वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के चेयरपर्सन ने एक बार सद्गुरु से दुनिया के रूपांतरण से जुड़ा एक सवाल पूछा। उत्तर में सद्‌गुरु ने बताया कि सिर्फ 24 लोगों को बदलने की जरूरत है, और बदलाव होने लगेगा। जानते हैं इस चर्चा के बारे में...

कुछ साल पहले मैं जेनेवा गया था। वहां वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम के चेयरपर्सन से मेरी मुलाकात हुई। बहुत देर तक उनसे बातचीत होती रही। इसके बाद उन्होंने कहा, ‘सद्‌गुरु, हम आपके लिए एक ऐसा क्या काम कर सकते हैं, जो दुनिया को बदलकर रख दे।

मुझे लगता है कि अमेरिका इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। इतना महत्वपूर्ण, जितना पहले कभी नहीं रहा।
ऐसा क्या है जो आप हमसे चाहते हैं?’ मैंने कहा, ‘मेरी लिस्ट में चौबीस लोग हैं। आप उन्हें पांच दिन के लिए मुझे दे दें। मैं आपसे वादा करता हूं कि तीन से पांच साल में इस धरती पर बड़ा बदलाव आ जाएगा।’ फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि वे चौबीस लोग कौन हैं। मैंने दुनिया के बड़े देशों के चौबीस नेताओं के नाम बता दिए। आप इन नेताओं को पांच दिन के लिए मुझे दे दें। मुझे पूरा भरोसा है कि दुनिया में बदलाव आकर रहेगा। इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए। मुझे लगता है कि अमेरिका इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। इतना महत्वपूर्ण, जितना पहले कभी नहीं रहा।

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अमेरिका कर सकता है समस्याओं का हल

काफी समय पहले एक निजी पार्टी में मेरी मुलाकात बिल क्लिंटन से हुई। उन्होंने अपनी पत्नी को शानदार तरीके से मिलवाया। मैंने उनसे कहा, ‘आप अपनी पत्नी के बारे में अच्छी बातें कर रहे हैं, बड़ी अच्छी बात है, लेकिन इससे मुझे क्या फर्क पड़ता है? इस देश का राष्ट्रपति कौन बनता है, इससे मुझे क्या फ र्क पड़ता है? आप लोग तो वही चीजें उसी तरीके से दोबारा करेंगे।

वैसे तो साल भर में 100 बिलियन डॉलर भी आपको नहीं चुभेंगे, क्योंकि आप रोजाना एक बिलियन डॉलर से ज्यादा तो इराक में खर्च कर रहे हैं।
ऐसा पहली बार हो रहा है कि हमारे पास इतनी ताकत, क्षमता, संसाधन और तकनीक हैं कि हम इस धरती के हर इंसान की मूल समस्याओं को दूर कर सकते हैं, चाहे वह स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या हो, या पोषण से या शिक्षा से। एक समय था जब उन्होंने इराक में 600 बिलियन डॉलर खर्च कर दिए। मैंने कहा, ‘अगर आप इस 600 बिलियन डॉलर की भारी-भरकम रकम के एक छोटे से हिस्से को भी लोगों की भलाई के लिए खर्च कर दें तो धरती के हर बच्चे को भोजन, अच्छी सेहत और शिक्षा का लाभ मिल सकता है।’ यह बात सुनकर वह मेरी ओर मुड़े, उन्होंने अपना बोलने का लहजा बदला और कहा, ‘मैंने भी इस पर गौर किया है। इसमें केवल सालाना 40 बिलियन डॉलर की ही जरूरत पड़ेगी। अगले दस साल तक हर साल अगर आप इतने पैसे खर्च कर दें, तो पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा की समस्याओं को हमेशा के लिए हल किया जा सकता है। बस दस साल तक हर साल आपको 40 बिलियन डॉलर खर्च करने हैं।’

अगर सैनिकों की जगह स्वयंसेवी भेज देते

उनकी गणना का कोई आधार रहा होगा। लेकिन मुझे लगता है कि अगर आप अगले आठ से दस साल तक 100 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष सही तरीके से खर्च करें, तो निश्चित रूप से समस्याएं हमेशा के लिए हल हो जाएंगी। आपके पास 14 ट्रिलियन डॉलर का बजट है। इसलिए इससे किसी को कोई नुकसान भी नहीं होगा।

हम हमेशा यही सोचते रहते हैं कि कौन किस पर भारी पड़ेगा, कौन किस पर शासन करेगा। समस्या यह है कि लोगों के दिमाग पर अतीत के अनुभवों का जबरदस्त बोझ है।
अगर केवल एक देश ऐसा कर सकता है, तो चौबीस देशों के साथ आने पर तो कमाल हो जाएगा और किसी को ज्यादा चुभेगा भी नहीं। वैसे तो साल भर में 100 बिलियन डॉलर भी आपको नहीं चुभेंगे, क्योंकि आप रोजाना एक बिलियन डॉलर से ज्यादा तो इराक में खर्च कर रहे हैं। वहां डेढ़ लाख सैनिक भेजने के बजाय अगर आपने डेढ़ लाख स्वयंसेवक भेजे होते और उन्हें इसके दसवें हिस्से के बराबर पैसा दिया होता और इराक के लोगों को वे सब सुविधाएं दी होतीं, जो वे चाहते हैं, तो सद्दाम हुसैन ने आपके सामने समर्पण कर दिया होता और खुद को रूपांतरित कर लिया होता। अगर आप उसके देश का निर्माण करते और उससे कहते कि आपको बस ये सब काम नहीं करने हैं तो वह आसानी से आपकी बात मान लेता। मैं केवल सद्दाम हुसैन की ही बात नहीं कर रहा हूं, दुनिया का कोई भी शख्स ऐसा ही करता। बात बस यह है कि हमने दूसरे देशों के साथ कभी इस तरीके से बात ही नहीं की।

सबको शामिल करना ही हमारी मूल ताकत है

हम हमेशा यही सोचते रहते हैं कि कौन किस पर भारी पड़ेगा, कौन किस पर शासन करेगा। समस्या यह है कि लोगों के दिमाग पर अतीत के अनुभवों का जबरदस्त बोझ है।

पैसा कोई समस्या नहीं है, संसाधनों की भी कमी नहीं है, तकनीक भी हमारे पास है, अगर किसी चीज की कमी है तो वह है मानवीय चेतना की। बस यही चीज हमारे पास नहीं है।
लोग कहते हैं, ‘हमेशा से ऐसा रहा है, चंगेज खान ने जीत हासिल की, सिकंदर ने जीत हासिल की, रोमवासी जीते, अमेरिकी जीत रहे हैं और ब्रिटेन वालों ने भी जीत हासिल की’। वे सब अतीत की ही बात कर रहे हैं। इंसान कुछ ऐसा कर पाने में सक्षम है, जो अतीत में कभी हुआ ही नहीं। क्या आपको लगता है वे ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं? वे कर सकते हैं, बशर्ते वे अतीत के बोझ को उतार फेंकें। हम अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि इंसान की मूल ताकत सबको शामिल करके चलने की उसकी क्षमता है, सबको रौंदने या छोडऩे की क्षमता नहीं।

आज की पीढ़ी के पास अद्भुत क्षमता है

पैसा कोई समस्या नहीं है, संसाधनों की भी कमी नहीं है, तकनीक भी हमारे पास है, अगर किसी चीज की कमी है तो वह है मानवीय चेतना की। बस यही चीज हमारे पास नहीं है। बाकी सब चीजें अपनी जगह ठीक-ठाक हैं।

हम अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि इंसान की मूल ताकत सबको शामिल करके चलने की उसकी क्षमता है, सबको रौंदने या छोडऩे की क्षमता नहीं।
मैं चाहता हूं कि आप इसके महत्व को समझें और इसकी सराहना करें कि यह सब पहली बार हो रहा है। सौ साल पहले अगर आप यह सब करना चाहते, तो कुछ करने की इच्छा होते हुए भी आप कुछ नहीं कर पाते। न तो आपके पास तकनीक थी, न संसाधन थे और न ही क्षमता थी। पहली बार सब कुछ उपलब्ध है, बस इंसान की खुद की स्थिति उसके भीतर वैसी नहीं है, जैसी होनी चाहिए। दुनिया को बदलने का यह जबरदस्त समय है, क्योंकि आपसे पहले की पीढ़ी, आपके माता-पिता ऐसा चाहकर भी नहीं कर सकते थे, लेकिन आज की पीढ़ी बहुत ही कम समय में ऐसा कर सकती है। अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो हमें मानवता के बारे में बात करने का कोई हक नहीं है।