सद्‌गुरुवेतन के लिए लोगों का कम्पनी बदलना आम होता जा रहा है। क्या एक ही कम्पनी में लम्बे समय तक कार्य करना बेहतर है? क्या असर होता है अपनी कम्पनी बार-बार बदलने काआपकी कार्य क्षमताओं पर?जानते हैं सद्‌गुरु से


प्रश्न: सद्‌गुरु आपने ‘आना, जाना और ठहरना’ मुहावरे का इस्तेमाल किया था। हम कॉरपोरेट जगत में ऐसा देख रहे हैं कि लोगों का नजरिया यह होता है कि वे आते हैं और आने से पहले ही जाने के बारे में सोचने लगते हैं। ठहरना तो बहुत दूर की बात होती है...

सद्‌गुरु: शादियां भी ऐसी ही होती जा रही हैं।

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प्रश्न: इस बारे में आपकी क्या राय है, सद्‌गुरु?

पूर्ण समर्पण से ही कोई असाधारण चीज़ बना सकते हैं

सद्‌गुरु: कोई इंसान तब तक कोई असाधारण चीज नहीं बना सकता, जब तक कि वह अपने लक्ष्य के प्रति पूरी तरह समर्पित न हो, चाहे वह खेलों में कुछ करना चाहता हो, अर्थशास्त्र में, कारोबार में या आध्यात्मिकता में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे जो हो, कोई इंसान साधारण कोटि से ऊपर नहीं उठ सकता, अगर वह जो कर रहा है, उसके प्रति समर्पित न हो। इसका मतलब है कि अगर आप अपने काम के प्रति समर्पित हैं, तो आपके काम का नतीजा आपके लिए महत्वपूर्ण नहीं है। आप जो कर रहे हैं, वह आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण है।

अगर आप समर्पित होते हैं, तो चाहे आप इस कंपनी में रहें या उस कंपनी में, यह कोई समस्या नहीं होती, फिर समस्या यह होती है कि आप कुछ रचना चाहते हैं। अगर आपके पास वह फोकस है, तो फिर आप कहां हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लाभ सामने आने लगेंगे।

आपके अनुसार जो कुछ भी आपके कार्यक्षेत्र में सच में उपयोगी है - क्या आप उस चीज़ को रचने के लिए प्रतिबद्ध हैं? इस प्रतिबद्धता और समर्पण के बिना कोई भी मनुष्य सामान्य दर्जे से ऊपर नहीं उठ सकता।
आपके आने और जाने की संभावना बहुत कम है क्योंकि टीम बनाने में, किसी संगठन में एक भरोसेमंद स्थिति तक पहुंचने में एक अच्छा-खासा समय लगता है। जब तक कि आपके आस-पास के लोग आप पर विश्वास नहीं करते, आपको आदर्श नहीं मानते, किसी को कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं हो सकती। उन्हें बेहतर वेतन मिल सकता है, कहीं और कोई उन्हें कुछ हजार रुपये ज्यादा दे देगा, फिर कहीं और, और वे एक से दूसरी जगह जाते रहेंगे। वे बाजार में किसी वस्तु की तरह होते हैं, आप उन्हें उठा और हटा सकते हैं। जिस तरह लोग आते और जाते हैं, आप भी उन्हें हटा सकते हैं क्योंकि वे उस तरह का समर्पण नहीं दिखाते।

नेतृत्व करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता चाहिए

इसलिए जो लोग नेतृत्व करना चाहते हैं, उनके लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। सवाल यह नहीं है कि आपके काम का नतीजा क्या है। सवाल यह है कि आपके लिए जो चीज मायने रखती है, क्या आप उसे तैयार करने के लिए, बनाने के लिए पूरी लगन से कोशिश करते हैं?

आपके अनुसार जो कुछ भी आपके कार्यक्षेत्र में सच में उपयोगी है - क्या आप उस चीज़ को रचने के लिए प्रतिबद्ध हैं? इस प्रतिबद्धता और समर्पण के बिना कोई भी मनुष्य सामान्य दर्जे से ऊपर नहीं उठ सकता।

पूर्ण विकसित मनुष्य नहीं, वस्तु बन जाएंगे

फिर आपका संबंध सिर्फ पैसे गिनने से रह जाएगा, जो एक वक्त के बाद कोई मायने नहीं रखेगा। कुछ समय के बाद आपको उसकी परवाह भी नहीं रह जाएगी। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आप क्या बना रहे हैं, क्या कर रहे हैं, स्थिति आपके लिए किस तरह मददगार होती है, आपकी प्रतिभा को अभिव्यक्ति मिल पा रही है या नहीं? एक कम्पनी में इस तरह की स्थिति में पहुँचने की बजाय, अगर आप हर दो साल में यहां से वहां जा रहे हैं, तो आप एक पूर्ण विकसित इंसान बनने की संभावना खो देंगे। आप बाजार में एक वस्तु बन कर रह जाएंगे।