सद्‌गुरुकुछ लोगों का ऐसा मानना होता है कि फोटो द्वारा काला जादू किया जा सकता है, और वे फोटो खिंचवाने से डरते हैं। क्या वाकई ऐसा हो सकता है? जानते हैं सद्‌गुरु से

प्रश्न : आज जब लोगों के पास फोटो लेने के लिए स्नैपशॉट या इंस्टाग्राम जैसी तकनीकें उपलब्ध हैं, वहीं कुछ ऐसी संस्कृतियां भी हैं, जो इन आधुनिक तकनीकों की वजह से घबराई हुई हैं। वहां लोग अपनी फोटो खिंचवाने में झिझकते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि फोटो उनकी आत्मा का कुछ हिस्सा चुरा लेगी। सद्‌गुरु, क्या फोटो खींचने से कहीं हमारे सिस्टम पर भी कोई असर होता है?

फोटो लेते हुए लोग सत्संग पर ध्यान देना छोड़ देंगे

सद्‌गुरु : यह सोच कुछ खास तरह की समझ के चलते पैदा हुई है।

लेकिन ध्यानलिंग उससे प्रभावित नहीं होगा और जैसा कि आप जानते हैं कि लगातार फोटोग्राफी से मेरा भी सिस्टम खराब नहीं हुआ है।
जहां तक मैं समझता हूं यह सोच, कम से कम भारत में, यहां के कुछ मंदिरों से शुरू हुई, जहां लोग नहीं चाहते थे कि मंदिरों की फोटो ली जाए। हम भी अपने यहां ध्यानलिंग मंदिर में लोगों को फोटो लेने की इजाजत नहीं देते। हालांकि इसके पीछे वजह यह नहीं कि इससे मंदिर या ध्यानलिंग पर किसी तरह का असर पड़ेगा। बल्कि हम नहीं चाहते कि मंदिर कोई पर्यटक स्थल बने। आजकल सत्संग पर्यटक स्थल के रूप में बदलते जा रहे हैं, जहां आधे से ज्यादा लोग सत्संग में ध्यान देने की बजाय फोटो खींचने में व्यस्त होते हैं। इसलिए हम नहीं चाहते कि मंदिर में भी ऐसा हो। इस एक सामाजिक कारण से हम लोगों को रोकते हैं। लेकिन ध्यानलिंग उससे प्रभावित नहीं होगा और जैसा कि आप जानते हैं कि लगातार फोटोग्राफी से मेरा भी सिस्टम खराब नहीं हुआ है।

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काली मंदिरों में फोटो से ऊर्जा प्रवाह प्रभावित होगा

एक वजह और भी है कि जब प्रतिमाएं एक खास तरीके से प्रतिष्ठित की जाती हैं, जैसा कि मैंने पहले भी बताया है, कि स्त्रैण के दो आयाम होते हैं।

अंधेरे का मतलब सृष्टि का आधार है। यह पूरा अंतरिक्ष ही अंधेरा है, इसी अंधेरे से इस सृष्टि का निर्माण हुआ है।
पारंपरिक तौर पर हम इन्हें काली और गौरी के नाम से जानते हैं। काली अपना फोटो नहीं चाहती, क्योंकि उनमें से अंधकार की शक्ति के प्रवाह को बनाए रखने के लिए बहुत परिश्रम किया गया है। अब इस अंधकार को पश्चिमी संदर्भों में मत देखिए, क्योंकि वहां अंधकार का मतलब बुराई या नकारात्मक समझा जाता है। वहां अंधेरे को एक ऐसी ताकत के रूप में चित्रित किया गया है, जो आपको नुकसान पहुंचाएगी। जबकि ऐसा नहीं है। अंधेरे का मतलब सृष्टि का आधार है। यह पूरा अंतरिक्ष ही अंधेरा है, इसी अंधेरे से इस सृष्टि का निर्माण हुआ है। तो अंधेरे की वे तस्वीरें आप मत देंखे, जो दूसरी संस्कृतियों में दिखाई गई हैं, लेकिन जिस सृष्टि या जगत में हमारा अस्तित्व है, वह अंधकार ही है।

फोटो का प्रभाव, प्राण-प्रतिष्ठा पर निभर करता है

यह धरती महज एक छोटा सा बुलबुला है। इसके भीतर का काफी भाग अंधेरा है।

अगर आप भैरवी की फोटो लेंगे, हालांकि वह भी अपने आप में काली हैं, लेकिन उनके साथ हमने कई चीजों का ध्यान रखा है, तो उन पर इसका कोई असर नहीं होगा।
इस सृष्टि का शायद पंचानवे प्रतिशत हिस्सा घने अंधकार वाला है, और प्रकाश एक बहुत छोटी सी घटना है। अगर प्रतिमा काली या काल के तौर पर प्रतिष्ठित हुई है तो लोग नहीं चाहते कि उनकी फोटो ली जाए, क्योंकि उन्हें डर है कि इससे प्रतिमा पर असर पड़ सकता है। अगर आप भैरवी की फोटो लेंगे, हालांकि वह भी अपने आप में काली हैं, लेकिन उनके साथ हमने कई चीजों का ध्यान रखा है, तो उन पर इसका कोई असर नहीं होगा। दरअसल उन्हें इस खास तरीके से प्रतिष्ठित किया गया है कि आप उनके आसपास जो कुछ भी करेंगे, उसका उनके अस्तित्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उनके लिए बुनियादी तौर पर जो कुछ जरूरी है, अगर उनके बारे में खयाल रखा जाता है और उसे पूरा किया जाता है तो फिर उन्हें बाकी कोई चीज प्रभावित नहीं करती।

फोटो के साथ सकारात्मक और नकारात्मक चीज़ें हो सकतीं हैं

लोग मेरे पास अपने माता-पिता या दादा-दादी, नाना-नानी या अपने बच्चों अथवा अपने घर के नवजात शिशुओं की फोटो आशीर्वाद पाने, उनके स्वास्थ्य लाभ व कृपा पाने के लिए भेजते रहते हैं। अगर इंसान की फोटो के साथ सकारात्मक चीजें की जा सकती हैं तो आपको समझना चाहिए कि नकारात्मक चीजें भी की जा सकती हैं। कोई व्यक्ति किसी इंसान की फोटो के साथ नकारात्मक चीजें भी कर सकता है।

भारत में अगर आप किसी काला जादू करने वाले के पास जाएं तो वह आपसे व्यक्ति विशेष की फोटो मांगते हैं, क्योंकि फोटो से उस इंसान की ज्यामिति का पता चल जाता है।

भारत में अगर आप किसी काला जादू करने वाले के पास जाएं तो वह आपसे व्यक्ति विशेष की फोटो मांगते हैं, क्योंकि फोटो से उस इंसान की ज्यामिति का पता चल जाता है।
अगर आप उस इंसान की ज्यामिति समझ लेते हैं तो फिर आप उसके लिए ऐसी ज्यामिति तैयार कर सकते हैं, जो उसे लाभ पहुंचा सकती है या फिर ऐसी ज्यामिति तैयार कर सकते हैं, जो किसी न किसी रूप में उसे नुकसान कर सकती है। तो इस वजह से जिन संस्कृतियों में भी ऐसी चीजें होती हैं, वहां लोग नहीं चाहते कि फोटो ली जाए। यहां तक कि जो लोग खास तरह की साधना में होते हैं, कई साधु व संन्यासी, नहीं चाहते कि उनकी फोटो खींची जाए। लेकिन इन दिनों वे इससे बच नहीं सकते, क्योंकि अनजाने में वे सेल्फी ले रहे हैं। लोग मुझसे पूछते हैं कि सद्गुरु क्या आपके साथ एक सेल्फी ले लें। लेकिन मैं सेल्फी के लिए मना कर देता हूं। दरअसल, इन चीजों का मूर्खतापूर्ण चलन आएगा और चला जाएगा, लेकिन जीवन उसके आगे भी चलता है। बात यह है कि कोई भी आपकी फोटो नहीं लेना चाहता, इसलिए आप खुद अपनी फोटो खींच कर सब तरफ लगाते रहते हैं। हालांकि यह चीज मेरे कलात्मक बोध को स्वीकार्य नहीं है कि मैं खुद अपनी फोटो खींच कर हर तरफ लगाता रहूं।

तो जहां कहां भी काला जादू जैसी चीजों का प्रचलन है, वहां लोग कहते हैं, ‘मैं अपनी फोटो कहीं लगवाना नहीं चाहता, क्योंकि मैं किसी दूसरे के आघात का लक्ष्य नहीं बनना चाहता। मेरा दुश्मन आकर मेरा फोटो लेना चाहता है, मैं उसके घर में अपनी फोटो नहीं चाहता, क्योंकि मुझे नहीं पता कि वह इस फोटो का इस्तेमाल कैसे करेगा।’ तो इस सोच के चलते लोग नहीं चाहते कि उनकी फोटो खींची जाए।