प्रश्न: नमस्कारम सद्‌गुरु। जब एक बच्चा मां के गर्भ में आता है, तो चक्र कब और कैसे बनने शुरू होते हैं?

सद्‌गुरु: बारहवें सप्ताह के आस-पास सिर्फ एक चक्र, मूलाधार बनता है। पहले अट्ठाइस से तीस सप्ताह के भीतर, भ्रूण के विकास की क्वालिटी के आधार पर पहले पांच चक्र, - विशुद्धि तक, पूरी तरह बन जाते हैं।

किसी बच्चे के जीवन के पहले तीन माह में हम साफ़ तौर पर देख सकते हैं कि माता के गर्भ में आज्ञा चक्र किस सीमा तक विकसित हुआ है – इससे कई चीजें तय होती हैं। 
बाकी के दो आज्ञा और सहस्रार हर इंसान में एक ही सीमा तक स्थापित नहीं होते। यही वजह है कि जैसे ही कोई बच्चा पैदा होता है, इस संस्कृति में पहली चीज यह की जाती है कि बच्चे को नहलाने के बाद, उसके दोनों भौंहों के बीच थोड़ी विभूति लगा दी जाती है। अगर आज्ञा चक्र अब तक विकसित न हुआ हो, तो हम चाहते हैं कि बच्चे का फ़ोकस उस दिशा में शुरू हो। 

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बच्चे के आज्ञा चक्र पर ध्यान देना

हालाँकि आपको इन बातों के आधार पर लोगों के बारे में राय तय नहीं करनी चाहिए। फिर भी मैं बताना चाहूँगा कि करीब तीस से पैंतीस प्रतिशत नवजात शिशुओं में, हो सकता है आज्ञा चक्र विकसित न हुआ हो। सहस्रार चक्र आम तौर पर अधिकांश में विकसित नहीं होता है, वह धीरे-धीरे विकसित होता है। अगर आप उनकी आंखों की पुतलियों की गतिविधि को ध्यान से देखें, तो आप जान सकते हैं कि किसी शिशु का आज्ञा चक्र स्थापित हो गया है या नहीं। पहले सिर्फ पुतलियों को देखकर लोग बता देते थे कि यह शिशु बड़ा होकर साधु बनेगा। साधु का मतलब यह नहीं है कि कोई व्यक्ति जंगल या गुफा में जाकर बैठ जाए। साधु या संत एक तरह से ऐसा व्यक्ति होता है जो उन चीजों को देख सकता है, जिसे बाकी लोग नहीं देख सकते। वह कोई दूरदर्शी(दूर की देखने वाला) कारोबारी हो सकता है या कोई दूरदर्शी नेता – जो चीजों को बाकियों के मुकाबले अधिक साफ-साफ देख पाता है।

किसी बच्चे के जीवन के पहले तीन माह में हम साफ़ तौर पर देख सकते हैं कि माता के गर्भ में आज्ञा चक्र किस सीमा तक विकसित हुआ है – इससे कई चीजें तय होती हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि जिन लोगों का आज्ञा चक्र जन्म के समय तक विकसित नहीं हुआ है, वह उनके आगे के जीवनकाल में विकसित नहीं हो सकता। वे खुद प्रयास करके उसे विकसित कर सकते हैं। मगर उन्हें दूसरों के मुकाबले थोड़ी अधिक मेहनत करनी होगी।

भारतीय और यहूदी संस्कृति की परम्परा

अगर हम कुछ चीजों का ध्यान रखें तो यह पक्का कर सकते हैं कि माता के गर्भ में बच्चे का ज़्यादा से ज़्यादा विकास हो जाए। भारतीय संस्कृति में गर्भधारण से पहले से ही स्त्री की देखभाल एक खास तरह से की जाती थी। उसे किस तरह होना चाहिए और उसके साथ क्या-क्या होना चाहिए - इन सब बातों का ध्यान रखा जाता था। स्त्रियां उस समय खास तरह के मंदिरों में जाती हैं, उन्हें कुछ खास तरह का भोजन खिलाया जाता है और वे कुछ खास ग्रंथ पढ़ती हैं। आज की दुनिया में जन्म और मृत्यु दोनों एक कारोबार बन चुके हैं, इसलिए दुर्भाग्य से ये चीजें काफी हद तक खत्म होती जा रही हैं।

अगर अगली पीढ़ी किसी भी रूप में हमसे कमतर होती है, तो यह मानव जाति के ख़िलाफ़ एक अपराध है। आपको उसे आगे की ओर ले जाना है, पीछे की ओर नहीं। 
गर्भधारण के पूर्व से लेकर बच्चे के जन्म तक कई सारी हिदायतें होती थीं। उन्हें किस तरह के माहौल में रहना चाहिए, किनसे मिलना चाहिए किनसे नहीं, किस तरह के रंगों और आकारों को उन्हें देखना चाहिए और किन्हें नहीं – इन सभी चीजों का ध्यान रखा जाता था। इस संस्कृति के अलावा सिर्फ यहूदी संस्कृति में इस तरह की परंपराएं देखने को मिलती हैं। हो सकता है कि उन्होंने भारतीयों के मुकाबले इन्हें अधिक संभाल रखा हो। भारतीय लोग अपनी संस्कृति छोड़ने और पश्चिमी संस्कृति अपनाने के लिए अधिक आतुर रहते हैं, इसलिए अधिकांश भारतीय इन चीजों को छोड़ चुके हैं।

आँखों की स्थिरता और बच्चे के रोने का तरीका

जब कोई बच्चा पैदा होता है, तो आप सबसे पहले यह देखते हैं कि उनकी आंखों की पुतलियां किस तरह से घूम रही हैं। पहला इंडिकेटर है - आंखों की स्थिरता, एक बच्चा चीजों को कैसे देखता, परखता है। कुछ शिशु बड़ों की तरह देखते हैं। दूसरी चीज यह है कि बच्चा रोता कैसे है। कुछ लोग पैदा होने के बाद बच्चे के रोने के तरीके को सुनकर यह बता सकते थे कि वह बच्चा क्या बनेगा। कुछ बच्चे एक नई जगह में होने की वजह से कंफ्यूज होकर रोते हैं, कुछ के रोने में ग़ुस्सा होता है क्योंकि वे जन्म के इस झंझट से परेशान होते हैं। आप देखेंगे कि हर बच्चे के रोने का तरीका अलग-अलग होता है। खास तौर पर बहुत सी दाइयां यह बता सकती थीं, जिन्होंने बहुत सारे बच्चे पैदा करवाए थे।

अगर हम माता के लिए कुछ चीजों का ध्यान रखें, तो उसके गर्भ में बच्चे के चक्रों का विकास कुछ हद तक तय किया जा सकता है। आजकल हमारी आर्थिक और सामाजिक गतिविधियाँ ऐसी हैं कि गर्भ के अंतिम समय तक महिलाएं काम करने ऑफिस जाती रहती हैं, पार्टी करती हैं, हर चीज़ खाती व, शराब और सिगरेट पीती हैं। ऐसे में सब कुछ प्रकृति के हाथों में है – इसमें हमारा कोई रोल नहीं होता। लेकिन अगर हम सही चीजें करें तो बच्चे में बेहतर गुण लाने के लिए कोशिश करने के तरीके मौजूद हैं। इसका नतीजा सौ फीसदी आपके हाथ में नहीं होता, लेकिन सभी सही चीजें करने पर नतीजा बेहतर होता है।

अगले पीढ़ी पर ध्यान देना होगा

 इन सब के पीछे मक़सद ये है कि हमारा बच्चा हमसे बेहतर गुणों वाला हो। मगर इसे संभव करने के लिए जो देखभाल, जिस तरह की भागीदारी जरूरी है, वह दुर्भाग्य से खत्म हो चुकी है। दरअसल हमारा अपना जीवन कुछ अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। हाल में जब मैं अमेरिका में था, हमने अपने एक प्रोजेक्ट के लिए एक कंसल्टेंट रखा था। वह बहुत दुबली-पतली, छोटी सी महिला थी। जब वह हमारे साथ काम करने आईं, तो वह गर्भावस्था के आखिरी महीनों में थी। मैंने उनसे पूछा, ‘बच्चे के पैदा होने में कितना समय है?’ वह बोलीं, ‘शायद कल सुबह तक।’ मैंने कहा, ‘फिर आप यहां क्या कर रही हैं?’ वह बोली, ‘यह मेरा दूसरा बच्चा है। पिछली बार भी मैं बच्चे के जन्म से दो घंटे पहले तक काम कर रही थी।’

हमारा अपना जीवन, आर्थिक मामले, पार्टी, सामाजिक बकवास इतनी महत्वपूर्ण हो गई है कि हमें अगली पीढ़ी में कोई दिलचस्पी ही नहीं है। हम इस जिम्मेदारी की भावना से नहीं सोचते कि अगली पीढ़ी को हमसे किस तरह बेहतर होना चाहिए। जबकि यह बहुत महत्वपूर्ण है। अगर अगली पीढ़ी किसी भी रूप में हमसे कमतर होती है, तो यह मानव जाति के ख़िलाफ़ एक अपराध है। आपको उसे आगे की ओर ले जाना है, पीछे की ओर नहीं। मुझे लगता है कि मुझे इस पर एक किताब लिखनी चाहिए कि आप बच्चे को प्रभावित करने के लिए क्या-क्या चीजें कर सकती हैं। लेकिन फिर हो सकता है कि कुछ ज्यादा ही महिलाएं गर्भवती होने लगें – यह भी एक समस्या है। मेरे ख्याल से मुझे अपने जीवन के अंत समय में इसे लिखना चाहिए। मैं दुनिया में रहते हुए जनसंख्या विस्फोट नहीं चाहता।