Sadhguruआज दुनियाभर में योग के नाम पर बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन उन सबका वास्तविक योग से शायद ही कोई लेना-देना हो। इस पुरातन क्रिया से तमाम गलतफहमियाँ जुड़ी रही हैं। अब समय आ गया है कि योग के रहस्य पर से पर्दा उठाया जाए। योग के बारे में जानें सद्‌गुरु के शब्दों में :

मिथक 1: योग हिंदुत्व की उपज है।

सद्‌गुरु: योग उतना ही हिंदू है, जितना कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत ईसाई। सिर्फ इसलिए कि गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाला आइजक न्यूटन एक ईसाई था, इसे ईसाई मान लेना चाहिए? दरअसल, योग एक तकनीक है। जो भी इस तकनीक का अभ्यास करना चाहे, वो कर सकता है। कुछ अज्ञानी लोगों द्वारा सारे योगिक विज्ञान पर हिंदुत्व का लेबल इसलिए लगा दिया गया है क्योंकि  इस विज्ञान और तकनीक का विकास इसी संस्कृति में हुआ। ऐसे में इसको हिंदू जीवनशैली से जोड़कर देखा जाना स्वाभाविक है। ‘हिंदू’ शब्द ‘सिंधु’  शब्द से निकला है, जो एक नदी का नाम है। चूंकि इस संस्कृति का विकास सिंधु नदी के किनारे हुआ है, इसलिए इस संस्कृति को ‘हिंदू’ नाम दे दिया गया। हिंदू कोई ‘वाद’ नहीं है और न ही यह किसी धर्म का नाम है। यह एक भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान है।

मिथक 2: योग का मतलब शरीर को तोड़-मरोड़ कर असाधारण मुद्राएं बनाना है।

सद्‌गुरु: इस पूरी धरती पर ज्यादातर लोग योग को ‘आसन’ समझ बैठते हैं। योग विज्ञान ने जीवन से जुड़े तकरीबन हर पहलू के बारे में तमाम तरह की बातें उजागर की हैं, लेकिन आज दुनिया योग के सिर्फ शारीरिक पहलू को ही जानती है। जबकि योगिक पद्धति में आसनों को बहुत कम महत्व दिया गया है। दो सौ से भी अधिक योग सूत्रों में से मात्र एक सूत्र आसनों के लिए है। लेकिन किसी तरीके से यही एक सूत्र आजकलं खासी अहमियत पा रहा है।

दूसरी तरह से देखा जाए तो यह इस बात का इशारा है कि आज दुनिया किस रास्ते पर जा रही है। दुनिया में जीवन की गति की दिशा साफ है, वह गहरे आयामों यानी आत्मा से शरीर की ओर जा रही है। जबकि हम इसी दिशा को पलट देना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि व्यक्ति अपनी यात्रा शरीर से शुरू करके अपने अंतःकरण यानी भीतर की ओर बढ़े।

मैं दुखी या उदास नहीं हो पाता, वरना दुनियाभर में हठ योग का जिस तरीके से अभ्यास किया जा रहा है और जिस तरह लोग इसके बारे में सोच रहे हैं उसे देखते हुए मुझे निराश हो कर बैठ जाना चाहिए था। ऊपरी तौर पर देखकर लगता है कि योग शरीर से जुड़ी एक तकनीक मात्र है। लेकिन सच यह है कि जब तक आप सांसों में जीवन को महसूस नहीं करेंगे, यह एक जीवंत क्रिया नहीं बन पाएगी। इसीलिए योग में एक जीवित गुरु के होने की परंपरा पर बेहद जोर दिया गया है, ताकि यह क्रिया जीवंत हो सके। योगिक पद्धति दरअसल आपके सिस्टम के साथ किया जाने वाला एक ऐसा सूक्षम छेड़छाड़ है, जो इसे एक अलग धरातल पर ले जाता है। योग का मतलब है, जो आपकी प्रकृति को एक उंचाई तक पहुंचाए। योग का हर आसन, हर मुद्रा और हर सांस यानी सब कुछ इसी उद्देश्य पर केंद्रित है।

मिथक 3: ‘सिक्स-पैक ऐब’ बनाने के लिए योगाभ्यास सबसे अच्छा तरीका है

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सद्‌गुरु: अगर आपकी जरूरत शारीरिक तंदरुस्ती या सिक्स पैक ऐब की है , तो मैं कहूंगा कि आप टेनिस खेलिए या फिर पहाड़ों पर चढ़िए। योग कोई व्यायाम या कसरत नहीं, इसमें और भी बहुत से पहलू जुड़े हुए हैं। योग से आपको तंदरुस्ती जरूर मिलेगी - एक अलग तरह की तंदरुस्ती , लेकिन इससे ‘सिक्स पैक ऐब’ जैसा कुछ नहीं मिलने वाला। अगर आप कैलोरी जलाने या दुबले होने के लिए योग कर रहे हैं, तो जरूर आप गलत तरीके का योग कर रहे है, क्योंकि इन सबका तो सवाल ही नहीं उठता। उसके लिए आप जिम जा सकते हैं। योगाभ्यास बड़े आराम से, शांति से करने वाली क्रिया है, न कि व्यायाम की तरह।

हमारे शरीर में याद्दाश्त का एक पूरा ढांचा होता है। अगर आप अपने शरीर के बारे में सब कुछ जानना चाहते हैं- या इस ब्रम्हांड के बारे में जानना चाहते हैं कि कैसे शून्य से लेकर अब तक का पूरा विकास हुआ तो इन सभी चीजों का जवाब इस शरीर में लिखा है। जब आप आसन करते हैं तो आप उस याद्दाश्त को खोलकर इस जीवन को अंतिम संभावना की तरफ ले जाने के लिए तैयार करते हैं। अगर हठ योग सही वातावरण में सीखा जाए, तो यह आपके पूरी प्रणाली को एक ऐसे अनोखे पात्र या बर्तन का रूप दे सकता है जो ईश्वरीय दिव्यता को ग्रहण कर सके ।

 मिथक 4: योग का विश्‍व स्तर पर विस्तार पिछली सदी में ही हुआ है

आज भले ही तमाम बदले और बिगड़े रूपों में इसका अभ्यास किया जा रहा है,  लेकिन कम से कम ‘योग’ शब्द दुनियाभर में अपनी पहचान तो बना चुका है। भले ही इसके प्रचार-प्रसार के लिए कभी कोई संस्थान या संगठन नहीं बनाया गया, फिर भी यह हर काल में बना रहा, सिर्फ इसलिए क्योंकि लंबे अर्से से इंसान की भलाई में जितना योगदान योग का रहा है, उतना किसी का नहीं।

आज लाखों लोग इसका अभ्यास कर रहे हैं, लेकिन आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई? किसने इसे शुरु किया? यह कहानी बहुत लंबी, बहुत पुरानी है, इतनी कि उस पर वक्त की धूल जम गई। योगिक संस्कृति में शिव को भगवान नहीं, बल्कि आदियोगी यानी पहले योगी अर्थात योग के जनक के रूप में जाना जाता है। शिव ने ही योग का बीज मनुष्य के दिमाग में डाला।

शिव ने अपनी पहली शिक्षा अपनी पत्नी पार्वती को दी थी। दूसरी शिक्षा जो योग की थी, उन्होंने केदारनाथ में कांति सरोवर के तट पर अपने पहले सात शिष्यों को दी थी। यहीं दुनिया का पहला योग कार्यक्रम हुआ।

बहुत सालों बाद जब योगिक विज्ञान के प्रसार का काम पूरा हुआ तो सात पूर्ण ज्ञानी व्यक्ति तैयार हुए- सात प्रख्यात साधु, जिन्हें भारतीय संस्कृति में सप्तऋषि के नाम से जाना और पूजा जाता है। शिव ने इन सातों ऋषियों को योग के अलग-अलग आयाम बताए और ये सभी आयाम योग के सात मूल स्वरूप हो गए। आज भी योग के ये सात विशिष्ट स्वरूप मौजूद हैं।

इन सप्त ऋषियों को विश्व की अलग-अलग दिशाओं में भेजा गया, जिससे वे योग के अपने ज्ञान लोगों तक पहुँचा सकें जिससे इंसान अपनी सीमाओं और मजबूरियों से बाहर निकलकर अपना विकास कर सके।

एक को मध्य एशिया, एक को मध्य पूर्व एशिया व उत्तरी अफ्रीका, एक को दक्षिण अमेरिका, एक को हिमालय के निचले क्षेत्र में, एक ऋषि को पूर्वी एशिया, एक को दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप में भेजा गया और एक आदियोगी के साथ वहीं रह गया। हांलाकि समय ने बहुत कुछ मिटा दिया, लेकिन इसके बावजूद अगर उन इलाकों की संस्कृतियों पर गौर किया जाए तो आज भी इन ऋषियों के योगदान के चिन्ह वहां दिखाई दे जाएंगे। उसने भले ही अलग-अलग रूप-रंग ले लिए हो या फिर अपने रूप में लाखों तरीकों से बदलाव कर लिया हो, लेकिन उन मूल सूत्रों को अब भी देखा जा सकता है।

मिथक 5: संगीत के साथ योग करना चाहिए

सद्‌गुरु: जब आप  आसन  कर रहे हों, तो आपके आसपास कोई आइना या किसी तरह का संगीत नहीं होना चाहिए। हठ योग करते समय शरीर, मन, ऊर्जा और अंतःकरण- सभी का उसमें पूरी तरह शामिल होना जरूरी है। अगर आप रचना के स्रोत को जो आपके भीतर है, शामिल करना चाहते हैं, तो इसके लिए आापके शरीर, मन और ऊर्जा को पूरी तरह से सम्मिलित होना जरूरी है। इसे आपको खास तरह की श्रद्धा और एकाग्रता के साथ करना चाहिए, ना कि गए, संगीत बजा दिया और थोड़ा अभ्यास कर लिया। योग केंद्रों या स्टूडियो की आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि योग शिक्षक आसन करते हुए बातें करते रहते हैं। ऐसा करने से आपका नुकसान होना तय है।

आसन करते समय बात न करना सिर्फ योग का चलन नहीं, बल्कि इसका नियम है। मुद्राओं के दौरान आप कभी बात नहीं कर सकते। आसन करते समय सांस, मानसिक एकाग्रता व ऊर्जा की स्थिरता जैसी सभी चीजों का बहुत महत्व है। आसन करते हुए अगर आप बातें करेंगे, तो ये सब नष्ट हो जाएगा। कम से कम आठ-दस ऐसे लोग हमारे पास आ चुके हैं, जो गंभीर असंतुलन के शिकार हैं और जिससे बाहर निकलने में हमने उनकी मदद की। उनमें से करीब चार लोगों ने अपना पेशा ही छोड़ दिया, क्योंकि उन्हें अहसास हो गया कि वे अब तक किन बेमतलब की चीजों में उलझे हुए थे।

कुछ साल पहले जब मैं अमेरिका में था, तो मुझे एक योग स्टूडियों में बोलने के लिए बुलाया गया। जब मैं योग स्टूडियो पहुंचा तो देखा कि लोगों को उत्साहित करने के लिए वहां जोरदार संगीत बज रहा था। योग शिक्षिका अर्धमत्स्येंद्रासन की मुद्रा में थीं और लोगों से बातें भी कर रही थीं। मुझे देखते ही, उछलकर खड़ी हो गईं और आकर मुझसे लिपट गईं।

मैं उन्हें एक तरफ ले गया और उनसे कहा, ‘देखिए, इस तरह आपके सिस्टम में गंभीर असंतुलन हो सकता है। आप कितने सालों से ऐसा कर रही हैं?’ उन्होंने कहा, ‘करीब 15-16 सालों से।’ मैंने कहा, ‘अगर आप पिछले 16 सालों से ऐसा कर रही हैं, तो निश्चित रूप से आपको  फलां-फलां बीमारियां होंगी।’ इतना सुनते ही वह डर कर मुझे देखने लगीं। अगले दिन वह मेरे पास आईं और बोलीं, ‘सद्गुरु, कल आपने जो कहा था, वह वाकई मेरे साथ हो रहा है। मैं तमाम तरह का डॉक्टरी इलाज करवा रही हूं।’ मैंने कहा, ‘आपको डॉक्टर की जरूरत नहीं है, आप खुद अपने को बीमार कर रही हैं। ये सब छोड़ दीजिए, सारी बीमारियां खत्म हो जाएंगी।’ डेढ़ साल के बाद उन्होंने योग सिखाना छोड़ दिया।

ऐसे बहुत सारे लोग, जिन्होंने गलत तरीके से योगाभ्यास किया है, अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं। ऐसा इसलिए नहीं, क्योंकि योग करना खतरनाक है, बल्कि दुनिया में मूर्खता हमेशा  ही खतरनाक होती है। आपका कोई भी मूर्खतापूर्ण व्यवहार आपको ही नुकसान पहुंचाएगा।

मिथक 6: योग किसी किताब की मदद से सीखा जा सकता है

सद्‌गुरु: आज आप किसी भी बड़ी किताब की दुकान में चले जाइए, वहां आपको कम से कम 15-20 योग के उपर किताबें तो मिल ही जाएंगी। ‘सात दिन में योग सीखें’, ‘21 दिन में योगी बनें’, वगैरह-वगैरह। ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जिन्होंने किताबों की मदद से योग सीखने की कोशिश में खुद को काफी नुकसान पहुंचाया है। हालांकि ऊपरी तौर पर लगता है कि योग सीखना आसान होगा, लेकिन जब आप इसे करेंगे, तो पाएंगे कि यह बेहद सूक्ष्म और जटिल है। इसे पूरी तरह समझकर और किसी गुरु की निगरानी में ही करना चाहिए, नहीं तो खासी परेशानी भी खड़ी हो सकती है। किताबें  आपको योग सिखने  के लिए प्रेरणा दे  सकती  हैं, लेकिन कोई भी किताब आपको योग सिखा नहीं सकती।

मिथक 7: योग का अभ्यास सुबह-शाम किया जाता है

सद्‌गुरु: योग केवल सुबह-शाम किया जाने वाला अभ्यास मात्र नहीं है। यह जीवन जीने का एक खास तरीका है। व्यक्ति को योग में ढल जाने की जरूरत होती है। सुबह-शाम योग और दिन भर उलझनों में फंसे रहना - यह योग नही, योगाभ्यास है।

जीवन का कोई भी ऐसा पहलू नहीं है, जो यौगिक प्रक्रिया से परे हो। अगर आपकी जिंदगी योग बन जाए, तो आप सबकुछ कर सकते हैं। आप अपना परिवार चला सकते हैं, दफ्तर जा सकते हैं, अपना कारोबार  चला सकते हैं, अगर आप अपने जीवन में योग को उतार लें, तो बिना किसी बाधा के हर वे काम आप कर सकते हैं, जो आप करना चाहते हैं। जीवन के हर पहलू को आप दोनो तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं - खुद को दुनियादारी में बांधने के लिए भी और दुनियादारी से मुक्त करने के लिए भी। अगर आप  इसका इस्तेमाल दुनिया के बंधन में उलझने के लिए करते हैं, तो हम उसे ‘कर्म’ कहते हैं। और अगर आप दुनियादारी से मुक्त करने के लिए इस्तेमाल करते हैं, तो हम उसे योग कहते हैं।