सद्‌गुरुआप एक पुरुष हों या स्त्री, जीवन को संतुलित रूप से जीने के लिए आपमें पुरुषैण और स्त्रैण दोनों ही गुण समान रूप से होने चाहिए। आखिर क्यों?

प्रश्न :  ईशा केंद्र स्थित ध्यानलिंग की देखभाल का जिम्मा बंटा हुआ है - पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक यह काम आश्रम के स्वामी (पुरुष संन्यासी) का होता है, जबकि अमावस्या से लेकर पूर्णिमा तक का जिम्मा मां(महिला संन्यासी) का होता है। आखिर ऐसी व्यवस्था के पीछे कारण क्या है? और चन्द्र मास के इन दो पक्षों के गुणों में क्या अंतर है?

सद्गुरु : चाँद का धीरे-धीरे घटना और बढ़ना – दो पक्षों में यही होता है। एक हिस्से में चंद्रमा का असर घट रहा है, जबकि दूसरे हिस्से में असर बढ़ रहा है। आप चन्द्र को सिर्फ इसीलिए जानते हैं, क्योंकि ये सूर्य की रौशनी परावर्तित करता है। सूर्य एक दहकता हुआ गोला है, इसलिए उसमें से रोशनी निकलती है, जबकि चंद्रमा ठंढा होता है। यह एक तरह से यह सूर्य का ही अंश है। यह केवल हमारे अनुभवों की बात नहीं है, बल्कि कुछ वैज्ञानिक अध्ययन भी कहते हैं कि ये सारी चीजें सौर पदार्थ ही हैं, जिन्होंने सूर्य की गति से उड़कर अलग-अलग आकार और स्वरूप ले लिए और फिर ये ग्रह या उपग्रह जैसी चीजें बनीं। सूर्य में से निकली एक छोटी सी बूंद चंद्रमा बन गई। इंसानों के समझने के लिए हम लोग हर भौतिक वस्तु में उस चीज को देखते हैं, जो उसे लिंगगत पहचान देती है, क्योंकि हर भौतिक पदार्थ का विपरीत प्रकृति की तरफ झुकाव होता है।

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पेड़ों में भी दो तरह के झुकाव होते हैं

दरअसल, भारत में कुछ पेड़ों को नर पेड़ के तौर पर देखा जाता है तो कुछ पेड़ों को मादा पेड़ के रूप में। क्या आपने कभी गांवों में दो पेड़ों की आपस में शादी होते हुए देखा है? गांवों में लड़कियां जब विवाह योग्य होती हैं और शादी करना चाहती हैं तो वे जाकर इन पेड़ों की पूजा करती हैं। गांवों में दो पेड़ों की शादी अपने आप में एक बड़ा आयोजन होता है। पूरा गांव उनकी शादी शामिल होता है। पेड़ों में कुछ खास तरह की प्रवृत्तियां देखकर लोगों को लगा कि यह पेड़ नर पेड़ है या फिर यह मादा पेड़ है।

सूर्य में पुरुषत्व और चन्द्र में नारीत्व है

तो इसी तरह से जब उन्होंने सूर्य को देखा तो उसमें उन्हें पुरुषत्व का भाव नजर आया।

अगर आप एक पुरुष हैं तो हम आपके भीतर स्त्रैण भाव को जगाना चाहते हैं और उसी तरह अगर आप एक स्त्री हैं तो हम आपमें पुरुषैण भाव जगाना चाहते हैं।
जबकि चंद्रमा में उन्हें नारी सुलभता दिखाई दी। हालांकि यह कोई ग्रामीण मन की कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि यह एक सच्चाई है। अगर वे गलत होते तो एक स्त्री का शरीर चंद्रमा के चक्र के ताल-मेल में नहीं होता। चंद्रमा कई तरीके से नारी सुलभता का प्रतीक है। अगर आप एक पुरुष हैं तो आपकी समस्या यह है कि आप एक महिला की ओर देख रहे हैं। इसी तरह से अगर आप एक महिला हैं तो आपकी समस्या है कि आप एक पुरुष की ओर देख रही हैं। उसकी वजह है कि कहीं ना कहीं उस विपरीत तत्व का आप में अभाव है। अगर आप एक पुरुष हैं तो हम आपके भीतर स्त्रैण भाव को जगाना चाहते हैं और उसी तरह अगर आप एक स्त्री हैं तो हम आपमें पुरुषैण भाव जगाना चाहते हैं। ऐसा आपकी स्वाभाविक प्रकृति को बिगाड़ना के लिए नहीं करते, बल्कि उसे संतुलित करने के लिए करते हैं।

स्त्री और पुरुष प्रकृति में संतुलन

हम लोग आदि योगी, शिव को परम पुरुष कहते हैं। हम उन्हें परमपुरुष इसलिए नहीं कहते, क्योंकि उनमें जबरदस्त पुरुषत्व है, वह तो उनमें है ही, बल्कि हम उन्हें परम पुरुष इसलिए कहते हैं, क्योंकि उनमें आधा स्त्रैण गुण है। इसीलिए वह परम पुरुष हैं। हमारी कोशिश आपको एक ऐसा परम मानव बनाना है, जो अपने भीतर स्त्री तत्व और पुरुष तत्व को समान अनुपात में लेकर चलता हो। अगर ऐसा होता है तो आप अपने जीवन को बहुत ही संतुलित तरीके से चलाते हैं, क्योंकि ये दोनों ही तत्व आपके भीतर मौजूद हैं। अगर आप में पुरुषत्व होगा तो आप में नारी सुलभता नहीं होगी और अगर आप में स्त्री तत्व है तो आप में पुरुषत्व नहीं होगा। तत्वों की अनुपस्थिति की वजह से इंसान कितने तरीके से परेशान हो रहा है!

पुरुषत्व और स्त्रीत्व के संतुलन से दृष्टि बदल जाएगी

ध्यानलिंग मंदिर में इस चीज को तैयार किया गया है, यह सिर्फ उसी समय के लिए ही नहीं होता, बल्कि इसे स्थापित इसी रूप में किया गया है कि अगर आप इसकी मौजूदगी में रहें तो धीरे-धीरे आप देखेंगे कि कुछ समय बाद आप काफी बेहतर महसूस करेंगे।  

 लोगों में इस तरह की अधिक पुरुषत्व या अधिक स्त्रीत्व कुछ खास तरह के कामों के लिए तो उपयोगी हो सकता है, लेकिन एक संतुलित जीवन जीने के लिए यह कतई उपयोगी नहीं होगा।
तब अगर आप किसी महिला को देखेंगे तो आप उसको दुनिया की दूसरी चीजों की तरह ही देखेंगे। आप की नजर काफी कुछ वैसी ही होगी, जैसी बचपन में हुआ करती थी। लेकिन जैसे ही आप बड़े होने पर रासायनिक रूप से दूषित होते हैं, वैसे ही आप किसी दूसरे इंसान को सिर्फ एक इंसान के तौर पर देखने की सहज क्षमता को खो देते हैं। तब आपके लिए शरीर का छोटा सा उभार भी अपने आप में एक विशाल आकर्षण बन जाता है। तब हर छोटी-छोटी चीज भी बहुत बड़ी हो जाती है, उसकी वजह सिर्फ इतनी है। इसलिए पहले इस प्रदूषण को ठीक कीजिए, क्योंकि यह इतनी शक्तिशाली ऊर्जा है कि अगर किसी में बहुत ज्यादा पुरुषत्व या फिर बहुत ज्यादा स्त्री-तत्व हुआ तो यह लोगों को बिल्कुल अलग रास्ते पर ले जाएगा। लोगों में इस तरह की अधिक पुरुषत्व या अधिक स्त्रीत्व कुछ खास तरह के कामों के लिए तो उपयोगी हो सकता है, लेकिन एक संतुलित जीवन जीने के लिए यह कतई उपयोगी नहीं होगा। ध्यानलिंग सभी के लिए है। यहां जितनी भी प्रक्रियाएं या कार्यक्रम होते हैं, वे सब पूरी तरह से सबके लिए खुले होते हैं। इसी वजह से इसकी देखभाल इस तरीके से की जाती है। ध्यानलिंग की सेवा को ‘लिंग अर्पणम्’ कहा जाता है। लिंग अर्पणम् सेवा का मौका लोगों को तीन, चार या पांच साल में एक बार मिलता है। इस सेवा के दौरान लोगों को होने वाले अनुभवों के बारे में मैंने काफी कुछ पढ़ा है।

एक जीवंत जीवन होना हर चीज़ से बढ़कर है

लोगों के ऐसे सैकड़ों अनुभव हैं। उन्हें यह अहसास हुआ कि ऐसा अनुभव उन्हें कहीं और नहीं हो सकता।

जब यह जीवन पूर्ण हो तो फिर आपको इस बात की परवाह नहीं होती कि किसके पास क्या है - क्योंकि जीवित होना किसी भी चीज़ से बढ़कर है।
एक स्तर पर उनके भीतर मौजूद स्त्री तत्व और पुरुष तत्व समान रूप से फैल कर स्थिर हो गए और उनमें दोनों ही तत्व समान हो उठे। अगर यह दोनों ही तत्व आपके भीतर समान रूप से हों और आप इन्हें इसी तरह से समान अनुपात में धारण किए रहें, सिर्फ तभी दोनों ही तत्व अपनी संपूर्णता को पाने की कोशिश करेंगे। जब यह दोनों ही अपनी संपूर्णता को पा लेंगे तो तो आप जीवन से भर उठेंगे। एक बार अगर आप जीवन से भरपूर होते हैं तो फिर अचानक आपको लगता है कि आपके आसपास जो मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं, जो भावनात्मक प्रक्रियाएं या फिर सामाजिक प्रक्रियाएं चल रही हैं उसका आपके लिए कोई खास मतलब नहीं रहता। दरअसल, तब ये सारी चीजें आपके लिए सहायक सामग्री बनकर रह जाती हैं। लोगों को सहायक सामग्रियों की जरूरत तभी पड़ती है, जब उनमें संपूर्णता नहीं होती। आपके भीतर कभी बैसाखी पर चलने वाले आदमी को देख कर उसके प्रति ईर्ष्या का भाव नहीं जगता,  ‘अरे उसकी तो चार टांगे हैं, मेरे पास बस दो ही हैं।’ हां, उसके पास अगर सोने की बैसाखियां हों, तो हो सकता है कि आपके मन में यह भाव जागे। अगर आपके भीतर समान रूप से स्थिरता का भाव है तो आप अपने आप में पूर्ण हैं। जब यह जीवन पूर्ण हो तो फिर आपको इस बात की परवाह नहीं होती कि किसके पास क्या है - क्योंकि जीवित होना किसी भी चीज़ से बढ़कर है।