अमेरिका के टेनेसी स्थित ईशा इंस्टीट्यूट ऑफ इनर सांइसेस में कुछ शांतिपूर्ण दिन बिताने के बाद ड्यूक यूनिवर्सिटी, द वेटरंस एडमिनिस्ट्रेशन, शिकागो म्यूजियम ऑफ साइंस एंड इंडस्ट्री, टोरंटो तमिल बिजनेस असोसिएशन, सेन जोस के टीआईई जैसी जगहों पर मीटिंगों और व्याख्यानों की व्यस्तता रही। इसके अलावा, सेन जॉन बोटिस्ट लैंड में वृक्षारोपण का कार्यक्रम भी हुआ, जहां वेस्ट कोस्ट सेंटर का काम चल रहा है।

यहां दस मई का दिन काफी गतिविधियों भरा दिन रहा। उस दिन हम लोग सेन जॉन बोटिस्ट में स्थित अपनी जमीन पर गए और वहां हमने जैतून (ऑलिव) के 1008 पौधे लगाए। वहां बनने वाले हमारे वेस्ट कोस्ट सेंटर की दिशा में यह पहला कदम था।

यह देखना काफी रोचक और उत्साहवर्द्धक है कि ड्यूक मेडिकल यूनिविर्सटी इंटीग्रेटड मेडिसिन को लेकर काफी गंभीर है और इंसान के स्वास्थ्य को अभी तक जिस तरह से देखा गया है उसमें मूलभूत परिवर्तन के लिए यहां की शीर्ष फैकेल्टी (प्रोफेसर) काफी उत्सुक हैं।

मेरा सपना रहा है कि एक ऐसा विज्ञान संग्रहालय बनाऊं, जहां बच्चे खुद अपने हाथ से चीजें कर सकें और सबसे बड़ी चीज कि वे वहां आकर सृष्टि की प्रकृति और उसके तमाम रूपों को देखें, अचरज करें और समझ सकें। अपने यहां लोगों में वैज्ञानिक मिजाज या प्रवृति की काफी कमी है, जो हम सभी के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। आज हमारे यहां ज्यादातर लोगों के लिए विज्ञान का आशय नए आईफोन भर बन कर रह गया है। जबकि मौलिक विज्ञान से जुड़ी शाखाओं की दिशा  में निवेश करना आज अपने यहां की सबसे बड़ी जरूरत है। शिकागो सांइस म्यूजियम के लोग गजब के थे, उन्होंने हमारी जरूरतों को समझा और सराहा है। अगले दो महिनों में, जब हमारे पास प्राथमिक रिपोर्ट उपलब्ध होगी तब हम धन इकट्ठा करने और इस बेहद महत्वपूर्ण कोशिश की योजना बनाने की दिशा में गंभीर कदम उठाएंगे।

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सैम पित्रौदा के साथ बिताए कुछ दिन, देश की बेहतरी के लिए उनकी सोच और उनका जुनून देखकर बहुत खुशी हुई। भारत को आज उनके जैसे क्षमतावान, दृष्टि और जुनून वाले लोगों की जरूरत है। अपने देश में पर्याप्त तादाद में एक से एक महान और बेहतरीन दिमाग वाले लोग भरे पड़े हैं, लेकिन अफसोस कि उनकी क्षमताओं का इस्तेमाल नहीं हो पाता और वे यूं ही जाया हो जाते हैं। भारत माता के गले में विकासशील देश का भारी तमगा एक लंबे समय से लटका हुआ है।

उत्तरी अमेरिका के टोरंटो में मैंने एक बड़े समूह को पहली बार तमिल में संबोधित किया। नॉर्थ अमेरिका में एक तमिल आयोजन अपने आप में एक सुखद अहसास है। टोरंटो में तमिलों की यह शानदार सभा थी। ये लोग कनाडा में योग के तमाम आयामों को उपलब्ध कराने के लिए यहां आदियोग स्थान की स्थापना के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। कनाडा मूल रूप से ‘कनाटा’ शब्द का भ्रष्ट उच्चारण है, जो इंडियन या अमेरिकी मूल निवासियों का देश है। अब आप यह मत सोचने लगिएगा कि ये लोग बेंगलुरू से गए हुए हैं। टोरंटो में श्रीलंका से गए तमिलों की तादाद भी खासी है। पिछले कुछ सालों में श्रीलंका में तमिलों के साथ जो हुआ है, वह मानव सभ्यता के लिए बेहद शर्मनाक है और इस दौर की गवाह बनी पीढ़ी के तौर पर हमें अपनी गर्दनों को शर्म से झुकाना होगा। वाकई यह अपने आप में बेहद अविश्वसनीय और हिला देने वाली बात है कि हमारे अपने समय में हमारे पीछे बसे एक देश में लोगों के साथ इस कदर शर्मनाक अत्याचार हुआ और हम इस बारे में कुछ नहीं कर पाए। लेकिन अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि श्रीलंकाई लोग अपने काले अतीत की परछाइयों से आने वाले कल को काला न होने दें। अतीत में हुए वहिशियाना व्यवहार की कड़वाहट आज लोगों के मन में न भरी रहे, जो अन्याय हमारी पिछली पीढ़ियों के साथ वहां हुआ वह हमारे आने वाले बच्चों की जिंदगियों को घाव न दे। अब लोग पीड़ित या जख्मी होने की बजाय बुद्धिमानी से काम लें और अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने की कोशिश करें। लेकिन अपना अतीत कभी न भूलें, इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि आने वाले कल में दुनिया में ऐसी घटना फिर किसी के साथ न घटे।

सैम पित्रौदा के साथ बिताए कुछ दिन, देश की बेहतरी के लिए उनकी सोच और उनका जुनून देखकर बहुत खुशी हुई।
 टोरंटो से कैलिफोर्निया के खाड़ी इलाके जाने के लिए मैंने उत्तरी अमेरिका से तिरछे यात्रा की। यहां एक शाम एक बेहद सफल भारतीय बिजनेसमैन के साथ संवाद हुई, जो बेंगलुरू से आने वाला एक कन्नड़भाषी थे। पिछले तीन दशकों में सिलिकॉन वैली से उल्लेखनीय तादाद में सफलता की कहानियां सामने आई हैं। कई भारतीय लोगों ने यहां आकर शिक्षा प्राप्त की और उद्यम जगत के ग्लोबल हीरो बन गए। मानवीय प्रमिभा को निखारने के लिए यह सब जरूरी है। हमें ऐसा माहौल बनाना होगा जहां पर कोई प्रतिबंध या रोक टोक न हो।

गत रविवार, दस मई का दिन काफी गतिविधियों भरा दिन रहा, क्योंकि उस दिन हम तकरीबन 300 स्वयंसेवकों के साथ सेन जॉन बोटिस्ट में स्थित अपनी जमीन पर गए और वहां हमने जैतून (ऑलिव) के 1008 पौधे लगाए। दरअसल, यह वहां हमारे बनने वाले वेस्ट कोस्ट सेंटर की दिशा में पहला कदम था। यह एक बेहद खूबसूरत आयोजन था, जिसने मुझे दो दशक पहले के भारत स्थित ईशा योग केंद्र के शुरुआती दिनों की याद दिला दी। इस मौके पर मुझे आंखों में सपने भरे व जोश से भरे उन शानदार लोगों की याद भी आई, जो वेंलियंगिरी पहाड़ी की तलहटी में बनने वाले ईशा योग केंद्र के शुरुआती दिनों में उसका हिस्सा हुआ करते थे। इसमें दो राय नहीं कि ईशा योग केंद्र प्रेम के श्रम से सीची गई एक शानदार फसल है। ईशा योग केंद्र के निर्माण में अपना योगदान देने वाले सभी लोगों के सम्मान में मैं गर्व से एक ही बात कह सकता हूं कि अपनी बनावट, माहौल और कामों के लिहाज से केंद्र दुनिया में अपने तरीके का एकमात्र स्थान है।  जैसा कि एक अमेरिकी सीईओ ने कहा कि है यह इतना शानदार है कि विश्वास नहीं होता कि यह सच है। सेन जॉन बोटिस्ट की पहाड़ी पर हमने इस काल्पनिक कहानी को फिर से दोहराने की कोशिश की। इस मौके पर जबरदस्त उत्साह से भरे लोगों की एक शानदार सभा थी। वाकई उस पल को जीना अपने आप में काफी मजेदार होता है, जिसमें ताजगी के साथ-साथ पुरानी यादों का चलचित्र भी मौजूद हो।

मानवीय प्रमिभा को निखारने के लिए यह सब जरूरी है। हमें ऐसा माहौल बनाना होगा जहां पर कोई प्रतिबंध या रोक टोक न हो।

मंगलवार की शाम को सैन फ्रांसिस्को के कॉमनवेल्थ क्लब में पॉल हॉकिन के साथ हमारी एक परिचर्चा हुई। पॉल एक पर्यावरण योद्धा हैं, जिन्होंने अपने जीवन के कई दशक पर्यावरण संबंधी उद्योग की विचारधारा के प्रचार प्रसार में बिताए हैं, ताकि लोगों को अपेक्षाकृत ज्यादा समझदार और संवेदनशील तरीके से बिजनेस करने के बारे में सक्षम बनाया जा सके। सबसे बड़ी बात कि पॉल मेरे परमप्रिय मित्र हैं, जिनका मैं बेहद सम्मान करता हूं। इस परिचर्चा का महत्व इस संदर्भ में तब और बढ़ जाता है कि जब इस हफ्ते यह अफसोसनाक असलियत दुनिया के सामने आई कि वातावरण में कार्बन का मौजूदा स्तर खतरनाक ढंग से इतना बढ़ चुका है कि जितना आज से पहले मानव इतिहास में पहले कभी नहीं पहंुचा था। यह मानवता के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि हम अपने जीवन के स्रोत इस धरती के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं। अब हमारे सामने बस यह सही विकल्प बचा है कि या तो हम जागरूक होकर हालात को सुधार लें या फिर कुदरत बेहद क्रूर तरीके से इस काम को अंजाम देगी।

इस दिशा में सबसे आसान काम हम यह कर सकते हैं कि अगले 20 से 25 सालों में हम इस धरती की आबादी 4 अरब के आसपास ले आएं। फिलहाल इंसान की आकांक्षाओं और चाहतों को कम करने की तमाम कोशिशें हो रही हैं, लेकिन इस दिशा में कोई सफलता नहीं मिलेगी। लेकिन हम सब मिलकर अगर गंभीरतापूर्वक इस दिशा में होनी वाली कोशिशों में जुट जाएं तो हम मानव आबादी को जरूरी लक्ष्य तक कम कर सकते हैं। 20वीं सदी की शुरुआत में धरती की आबादी 1.6 अरब थी और अगले 50 सालों में हमारी मौजूदा आबादी 7 अरब आबादी के 10 अरब तक पहुँचने की उम्मीद जताई जा रही है।

हम अच्छे लोग हैं, बस एक ही दिक्कत है कि हमारी तादाद बहुत ज्यादा है। हमारी सारी बाध्यताओं का जवाब हमारे आनंदपूर्णता में छिपा हुआ है।

Love & Grace