एक साधक ने सद्‌गुरु से प्रश्न पूछा कि गुरु का अर्थ क्या है? गुरु शब्द का अर्थ तो होता है गु यानी अंधकार को मिटाने वाला। क्या है इस अंधकार की प्रकृति?

प्रश्न : सद्‌गुरु, आपने गुरु के बारे में बताया है कि गुरु का अर्थ होता है अंधकार को भगाने वाला। मैं जानना चाहती हूं कि गुरु अंधकार को कैसे भगाता है?

अंधकार सिर्फ एक प्रतीक है

सद्‌गुरु : अंधकार एक प्रतीक है। अंधकार से हमारा मतलब है अज्ञानता। दरअसल आपकी ज्ञानेंद्रियां एक खास तरह से बनी हैं। यह प्रतीकात्मक भाषा इसी वजह से आई है।

केवल अंधकार ही है, जो सर्वव्यापी हो सकता है। प्रकाश के स्रोत तो सीमित हैं। ये स्रोत एक न एक दिन खत्म हो जाएंगे, चाहे बल्ब हो या सूरज।
मान लीजिए अगर आप उल्लू होते, तो हम कहते कि गुरु प्रकाश को दूर भगाता है, क्योंकि उल्लू की ज्ञानेंद्रियां अलग तरह की होती हैं। प्रकाश उसे अंधा बना देता है और अंधकार उसे देखने में सक्षम बनाता है। तो बात अगर उल्लू के संदर्भ में की जाए तो यही कहा जाएगा कि गुरु प्रकाश को दूर भगाता है। लेकिन आपकी दृष्टि ऐसी है कि जब प्रकाश होता है, तभी आपको चीजें साफ नजर आती हैं और अंधकार में आप कुछ भी देख नहीं पाते। तो मूल रूप से अंधकार से हमारा मतलब अज्ञानता से है, जो आपको आपकी सीमाओं में बांधकर रखती है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

असीम अस्तित्व पर सीमाएं कैसे आईं हैं?

सीमाएं कई तरह की हैं, बहुत सारी बाध्यताएं हैं। एक असीमित अस्तित्व पर जो ये बाध्यताएं और सीमाएं छा गई हैं, इनका स्रोत क्या है? सबसे मूल बात तो यही है कि आपने अपनी पहचान अपने शरीर के साथ स्थापित की हुई है। यही इस सब की शुरुआत है। फि र आपने अपनी पहचान अपने मन के साथ स्थापित कर ली है।

प्रतीकात्मक रूप से यह सही है, लेकिन इसे शब्दश: न लें, क्योंकि अंधकार आपका दुश्मन नहीं है। आपकी दुश्मन अज्ञानता है।
ये दोनों अलग नहीं हैं। शरीर और मन अलग-अलग चीजें नहीं हैं। एक थोड़ा ठोस है और दूसरा सूक्ष्म। वैसे वे एक ही जैसे हैं। आपने अपनी पहचान ऐसी चीज के साथ स्थापित कर ली है, जो आप हैं ही नहीं। एक बार अगर आपकी पहचान अपने शरीर के साथ स्थापित हो गई तो फि र आप बहुत सारे दूसरे शरीरों के साथ भी अपनी पहचान स्थापित कर लेते हैं। चूंकि अपने शरीर के साथ आपका इतना ज्यादा लगाव हो चुका है, इसलिए दूसरे शरीरों के साथ भी आपका लगाव हो जाता है। अज्ञानता की जड़ यही है - आपकी गलत पहचान, जो आप शरीर के साथ स्थापित कर लेते हैं, जिसमें मन भी शामिल है।

आप क्या हैं और क्या नहीं - ये अंतर जानना जरुरी है

मैं हमेशा कहता हूं कि गुरु के साथ बैठने का मतलब उनकी बातों से मनोरंजन हासिल करना नहीं है।

मान लीजिए अगर आप उल्लू होते, तो हम कहते कि गुरु प्रकाश को दूर भगाता है, क्योंकि उल्लू की ज्ञानेंद्रियां अलग तरह की होती हैं।
आप उनकी ऊर्जा को अपने अंदर आने दें, जिससे कि वह एक अंतर पैदा कर दे कि आप क्या हैं और क्या नहीं हैं। एक बार अगर यह फ र्क आपको समझ आ गया तो फिर अज्ञानता का प्रश्न ही नहीं उठता, फिर इस प्रतीकात्मक अंधकार का सवाल ही नहीं रह जाता। गुरु शब्द का मतलब भी यही है : अंधकार को भगाने वाला। हम यह भी कह सकते हैं कि केवल एक स्तर पर गुुरु का यह मतलब है। प्रतीकात्मक रूप से यह सही है, लेकिन इसे शब्दश: न लें, क्योंकि अंधकार आपका दुश्मन नहीं है। आपकी दुश्मन अज्ञानता है।

अंधकार दुश्मन नहीं, सर्वयापी अस्तित्व है

आजकल बहुत तरह के लोग हैं, जो आध्यात्मिकता बांट रहे हैं। वे हर चीज को अक्षरश: लेते हैं और वे अंधकार को किसी बुराई की तरह से पेश कर रहे हैं। अगर अंधकार बुराई है तो यह संपूर्ण अस्तित्व ही बुरा है, क्योंकि पूरा अस्तित्व अंधकारमय है। बस यहां-वहां प्रकाश के कुछ स्रोत हैं। अगर आप आकाश की ओर देखें, तो आपको अरबों तारे नजर आते हैं, लेकिन ये अरबों तारे इस विशाल अस्तित्व में महज छोटे-छोटे बिंदु की तरह हैं।

अगर अंधकार बुराई है तो यह संपूर्ण अस्तित्व ही बुरा है, क्योंकि पूरा अस्तित्व अंधकारमय है। बस यहां-वहां प्रकाश के कुछ स्रोत हैं।
सबसे बड़ा हिस्सा तो अंधकार ही है, क्योंकि खाली जगह जो भी है वह अंधकारमय है। तो अगर अंधकार बुराई है तो इस जगत का आधार भी बुराई है। अगर आपको नहीं पता है तो बता दें कि अपने देश में सभी देवताओं की व्याख्या अंधकार के रूप में ही की गई है, क्योंकि यह अस्तित्व अंधकारमय है और अंधकार कोई बुराई नहीं है। केवल अंधकार ही है, जो सर्वव्यापी हो सकता है। प्रकाश के स्रोत तो सीमित हैं। ये स्रोत एक न एक दिन खत्म हो जाएंगे, चाहे बल्ब हो या सूरज। जो चीज हमेशा रहने वाली है वह अंधकार ही है। जब हम कहते हैं अंधकार को भगाने वाला, तो हम अंधकार शब्द को अंधकार के रूप में नहीं ले रहे हैं, उसे हम प्रतीकात्मक रूप से प्रयोग कर रहे हैं और उसका मतलब है इंसान की अज्ञानता