चहल-पहल भरी यात्रा : अमेरिका और फ्रांस के बीचोबीच
सद्गुरु अपने फ्रांस यात्रा का वर्णन करते हुए इस सप्ताह के अपने स्पॉट में बता रहे हैं कि कैसे गैर अंग्रेजी भाषी देशों में एक बदलाव वे महसूस कर रहे हैं।
सद्गुरु अपने फ्रांस यात्रा का वर्णन करते हुए इस सप्ताह के अपने स्पॉट में बता रहे हैं कि कैसे गैर अंग्रेजी भाषी देशों में एक बदलाव वे महसूस कर रहे हैं।
कई सालों के बाद कुछ कार्यक्रमों के लिए मैं पेरिस पहुंचा। हालांकि वाइव्स रॉशर फाउंडेशन, जो प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स में हमारा पार्टनर है, ने 5 करोड़ पौधारोपण पूर्ण होने के अपने कार्यक्रम के लिए मुझसे वहां आने का आग्रह किया था, मगर वहां जाने के बाद हमने कुछ और कार्यक्रम भी किए। इनमें एक हजार लोगों से खचाखच भरे एक हॉल में एक सार्वजनिक संध्या-चर्चा भी शामिल थी। तैयारी के लिए बहुत कम समय मिलने के बावजूद पेरिस ने जबर्दस्त उत्साह दिखाया। लगभग 30 फीसदी लोग यूरोप के हर हिस्से से आए थे।
लगभग 8 साल पहले, मैंने एक तरह से तय कर लिया था कि मैं अपने कार्यक्रमों को अंग्रेजी भाषी देशों तक ही सीमित रखूंगा क्योंकि गैर अंग्रेजी भाषी देशों में अनुवाद तथा परिवहन में काफी समय और मेहनत लगती थी। मगर अब स्वयंसेवकों के बहुत दक्ष समूह ने मुझे पुराने संकल्प पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। यूरोप और चीन, दोनों भाषा की सीमाओं से बाहर निकलते हुए मुझे फिर से अपने साथ जोड़ रहे हैं।
Subscribe
केप कॉड में रॉबर्ट एफ केनेडी फाउंडेशन की 26वीं वर्षगांठ के कार्यक्रम के लिए सीधे वहीं पहुंचे। वे मानवाधिकार के क्षेत्र में काफी अच्छा काम कर रहे हैं। सबसे मजेदार बात यह थी कि वहां एक दिलचस्प गोल्फ कार्यक्रम भी था। अपनी सांस थामे रहिए, हमारी टीम को टूर्नामेंट में तीसरा स्थान मिला। निश्चित रूप से इसमें सारा योगदान मेरा नहीं था।
भारतीय विद्या भवन ने न्यूयार्क में अपनी 35वीं वर्षगांठ के लिए चंद्रिका टंडन द्वारा संचालित वार्ता में मुझे और दीपक चोपड़ा को आमंत्रित किया था। भारतीय जनसमूह वहां अपने पूरे वैभव में मौजूद था। दीपक ने विज्ञान और चेतना के क्षेत्र में किए गए अपने कुछ कामों के बारे में बताया। आखिर के 2 दिनों में दिन के 20 घंटे सिर्फ पुस्तक की टीम के साथ विचार-विमर्श में बीते।
अब मैं सिंगल इंजिन पाइपर मलीबु विमान में 26000 फीट की ऊंचाई पर ईशा केंद्र टेनेसी की ओर बढ़ रहा हूं। वहां आश्रम में अब आदियोगी की मूर्ति भी लग चुकी है। आश्रम में सिर्फ एक दिन बिताते हुए, फिर ह्यूस्टन (1 दिन), सैन फ्रांसिस्को (2 दिन), ईशा केंद्र टेनेसी (3 दिन), डेट्रायट (1 दिन), न्यूयार्क (1 दिन), न्यूजर्सी और फिर मुंबई। मैं किसी ट्रैवल एजेंट की तरह बात कर रहा हूं न?