पढ़ाई एक साधना है!
पढ़ने की आदत कितनी अहमियत रखती है? क्या ऑडियो और विडियो के माध्यम से मिलने वाली शिक्षा किताबें पढने का विकल्प हो सकत हैं? पढाई और शिक्षा के अन्य माध्यमों का बेहतर उपयोग करने के लिए हमें अपने आप में क्या बदलाव लाने चाहिए? इस बारे सद्गुरु बता रहे हैं और साथ ही बता रहे हैं जीवन के करीब पहुंचने का मंत्र -
पढ़ने की आदत कितनी अहमियत रखती है? क्या ऑडियो और विडियो के माध्यम से मिलने वाली शिक्षा किताबें पढने का विकल्प हो सकत हैं? पढ़ाई और शिक्षा के अन्य माध्यमों का बेहतर उपयोग करने के लिए हमें अपने आप में क्या बदलाव लाने चाहिए? इस बारे सद्गुरु बता रहे हैं और साथ ही बता रहे हैं जीवन के करीब पहुंचने का मंत्र -
अगर अधिक से अधिक लोग पढ़ रहे होते, अगर वे बस बैठ जाते और कुछ पढ़ने पर ध्यान केंद्रित करते तो वे ज्यादा शांत और ज्यादा विचारशील होते। इसके अलावा वे जीवन को ज्यादा गहराई के साथ देख पाते। यह एक तरह की साधना है, क्योंकि यह निश्चित रूप से आपके दिमाग के काम करने के तरीके को बेहतर बना देती है। आज के समाज में जब दूसरी तमाम चीजों के मुकाबले इलेक्ट्रॉनिक्स के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है, यह बेहद महत्वपूर्ण है कि समाज के तौर पर हम पढ़ने की अपनी संस्कृति को खोने न दें।
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समस्या यह है कि लोगों ने जीवन को ज्यादा गहराई के साथ देखने की आदत को खो दिया है। जीवन में कोई गहराई बची ही नहीं है। लोग हर चीज को केवल सतही नजरिए से ही देखते हैं और मुझे लगता है कि ऑडियो विजुअल माध्यमों की वजह से इस चलन को बढ़ावा मिल रहा है। मैं इन माध्यमों के खिलाफ नहीं हूं, क्योंकि ये अपने आप में बड़े प्रभावशाली माध्यम हैं, लेकिन ये माध्यम पढ़ने के विकल्प नहीं हो सकते।
ध्यान से देखिए
जीवन की प्रक्रिया ही शिक्षा है। हम जिसे शिक्षा कहते हैं, वह जीवन से अलग नहीं है, क्योंकि अगर जीवन नहीं है तो शिक्षा भी नहीं है। अब सवाल यह है कि आप शिक्षा कैसे प्राप्त करते हैं। एक शख्स जो कभी स्कूल नहीं गया, जो अपने खेतों में काम करता है, क्या आप उसे अशिक्षित कहेंगे? जमीन के बारे में वह आपसे ज्यादा जानता है। फसलों, मौसम, प्रकृति जैसी चीजों के बारे में उसकी जानकारी भी आपसे कहीं ज्यादा है।
जब मैं खेत में रहता था, तो यह मेरे लिए पूरी तरह से विस्मित कर देने वाला अनुभव हुआ करता था। उस दौरान मैं जलवायु और उसके तौर तरीकों के बारे में थोड़ा बहुत अध्ययन करने की कोशिश कर रहा था, क्योंकि उस वक्त मैं खेती के काम में था। उस वक्त हमारे पास एक अनपढ़ मजदूर था, जो मात्र डेढ़ सौ रुपये प्रतिदिन पर हमारे लिए काम करता था। गर्मियों के दिनों में जमीन कठोर हो जाती है। आप इसे जोत नहीं सकते। अचानक एक दिन सुबह साढ़े चार या पांच बजे के आसपास उसने खेत को जोत दिया और सब कुछ तैयार कर दिया। मैंने पूछा, 'क्या हो रहा है? तुम यहां हल क्यों जोत रहे हो?’ उसने कहा, 'आज बारिश होने वाली है'।
आप जितने संवेदनशील होंगे, आप उतनी ही सीमा तक जीवन को जानेंगे। तो ऐसे में जीवन के प्रति अपने को ज्यादा संवेदनशील बनाने के लिए क्या हमें कुछ करना नहीं चाहिए? अगर हम संवेदनशील नहीं होंगे तो हम बिल्कुल नहीं जान पाएंगे। चूकि हमारे अंदर संवेदनशीलता है, इसलिए जब मच्छर भी काटता है तो हमें पता चल जाता है। मान लीजिए आपकी त्वचा मोटी है, उसमें कोई संवेदनशीलता नहीं है। ऐसे में अगर आपको मच्छर काटता है तो आपको पता ही नहीं चलेगा।
अस्तित्व को जानने के लिए चीजों को ध्यान से देखना होगा। जो भी हमारे इर्द गिर्द है उसे ध्यान से देखकर ही आत्मसात किया जा सकता है। तब आप ज्यादा संवेदनशील होंगे। आप जितना ज्यादा संवेदनशील होंगे उतने ही अधिक जागरूक होंगे, जितने अधिक जागरूक होंगे उतना ही अधिक जीवन के करीब होंगे।
यह लेख ईशा लहर से उद्धृत है।आप ईशा लहर मैगज़ीन यहाँ से डाउनलोड करें या मैगज़ीन सब्सक्राइब करें।