुदाय का अथवा इंसानों की ही बात क्यों न हो। हमने दुनिया कुछ इस तरह की बनाई है, जहां अगर आप कमजोर पर राज करना या उस पर दादागीरी करना नहीं सीखते तो समाज की नजरों में आपने जीवन में कोई मुकाम हासिल नहीं किया अब यह राज करना शारीरिक ताकत के बल पर क्रूरतापूर्ण या असभ्यतापूर्ण भी हो सकता है या फिर बेहद परष्किृत या सूक्ष्म रूप से, लेकिन ऐसा हर जगह हो रहा है। मैं चाहता हूं कि आप इस दुनिया को, आज के अंतरराष्‍टी्रय हालात को समझें, जो हमारी सड़क और नुक्कड़ों के माहौल से खास अलग नहीं हैं। मजबूत या ताकतवर कमजोर को कई तरह से दबाता है।

नेता हमेशा दबंग और घौंस देने वाले होते हैं, जो यह अच्छी तरह जानते हैं कि साम, दाम, दंड, भेद का  इस्तेमाल करते हुए दूसरों को धक्का देकर कैसे अपनी राह आसान की जाए और कैसे आपको ताकत के बल पर पटकनी दी जाए। हमने दुनिया में एक ऐसी व्यवस्था बनाई है, जहां केवल दबंग ही नेता बन सकते हैं। चूंकि हमने ठीक तरह के नेताओं को तैयार नहीं किया, इसलिए दंबगों या दादाओं को ही नेता समझा जाता है। इस दुनिया में दया या सदयता रखने वाले और मानवता के प्रति विस्तृत दृष्टिकोण रखने वाले लोगों को नेता नहीं, बल्कि विचारक या दार्शनिक समझा जाता है। दूरदर्शी के तौर पर उन्हें खारिज कर दिया जाता है। इस सोच को बदलना होगा, लेकिन यह बदलाव रातों-रात नहीं होगा।

हम लोग ‘ईशा लीडरशिप अकादमी’ खोलने की तैयारी में हैं। जहां तमाम ऐसे कार्यक्रम चलाए जाएंगे, जिनसे नेताओं को तैयार करने और संवारने में मदद मिलेगी। हम इस कार्यक्रम की शुरुआत साल के आखिर में एक भव्य तरीके से करने जा रहे हैं। आज अगर इस देश में एक अच्छा नेता सामने आता है तो लोग उसकी पूजा करेंगे। अपने देश में नेताओं की अलग-अलग किस्में या श्रेणियां न के बराबर हैं। इसलिए इस कार्यक्रम का एक मकसद नेताओं के विभिन्न दर्जे या श्रेणी विकसित करना है, ताकि मुख्य नेतृत्व को सहयोग मिल सके। नेताओं और नेतृत्व की जरूरत केवल संसद या विधायिका में ही नहीं होती, बल्कि रोजमर्रा के जीवन में सड़क पर, घरों में, दफ्तरों में जहां भी नजर डालें, हमें ऐसे लोगों की जरूरत होती है जो किसी भी हालात में नेतृत्व कर सकें। हम हर स्तर पर लोगों के लिए यह कार्यक्रम प्रस्तुत करना चाहते हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि जो भी व्यक्ति पांच या दस लोगों को प्रभावित कर सकता है, वह अपने आप में नेता है। यह सब करने के लिए हमें मानवता पर काम करने की बहुत जरूरत है। सड़क पर मात्र भाषणबाजी या नारेबाजी करने से मानवता का भला नहीं होगा, बल्कि इसके लिए हमें हरेक इंसान को ध्यान व लक्ष्य में रखकर काम करना होगा। हालांकि यह सब करने के लिए हमारे पास पर्याप्त आधारभूत ढांचा या मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं।

कल ‘गुरु संगमम’ का एक बड़ा आयोजन है। तकरीबन एक साल से भी ज्यादा पहले, पिछली 6 जनवरी को देश के कुछ अति महत्वपूर्ण आध्यात्मिक गुरुओं ने साथ मिलकर इसकी शुरुआत की थी। इस आयोजन का मकसद भारत को दुनिया के सामने एक ऐसे आध्यात्मिक प्रवेशद्वार के रूप में पेश करना है, जहां आध्यात्मिकता का हर धरातल और आयाम एक ही मंच पर उपलब्ध हो सके। इस आयोजन का एक दूसरा मकसद है कि यह आध्यात्मिक प्रक्रियाओं को बचाया व सुरक्षित रखा जा सके, जिससे वे लोगों के शोषण का कारण न बन सकें। आध्यात्मिक प्रक्रियाओं द्वारा लोगों के शोषण करने के तमाम तरीके हैं। इस आयोजन में सौ से ज्यादा आध्यात्मिक गुरु सम्मिलित होने जा रहे हैं और ऐसे तमाम गुरु, जो स्वयं इसमें भाग लेने नहीं पहंुच पा रहे, उन्होंने अपना आशीर्वाद और सहयोग भेजा है। इससे पहले कभी इतनी बड़ी तादाद में आध्यात्मिक नेता एक साथ एक जगह पर नहीं आए थे। यह वाकई अपने आप में एक महान अवसर है, साथ ही यह आध्यात्मिक नेतृत्व को दुनिया के लिए एक प्रभावशाली संभावना के रूप में सामने की कोशिश है।

 

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