सद्गुरुपिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि शिव के हमेशा साथ रहने वाले नंदी, तीसरी आँख और त्रिशूल किस ओर इशारा करते हैं। हर तस्वीर में, हर मूर्ति में, हर जगह शिव के सिर पर चंद्रमा और गले में सांप दिखाया जाता है। क्या है आखिर शिव का इनसे संबंध ? आइए जानते हैं -

चंद्रमा

शिव के कई नाम हैं। उनमें एक काफी प्रचलित नाम है सोम या सोमसुंदर। वैसे तो सोम का मतलब चंद्रमा होता है मगर सोम का असली अर्थ नशा होता है।नशा सिर्फ बाहरी पदार्थों से ही नहीं होता, बल्कि केवल अपने भीतर चल रही जीवन की प्रक्रिया में भी आप मदमस्त रह सकते हैं।

अगर आपका विशुद्धि चक्र शक्तिशाली हो जाता है, तो आपके अंदर शरीर में प्रवेश करने वाली हर चीज को छानने या शुद्ध करने की काबिलियत आ जाती है। शिव का केंद्र विशुद्धि चक्र में है। उन्हें विषकंठ या नीलकंठ भी कहा जाता है क्योंकि वह सारे जहर को छान लेते हैं।
अगर आप जीवन के नशे में नहीं डूबे हैं, तो सिर्फ सुबह का उठना, अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करना, खाना-पीना, रोजी-रोटी कमाना, आस-पास फैले दुश्मनों से खुद को बचाना और फिर हर रात सोने जाना, जैसी दैनिक क्रियाएं आपकी जिंदगी कष्टदायक बना सकती हैं।

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अभी ज्यादातर लोगों के साथ यही हो रहा है। जीवन की सरल प्रक्रिया उनके लिए नर्क बन गई है। ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि वे जीवन का नशा किए बिना उसे बस जीने की कोशिश कर रहे हैं। चंद्रमा को सोम कहा गया है, यानि नशे का स्रोत।

अगर आप किसी चांदनी रात में किसी ऐसी जगह गए हों जहां बिजली की रोशनी नही हो, या आपने बस चंद्रमा की रोशनी की ओर ध्यान से देखा हो, तो धीरे-धीरे आपको सुरूर चढ़ने लगता है। क्या आपने इस बात पर ध्यान दिया है? हम चंद्रमा की रोशनी के बिना भी ऐसा कर सकते हैं मगर चांदनी से ऐसा बहुत आसानी से हो जाता है। अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है। शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं। नशे का आनंद उठाने के लिए आपको सचेत होना ही चाहिए। जब आप शराब पीते हैं, तब भी आप सजग रहकर उस नशे का मजा लेने की कोशिश करते हैं। योगी ऐसे ही होते हैं – पूरी तरह नशे में चूर मगर बिल्कुल सजग। योग का विज्ञान आपको हर समय अपने अंदर नशे में चूर रहने का आनंद देता है।

योगी आनंद के खिलाफ नहीं होते। बस वे थोड़े से आनंद से या सिर्फ सुख से संतुष्ट नहीं होना चाहते। वे लालची होते हैं।

सांप शिव के गले के चारों ओर लिपटा रहता है। यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में 114 चक्र होते हैं। आप उन्हें 114 संधि स्थलों या नाड़ियों के संगम के रूप में देख सकते हैं।
वे जानते हैं कि अगर आप एक गिलास शराब पीते हैं तो उससे आपको थोड़ा सा सुरूर होगा जो अगली सुबह सिरदर्द में बदल जाएगा। योगी ऐसा नहीं चाहते। योग के साथ, वे हर समय पूरी तरह नशे में चूर रहते हुए भी सौ फीसदी स्थिर और सचेत रह सकते हैं। कुछ पीकर या किसी भी नशे से ऐसा नहीं किया जा सकता। ऐसा तभी हो सकता है अगर आप खुद अपना नशा तैयार कर रहे हों और उसे पी रहे हों। प्रकृति ने आपको यह संभावना दी है।

पिछले कुछ दशकों में खूब सारा शोध हुआ है और एक वैज्ञानिक ने यह पाया कि मानव मस्तिष्क में लाखों कैनाबिस रिसेप्टर हैं। अगर आप बस अपने शरीर को एक खास तरीके से रखें, तो शरीर अपना नशा खुद पैदा कर सकता है और मस्तिष्क उसे पाने का इंतजार करता है। मानव शरीर अपना नशा खुद पैदा करता है, इसीलिए बिना किसी बाहरी उत्तेजना के ही शांति, आनंद और खुशी की भावनाएं आपके अंदर पैदा हो सकती हैं। जब उस वैज्ञानिक ने इस रसायन को एक सटीक नाम देना चाहा, तो उसने दुनिया भर के बहुत से ग्रंथ पढ़े। मगर कोई शब्द उसे संतुष्ट नहीं कर पाया। फिर वह भारत आया, जहां उसे ‘आनंद’ शब्द मिला। उसने उस रसायन को ‘आनंदामाइड’ नाम दिया। अगर आप अपने शरीर में पर्याप्त मात्रा में आनंदामाइड पैदा करते हैं, तो आप हर समय नशे में डूबे रहकर भी पूरी तरह जागरूक, पूरी तरह सचेत रह सकते हैं।

सर्प

योग संस्कृति में, सर्प यानी सांप कुंडलिनी का प्रतीक है। यह आपके भीतर की वह उर्जा है जो फिलहाल इस्तेमाल नहीं हो रही है। कुंडलिनी का स्वभाव ऐसा होता है कि जब वह स्थिर होती है, तो आपको पता भी नहीं चलता कि उसका कोई अस्तित्व है। केवल जब उसमें हलचल होती है, तभी आपको महसूस होता है कि आपके अंदर इतनी शक्ति है। जब तक वह अपनी जगह से हिलती-डुलती नहीं, उसका अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर होता है।

अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है। शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं।
इस कारण सांप को कुंडलिनी के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, क्योंकि कुंडली मारे सांप को भी देखना बहुत मुश्किल होता है, जब तक कि वह आगे नहीं बढ़ता। इसी तरह, आप कुंडलिनी में कैद इस ऊर्जा को सिर्फ तब देख पाते हैं जब वह हिलती-डुलती है। अगर आपकी कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है, तो आपके साथ अविश्वसनीय और चमत्कारी चीजें हो सकती हैं। एक बिल्कुल नई किस्म की ऊर्जा आपके अंदर भरने लगती है और आपके शरीर के साथ-साथ सब कुछ बिल्कुल अलग तरीके से काम करने लगता है।

शिव के साथ सांप को दिखाने की यही वजह है। यह दर्शाता है कि उनकी ऊर्जा शिखर तक पहुंच चुकी है। आध्यात्मिकता या रहस्यवाद को सांपों से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि इस जीव में बोध का एक खास आयाम विकसित है। यह एक रेंगने वाला जीव है, जिसे जमीन पर रेंगना चाहिए मगर शिव ने उसे अपने सिर पर धारण किया है। इससे यह पता चलता है कि वह उनसे भी ऊपर है। यह दर्शाता है कि कुछ रूपों में सांप शिव से भी बेहतर हैं। सांप ऐसा जानवर है जो आपके सहज रहने पर आपके साथ बहुत आराम से रहता है। वह आपको कुछ नहीं करेगा। वह कुछ खास ऊर्जाओं के प्रति बहुत संवेदनशील भी होता है। सांप शिव के गले के चारों ओर लिपटा रहता है। यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में 114 चक्र होते हैं। आप उन्हें 114 संधि स्थलों या नाड़ियों के संगम के रूप में देख सकते हैं। इन 114 में से आम तौर पर शरीर के सात मूल चक्रों के बारे में बात की जाती है। इन सात मूल चक्रों में से, विशुद्धि चक्र आपके गले के गड्ढे में मौजूद होता है। यह खास चक्र सांप के साथ बहुत मजबूती से जुड़ा होता है। विशुद्धि जहर को रोकता है, और सांप में जहर होता है। ये सभी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं। विशुद्धि शब्द का अर्थ है – फिल्टर या छलनी। अगर आपका विशुद्धि चक्र शक्तिशाली हो जाता है, तो आपके अंदर शरीर में प्रवेश करने वाली हर चीज को छानने या शुद्ध करने की काबिलियत आ जाती है। शिव का केंद्र विशुद्धि चक्र में है। उन्हें विषकंठ या नीलकंठ भी कहा जाता है क्योंकि वह सारे जहर को छान लेते हैं। वह उसे अपने शरीर में प्रवेश नहीं करने देते। जहर आपके अंदर सिर्फ भोजन के द्वारा ही नहीं जाता। वह कई तरीकों से आपके अंदर घुस सकता है – एक गलत विचार, एक गलत भावना, एक गलत कल्पना, एक गलत ऊर्जा या एक गलत आवेग आपके जीवन में जहर घोल सकता है। अगर आपका विशुद्धि चक्र सक्रिय है, तो वह सभी कुछ छान देता है। वह आपको इन सभी असरों से बचाता है। दूसरे शब्दों में, विशुद्धि के बहुत सक्रिय हो जाने पर इंसान अपने अंदर इतना शक्तिशाली हो जाता है कि उसके आस-पास जो भी होता है, वह उस पर असर नहीं डालता। वह अपने अंदर स्थिर हो जाता है। वह बहुत शक्तिशाली प्राणी बन जाता है।

 

 

संपादक की टिप्पणी: जानें शिव के अन्य आयामों के बारे में, पढ़ें यह ब्लॉग