एक धन्य बेचैनी...
इस बार के स्पॉट में सद्गुरु अपने भीतरी अनुभव को एक कविता के माध्यम से हम तक पहुंचा रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी आँखों में एक बेचैनी सी है...पर ऐसी बेचैनी जो धन्यता से भरी है।
इस बार के स्पॉट में सद्गुरु अपने भीतरी अनुभव को एक कविता के माध्यम से हम तक पहुंचा रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी आँखों में एक बेचैनी सी है...पर ऐसी बेचैनी जो धन्यता से भरी है।
जब से उतरे हो तुम
मेरे अन्तः करण में
नहीं पाया है विश्राम नयन ने
Subscribe
खुली हो आँखें तो
दिखते हो तुम ही सब में
करूं नयन को बंद अगर तो
विचार, चिंतन या स्वप्न कुछ भी
नहीं उपजते भीतर मेरे
रह जाता है भीतर केवल
तुम्हारा भीषण प्रखर नृत्य
अथवा मृत्यु को भी पछाड़ती निश्चलता
मेरी आँखों को है ना चैन ना सुकून
क्योंकि सबमें एक ही को देख रही हैं
जो समा गया है मुझमें ।
यह धन्य बेचैनी
मेरे अन्तः पर यह सतत प्रहार
मत रोकना, कृपया कभी मत रोकना।