सद्‌गुरुहम सबकी नजर में लक्ष्य का अपना एक अलग मतलब होगा, उसके लिए हमारी अपनी एक अलग परिभाषा होगी। हो सकता है किसी के लिए एक अच्छी नौकरी तो किसी के लिए एक मकान खरीद लेना एक लक्ष्य हो। लेकिन क्या ये सब वाकई एक लक्ष्य  हैं? जानते हैं सद्‌गुरु से कि आखिर सही मायनों  में  लक्ष्य  किसे कह सकते हैं-

 

सद्‌गुरु, व्यक्ति जो भी सोचता है या कल्पना करता है, खासकर अपने कैरियर या रिश्तों के बारे में या किसी सामुदायिक मुद्दे पर ही, उसे वह हकीकत में कैसे बदल सकता है ?

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सद्‌गुरु:

एक खास तरह का मानसिक फोकस रखकर आप अपने जीवन में कुछ चीजों को हासिल कर सकते हैं। लेकिन वास्तव में उपलब्धि होती क्या है, इसे हमें फिर से परिभाषित करने, या कहें कि समझने की जरूरत है।

इसे कोई उपलब्धि मत समझिए कि ‘मैं नए मॉडल की कार खरीदना चाहता था और मैंने वो ले ली।’ दरअसल, यह तो होना ही था, क्योंकि बाजार आपको जीरो फीसदी ब्याज दर पर कार खरीदने के लिए कर्ज दे रहा है
जो चीज आप चाहते हैं, वो अगर आपको मिल जाए तो इसका यह मतलब नहीं कि आपने कुछ हासिल कर लिया या यह आपकी कोई उपलब्धि है। यह बेहद औसत दर्जे का मानव स्वभाव है। यह चीज मैं खास तौर से पश्चिम में ज्यादा देखता हूं, जिसे मैं सचमुच बदलना चाहूंगा।

जीवन में ऐसी बहुत सी भौतिक चीजें हैं, जिन्हें आप पाना चाहते हैं, जैसा कि आपने कहा कैरियर, रिश्ते या फिर सामुदायिक परियोजनाएं यानी कम्युनिटि प्रोजेक्ट्स। हालांकि ये प्रोजेक्ट्स भी एक तरह का कैरियर ही है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं- एक ऑटोरिक्शा तीन लोगों को बैठा सकता है लेकिन वास्तव में वह दस लोगों को ढोता है। उसका ड्राईवर किसी तरह से इधर-उधर से खींचता हुआ उसे पहाड़ी पर चलाता है और उसकी चोटी पर पहुंच जाता है, ऊपर पहुंचकर उसे यह किसी उपलब्धि की तरह लगता है। इस उपलब्धि का जश्न मनाने के लिए वह इंजन को बंद कर एक कप चाय पीने बैठ जाएगा। यह चीज उसके लिए निजी या आर्थिक तौर पर महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन यह कोई उपलब्धि या बड़ी सोच नहीं है। यह एक तुच्छ इच्छा है, जिसे कई दूसरे तरीकों से भी पूरा किया जा सकता था।

ऐसी चीजें लोगों के मन में बहुत बड़ी नजर आती हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी के लक्ष्य को एक खास तरीके से तय कर रखा है।

जीवन में आप जो भी इकट्ठा करते हैं, जो व्यवस्था आप तैयार करते हैं, वह एक सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है, न कि आपके अस्तित्व या जीवन का।
इनर इंजिनियरिंग कार्यक्रम की शुरुआत में ही, परिचय के दौरान हम इस बारे में बात करते हैं। योग के संदर्भ में हम इसे समझाते हैं कि अगर आपने अपने लक्ष्य पर एक आंख टिकाई है तो आपको अपना रास्ता तलाशने के लिए भी सिर्फ एक ही नजर का सहारा मिलेगा। एक नजर से देखने वाला व्यक्ति घर का रास्ता पाने को ही अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानता है। घर का रास्ता मिलने पर उसे लगता है कि उसने कोई बड़ा तीर मार लिया। लेकिन जो व्यक्ति साफ-साफ सबकुछ देख सकता है, उसे घर का रास्ता पाना कोई बड़ी चीज नहीं लगती। दरअसल, उसके हिसाब से इस आसान से काम को तो कोई भी कर सकता है।

इंसानी जीवन और उसकी क्षमताओं को बढ़ाने की बजाय हमने अपने जीवन में बड़े ही मामूली लक्ष्य तय कर रखे हैं। एक ऑटो का मामूली सा इंजन, जिसमें पहाड़ी पर चढ़ने की क्षमता नहीं है, अगर उसे किसी तरह से वह पहाड़ी पर चढ़ा लेता है तो उसे लगता है कि उसने कोई मैदान मार लिया। लेकिन अगर इंसान ने खुद को एक शक्तिशाली इंजन के रूप में तैयार कर लिया तो वह बिना किसी कोशिश के, हर हाल में, खुद ब खुद पहाड़ की बुलंदी पर होगा। ‘मुझे क्या बनना चाहिए’ या ‘मेरे पास क्या होना चाहिए’ की बजाय इंसान का फोकस खुद को शक्तिशाली बनाने पर होना चाहिए। ‘होने और बनने’ की बजाय आपका फोकस इस बात पर होना चाहिए कि ‘इस जीवन को ऊपर कैसे उठाएं’। जब मैं जीवन का बात करता हूं तो उसका आशय कैरियर, रिश्ते या सामुदायिक परियोजनाएं नहीं हैं। मेरा आशय उस जीवन से है, जो आपके शरीर में मौजूद है। इस जीवन को इसकी मौजूदा स्थिति से एक शक्तिशाली जीवन में कैसे तब्दील किया जाए, उसी पर काम कीजिए। अगर आपने यह कर लिया तो यह जीवन हर वो काम करेगा, जो इसे करना चाहिए।

योग इसी चीज को संभव बनाता है। आपके पास क्या है और आपको क्या बनना है, इसकी चिंता छोड़कर आप इस इंजन को शक्तिशाली बनाने पर काम कीजिए, यह किसी भी पहाड़ और उसकी चोटी पर चढ़ जाएगा।

‘मुझे क्या बनना चाहिए’ या ‘मेरे पास क्या होना चाहिए’ की बजाय इंसान का फोकस खुद को शक्तिशाली बनाने पर होना चाहिए। ‘होने और बनने’ की बजाय आपका फोकस इस बात पर होना चाहिए कि ‘इस जीवन को ऊपर कैसे उठाएं’।
आपके जीवन का यही नजरिया होना चाहिए, ना कि ‘मुझे ऐसी नौकरी चाहिए, मुझे इतने लाख या करोड़ रुपये कमाने हैं या फिर मुझे अपने पड़ोस की सबसे सुंदर लड़की से शादी करनी है’। यह सब छोड़कर बस इस इंजन की मौजूदा आकार और क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान दीजिए, बाकी सभी चीजें तो अपने आप ऐसे होने लगेंगी कि जैसी आपने कल्पना भी नहीं की होगी। सबसे बड़ी बात है कि आपके जीवन का स्वरूप, आपके जीवन की व्यवस्था से तय नहीं होगा, बल्कि यह इससे तय होगा कि आपके भीतर क्या धड़क रहा है। जीवन ऐसा ही होना चाहिए, क्योंकि जीवन भीतर से ही घटित होता है। जीवन में आप जो भी इकट्ठा करते हैं, जो व्यवस्था आप तैयार करते हैं, वह एक सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है, न कि आपके अस्तित्व या जीवन का।

इसलिए आप अपनी तुक्ष्छ इच्छाओं को जीवन का लक्ष्य मत बनाइए। इसे कोई उपलब्धि मत समझिए कि ‘मैं नए मॉडल की कार खरीदना चाहता था और मैंने वो ले ली।’ दरअसल, यह तो होना ही था, क्योंकि बाजार आपको जीरो फीसदी ब्याज दर पर कार खरीदने के लिए कर्ज दे रहा है, जो वह आपसे आने वाले दस सालों में वापस वसूल लेगा। अब तो कोई भी कार ले सकता है। कार लेना कोई बड़ी चीज नहीं है, लेकिन सवाल है कि आप कार में बैठ कर क्या करेंगे? आपकी कार को देख कर जब पड़ोसी ईष्र्या करेगा तब तो आपको अच्छा लगेगा। और अगर उन सभी के पास आपसे बड़ी गाड़ियां हुईं तो आप एक फिर बुरा महसूस करने लगेंगे। लेकिन अगर एक इंसान के तौर पर, एक जीवन के तौर पर आप खुद को बड़ा बनाते हैं, तो फिर आप शहर में हों या किसी पहाड़ पर अकेले बैठे हों, आप शानदार महसूस करेंगे। आपके जीवन में आगे के लिए यही नजरिया होना चाहिए।