सभी सभ्यताओं की जननी रही हैं नदियाँ
‘नदी अभियान’ के खत्म होने पर 3 अक्टूबर 2017 को जो नीति दस्तावेज सरकार को सिफारिश के तौर पर सौंपा गया, उसे एक श्रृंखला के रूप में हम आपसे साझा कर रहे हैं। इस भाग में पढ़ते हैं कि नदियाँ दुनिया की सभ्यताओं की जननी रही हैं...
संसार भर की सभ्यताएँ नदियों के किनारे फली-फूलीं। दक्षिण एशिया के पहले नगर, 2600 ईपू या बी.सी. (ईसा मसीह के जन्म से पूर्व) में स्थापित हुए, जो अब उत्तरपश्चिमी भारत तथा उसके आगे पश्चिम में हैं।
सबसे पुराने ग्रन्थ में भी नदियों का वर्णन
ऋग्वेद, भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीनतम ग्रंथों में से है। इसके 45 श्लोकों में बार-बार सरस्वती नदी का नाम आया है। इसे सबसे महान और प्रचण्ड माना जाता था। इसका वास्तव में अस्तित्व था जो टेक्टोनिक प्लेट मूवमेंट में खत्म हो गया या यह एक महज काल्पनिक नदी है जिसका पुराणों में नाम भर है; यह बात आज भी एक रहस्य है, परंतु ऋगवेद के काल से ही सभी नदियों के प्रति एक आदर का भाव रहा है।
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पूजी जाती रही हैं नदियां
राष्ट्रीय नदी के नाम से जानी जाने वाली गंगा नदी को मोक्षदायिनी की तरह पूजा जाता रहा है। कहते हैं कि गंगा में एक डुबकी लगाने से सारे दुखों व कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।
हमारे नदियों के सभी शुरूआती स्थलों पर: गंगा की गंगोत्री, यमुना की यमुनोत्री, नर्मदा की अमरकंटक, कृष्णा की कृष्णाबाई, कावेरी की तालकावेरी में नदियों के नाम पर मंदिर बनाए गए हैं।
नदियों के लिए बने मंदिर दिखाते हैं कि देश में नदियों को किस रूप में लिया जाता था। नदी के नाम से मन में आदर का भाव पैदा होता था। इन मंदिरों के अनुष्ठानों और नदियों के नाम पर होने वाली आरती में आज भी वही भाव पाया जाता है जैसे काशी की प्रसिद्ध गंगा-आरती। लेकिन पर्यावरणीय इकाई या पर्यावरण के एक हिस्से के तौर पर नदी तंत्र के पोषण की परंपरा अब पहले जैसी बिलकुल नहीं रही।
नदी पुनरुद्धार नीति सिफारिश दस्तावेज डाउनलोड करें – डाउनलोड लिंक
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