सद्‌गुरु

 

आजकल थाइरोइड की समस्या आम होती जा रही है। सद्‌गुरु हमें इसका कारण और इसे ठीक करने के तरीके बता रहे हैं। देखते हैं ये हिंदी में डब ये वीडियो।

 

 

प्रश्न : सद्‌गुरु इन दिनों बहुत से लोगों को थाइरोइड प्रोब्लम्स हो रही हैं - हाइपो-थाइरोइड या हाइपर-थाइरोइड। आयोडीन वाला नमक खाने के बावजूद थाइरोइड प्रोब्लम्स आम हो गयी हैं। इन प्रोब्लम्स के बढ़ने की वजह क्या है? क्या ये भी डायबिटीज या हाइपर-टेंशन की तरह स्ट्रेस रिलेटेड है?

क्या हम हठयोग या क्रिया के अभ्यास से,या ईशा योग केंद्र जैसे प्राण-प्रतिष्ठित स्थान पर आकर इन हालातों में सुधार ला सकते हैं? इससे बाहर निकलने के लिए हम कौन सी चीजें कर सकते हैं?

सद्‌गुरु : बहुत से लोगों ने हठयोग के अभ्यास के ज़रिए इससे छुटकारा पाया है, इसमें कोई शक नहीं है। किसी प्राण-प्रतिष्ठित स्थान में होने से निश्चित रूप से फ़ायदा होता है।

लेकिन..ये थाइरोइड इम्बेलेंसकाफी ज़्यादा लोगों को होने लगा है। देखिए, हमें इसे समझना होगा। आप जिसे थाइरोइड कह रहे हैं - योग में हम इन ग्रंथियों को इस तरह से नहीं देखते, लेकिन मेडिकल दृष्टि से, आप जिसे थाइरोइड कह रहे हैं, वो आपके भीतर एक ऐसा स्राव है, जो आपके सिस्टम को नियंत्रित या कैलिब्रेट करता है, हर रोज़। यह तय करता है कि कितना पाचन होना चाहिए, कितनी ऊर्जा पैदा होनी चाहिए, कितना फैटपैदा होनी चाहिए, कितनी मांसपेशी बननी चाहिए, हर चीज। ये आपकी शारीरिक संरचना को संतुलित करने की कोशिश करता है।

आपके शरीर की संरचना, आपकी मनोवैज्ञानिक संरचना से गहरा संबंध रखती है। आज, आपको यह दिखाने के लिए पर्याप्त प्रमाण मौजूद हैं कि अगर आप यहाँ बैठकर पहाड़ के बारे में सोचते हैं, तो आपकी ग्रंथियां एक तरह से काम करेंगी। अगर आप शेर के बारे में सोचते हैं, तो ये किसी और तरीके से काम करेंगी। अगर आप समुद्र के बारे में सोचते हैं, तो ये किसी और तरीके से काम करेंगी। अगर आप किसी आदमी या औरत के बारे में सोचते हैं, तो ये किसी और तरीके से काम करेंगी। बस एक विचार - और कुछ नहीं, पहाड़ से कोई संपर्क नहीं, शेर से कोई संपर्क नहीं, आदमी, औरत या समुद्र से कोई संपर्क नहीं - बस एक विचार ही ग्रंथियों के काम में उतार-चढ़ाव ले आएगा। मैं कह रहा हूँ कि यह सिस्टम इतना शानदार और सटीक है कि यह आपको अच्छी हालत में रखने के लिए हर चीज को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है।

https://www.youtube.com/watch?v=ivWafksVM_Q

आपके साथ समस्या ये है कि आपको एक बैलगाड़ी चाहिए, क्योंकि आप वो खोई हुई कड़ी हैं। आपको बैलगाड़ी चाहिए, लेकिन उन्होंने आपको एक शानदार अंतरिक्ष यान दे दिया, च्च। हर छोटी से छोटी चीज तमामों चीजें करती है। अगर आप इसे बस छू लेते हैं, तोबुम्म ! सिस्टम में कई तरह की लहरें पैदा हो जाती हैं। अगर आप बस ऐसे देखते हैं और इस पेड़ के बारे में एक राय बना लेते हैं, तो इसमें... कई तरह के रासायनिक और दूसरे बदलाव आ जाएंगे। ग्रंथियों के काम करने का तरीका बदल जाएगा।

आप जहाँ कहीं भी हों, मुंबई में हों, न्यू-यॉर्क या लंदन में, या जहां भी हों –जिन जगहों पर आप चल-फिर रहे हैं, बस उस परिस्थिति पर गौर कीजिए। शायद सामाजिक तौर पर आप उन चीजों के आदी हो गए हैं। लेकिन जिस तरह के माहौल में आप चल-फिर रहे हैं, उस पर गौर कीजिए, कितने तरह की चीजें वहाँ हो रही हैं। उनमें से कुछ भी इस जीवन के लिए अनुकूल नहीं है।

हो सकता है कि आपको इनकी आदत पड़ गई हो, शायद अब आप उन शहरों से बाहर न रह पाएं, वो एक अलग बात है, लेकिन वो ‘जीवन’ जो आप हैं, वो उस तरह का माहौल नहीं चाहता।

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तो आपके भीतर जो बहुत से बदलाव हो रहे हैं, वो आपके हित में नहीं हैं। ग्रंथियों का ठीक से काम न करना तो बस एक नतीजा है। ग्रंथियों के बहुत ही परिष्कृत कार्यों में से एक चीज है - थाइरोइड। यह आसानी से पता चल जाता है। सबसे पहले आपके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक पैरामीटर सामान्य से थोड़े बदल जाते हैं, गड़बड़ी की वजह से।

और दूसरा आयाम है उस गडबड़ी का, जो आपके भीतर से हो रही है - आपके खुद के मनोवैज्ञानिक पैटर्न। गड़बड़ी का एक और आयाम ये है कि आपके भीतर किस तरह का भोजन जा रहा है। आज आप ऐसी कोई चीज नहीं खा सकते - जो रासायनिक तौर पर प्रदूषित न हो। अगर आप काफी आर्गेनिक भोजन खा रहे हैं, तो बस वे ओर्गानिक केमिकल्स इस्तेमाल कर रहे हैं। हालात ऐसे हो गए हैं। कुछ ऐसा खाना बहुत मुश्किल है जो किसी जंगल में उगा हो और आप बस उसे तोड़कर खा सकें। ऐसा बहुत-बहुत कम होता है। ऐसे लोगों का प्रतिशत न के बराबर है जो उस तरह की चीजें खा सकें। अब सब कुछ बाजार से आता है। और बाजार में सब कुछ ज्यादा मात्रा से तय होता है न कि क्वालिटी से।

और ये भी, इस देश में - ये सारी चीजें अब खत्म हो गई हैं। मेरी दादी माँ - हर दिन वो सब्जी वाले - वो घर में टोकरी लेकर आते थे, सुबह-सुबह ही उन्होंने खेत से सब्जी तोड़ी होगी, और साढ़े सात-आठ बजे तक वो हमारे दरवाजे पर होते थे। जब वे आते थे, तो दादी माँ सब्जियों को देखती थीं। जब उन्हें खरीदना होता था, तो वे सब्जी वाले को सब्जी छूने भी नहीं देती थीं।

वे ही उसे तोड़कर लाए हैं, वो बिल्कुल ताजी है, बस अभी-अभी पौधे से टूटी है, लेकिन अगर उसे तराजू में रखना हो, या उन्हें उसमें से एक, दो, तीन, चार करके चुनना हो, तो वे उन्हें सब्जी को छूने नहीं देती थीं। “तुम मेरी सब्जियों को हाथ मत लगाओ।”

ऐसा बैक्टीरिया से बचने के लिए नहीं था। वे नहीं चाहती थीं कि वो आदमी या औरत उन सब्जियों को छुए जिन्हें उनके बच्चे और नाती-पोते खाएँगे।

वे उन्हें एक खास तरह से छूती थीं, उन्हें सहलाती थीं, बहुत प्यार के साथ - उन्हें हर तरह से देखती थीं, और फिर उन्हें काटकर बनाती थीं।

ये मत सोचिए कि ये अजीब बर्ताव है। अगर आपके जीवन में ये सारी चीजें मौजूद नहीं हैं, तो आपको अपनी ग्रंथियों को ठीक रखने के लिए गोलियां खानी पड़ेंगी। और गोली निगलने से इन में संतुलन नहीं आने वाला। आप इसे दबा सकते हैं, आप इसे सही संतुलन में नहीं ला सकते, ये नहीं होगा। क्योंकि हर दिन ये अलग होता है, हर पल ये अलग होता है।

यह एक कैलिब्रेशन है, एक बहुत सक्रिय कैलिब्रेशन होता रहता है। आप इसे मार देते हैं और बस एक गोली लेते हैं और किसी तरह काम चलाते हैं – यानी की आप थोड़ी खराब मशीन हैं। इस खराबी के साथ - मशीन की यह खराबी कई तरह से जाहिर होगी। और आपको इसका पता तभी चलेगा जब आप इसे हद के पार ले जाएंगे। जब आप बहुत सीमित जीवन जीते हैं, तो ये ज़ाहिर नहीं होता।

ये कुछ ऐसा है। देखिए, अगर आपकी कार का टायर पंक्चर है, तो भी आप बीस किलोमीटर की रफ्तार से कार चलाकर घर जा सकते हैं। कुछ चीजें खराब होंगी, कुछ चीजें फट जाएंगी, लेकिन फिर भी आप कार चला सकते हैं। अगर आप दो सौ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पर हैं, और तब अगर टायर पंक्चर होता है, तो आप जानते हैं कि आप सड़क से बाहर उड़ जाएंगे। तो, बस यही बात है। अगर इन सब चीजों को ठीक से संभाला गया है, अब अगर आप अपने जीवन को एक काफी ज्यादा ऊंचे स्तर पर काम करने के लिए ले जाते हैं, तो भी ये आराम से चलेगा। उस संतुलन को लाए बिना अगर आप अपने जीवन की गति बढाते हैं, तो ये डगमगाने लगेगा। आप अपने आसपास हर दिन ऐसा होता देखते होंगे।

तो, अपने जीवन में उतनी लागत लगाने के लिए - खैर, आप अपने शहर को छोड़कर जंगल में रहने नहीं जा सकते। आप अपने माहौल को छोड़कर दूर नहीं जा सकते। आपको कम से कम खुद को इतना सक्षम बनाना होगा कि उन चीजों का आप पर ज्यादा असर न हो। वैसे भी इनका असर तो होगा, लेकिन सवाल यह है कि कितना? कितना असर होगा?

कम से कम अपने घर में, अपने आस पास कुछ पौधे लगाईये। अगर खुली जगह न हो - तो अपने कमरे में ही लगा लीजिए। हो सकता है कि ये थोड़ा अजीब लगे - आधी छत को खोल दीजिए। ‘अरे, लेकिन सद्गुरु, ऊपर एक और मंजिल है।’ ठीक, एक दीवार हटा दीजिए, ताकि आपको थोड़ी सूरज की रोशनी मिले। हाँ। ऐसा न हो कि घर हर तरफ से बंद हो और हर समय बस एक ए.सी. बर्रर्रर्र करता रहे।

ये भी एक चीज है। आपके आसपास मौजूद ध्वनियों की गूंज इस शरीर को पूरी तरह से झकझोर रही है। हर समय बर्रर्रर्र। खासकर जब मैं देश से बाहर होता हूँ, खासकर अमेरिका में, - यूरोप में भी, वहाँ थोड़ा बेहतर है – लेकिन अमेरिका में, हर समय कुछ न कुछ गूंजता रहता है, हर समय। जब मैं यहाँ आता हूँ, तो लगता है....बस बिलकुल शांत, जो आपको जीवंत बनाता है। जब हर चीज गूंजती रहती है, तो आप बस - पुफ्फ़!

ज्यादातर लोग इसके प्रति जागरूक नहीं हैं, लेकिन ये उनके साथ हो रहा है। उनके दिन में आठ घंटे सोने से ये साफ़ साबित होता है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि वे अपने प्राकृतिक वातावरण में नहीं रह रहे। वे सोकर खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश कर रहे हैं।

तो खुद को बीमारी से बचाने के लिए, खुद को मानसिक रोगों से बचाने के लिए, खुद को हर तरह के असंतुलन से बचाने के लिए, आप दिन में आठ-दस घंटे की नींद लेते हैं। यानी आधा जीवन आप मरे पड़े रहते हैं। मौत हमेशा एक आसान हल होती है लेकिन हमें ऐसा हल नहीं चाहिए। हम जीवन के हल को खोज रहे हैं, अंत के हल को नहीं।

किसी चीज का अंत करना उसका हल होता है, है न? हम्म? हल है या नहीं? हल है, लेकिन हमें वैसा हल नहीं चाहिए (हंसते हैं)। हम यहीं रहना चाहते हैं, ज़िंदा और पूरे हल के साथ।

तो अगर ऐसा होना है - तो आप शायद आप थोड़े अजीब लगें, मुझे भी आप अजीब लगेंगे - लेकिन आप जहाँ सोते हैं, वहाँ कुछ पौधे लाकर रख सकते हैं। जब आप चलते हैं, तब आपको इंसानों के अलावा दूसरे जीवनों के प्रति भी हमेशा जागरूक रहना चाहिए। ज्यादातर लोग इंसानों के प्रति ही जागरूक नहीं होते, तो मैं आपको याद दिला रहा हूँ, आपको हर उस चीज के प्रति जागरूक रहना होगा, जो जीवित है। एक पेड़, एक पौधा, एक घास का तिनका, एक कूदता हुआ टिड्डा और आपके पास से गुजरने वाले वे लोग जिन्हें आप पसंद नहीं करते - हर तरह की चीजें। हर चीज के प्रति आपको ज़िन्दा होना चाहिए।

ये बोलने की कोई जरूरत नहीं है कि, “ओ, मुझे इस पेड़ से प्यार है!”

आपको पेड़ से प्यार करने की जरूरत नहीं है, आपको उससे पोषण लेना होगा, जीने का केवल यही तरीका है। आप पसंद करें या न करें, वो अभी आपको पोषण दे रहा है। अगर आप यह सचेतन होकर करते हैं, तो हर चीज बेहतर काम करेगी। अपने आसपास की हर चीज के प्रति जीवंत होना - बिना किसी भेदभाव के -  ऐसी साधारण चीज आपके थाइरोइड की समस्या को संतुलित कर सकती है। च्च, बेशक, सुबह हठयोग तो है ही, क्रियाएँ भी हैं, ये सभी चीजें निश्चित रूप से मदद करेंगी। और प्राण-प्रतिष्ठित... शक्तिशाली रूप से प्राण-प्रतिष्ठित स्थान भी हैं...कई चीजें हैं...

एक मुख्य कारण ये है कि, इंसान कम और कम सक्रिय होते जा रहे हैं, जैसे-जैसे तकनीक का विकास हो रहा है। एक दिन में, औसतन... एक औसत इंसान... पिछली पीढ़ियों के लोग कितनी ज्यादा शारीरिक मेहनत किया करते थे, और अभी, हम सब जितनी शारीरिक मेहनत कर रहे हैं, वह बहुत ही कम है। इतने कम स्तर की सक्रियता के साथ सिस्टम में संतुलन रखना मुश्किल है।

तो थोड़ा सा असंतुलन होने पर, आप जाकर बिस्तर पर मत लेटिये। अगर आप थोड़ा असंतुलन महसूस करते हैं, तो आपको ढेर सारे काम में कूद पड़ना चाहिए। जहाँ भी जोश और उत्साह के साथ कोई काम चल रहा हो, आपको उस काम में कूद पड़ना चाहिए, और उसे ज्यादा, और ज्यादा कीजिए, अगर आप बीमार महसूस कर रहे हैं तो। वाकई। क्योंकि जिस पल आप पीछे हटते हैं, आप बीमारी को मजबूत बनाते हैं। अगर आप बहुत ज़्यादा बीमार हैं, तो वो अलग बात है। वरना आपको... हम असल में ग्रंथियों की कई तरह की गड़बडियों की बात कर रहे हैं। शरीर से काम लेना एक आसान समाधान है।

शरीर से काम लेना यानी.... जो लोग न्यू-यॉर्क में रहते हैं, मैं आपको बता रहा हूँ – काम लेने का मतलब ये नहीं की आपके पास कलाई पर वो हेल्थ-बैंड है... दस कदम चल कर... , बारह कदम चल कर... । ऐसा मत कीजिए, ये शरीर से काम लेने का तरीका नहीं है, ऐसा करने से बीमार पड़ने की संभावना ज्यादा है।

बस यूं ही, खुशी के साथ कुछ कीजिए। ख़ुश और ज़िंदा रहिए। काम तो सिर्फ... अगर आप ये नहीं जानते कि यहाँ बैठे-बैठे पूरी तरह से ज़िंदा कैसे रहना है, तो जाकर कुछ खेलिए। कोई खेल खेलिए, बस यहाँ वहाँ दौड़िए। चलते समय टिड्डे की नकल कीजिए। कोशिश कीजिए, क्यों नहीं? आपने कभी किया नहीं? आपके साथ यही तो समस्या है। जब आप जाएँगे, तो मैं देखना चाहता हूँ कि ... चूंकि आप घास पर चलने जा रहे हैं, बेहतर होगा कि आप टिड्डे की तरह चलें, चक-चक-चक-चक-चक। आप देखेंगे आपके अंदर कितनी जीवंतता आ जाएगी।

मूल रूप से, आप... आपकी बुनियादी समस्या ये है कि आप अपने जीवन के बारे में कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गए हैं। च्च, तो, हमें आपको दोबारा याद दिलाना होगा कि वैसे भी आप मर जाएंगे, तो इस बारे में इतने गंभीर मत होइए, क्योंकि इसे खत्म होने में समय नहीं लगेगा। आपको पकड़ ढीली करनी होगी। अगर अभी आप पकड़ ढीली कर देते हैं, तो आखिरी सीन अलग हो सकता है। वरना लोग आपको देखेंगे... । आपके साथ होने वाली ये बहुत बड़ी बात होगी - आपने पकड़ ढीली कर दी। अभी से अगर आप पकड़ ढीली कर दें, तो आप देखेंगे कि आपका जीवन बहुत शानदार होगा।