दुनिया में हो रही आपराधिक घटनाएं हम सभी को क्रोध और पीड़ा से भर देतीं हैं। क्या क्रोधित हो कर प्रतिक्रया देना इन घटनाओं का हल हो सकता है? सद्‌गुरु बता रहे हैं कि हम क्रोधित हो कर कदम तभी उठाते हैं, जब हम अपने आप को किसी ख़ास समूह, धर्म, जाति के मनुष्य के रूप में पहचानते हैं, और अगर हम ऐसे अपराधों का हल चाहते हैं तो हमें अपने भीतर बिना कोई पहचान बनाए, विवेक से कदम उठाने होंगे...

प्रश्‍न:  दुनिया में रोजाना जिस तरह के काम हो रहे हैं, उन्हें देखकर मुझे क्रोध आता है। दुनिया में हो रहे इन अपराधों को कोई कैसे सहे?

सद्‌गुरु:

यह सहन करने का प्रश्‍न ही नहीं है। अगर आप सहन करोगे तो आप पागल हो जाओगे। आपको सहने की जरूरत नहीं है। आप इसमें जो कर सकते हैं, वही कर सकते हैं। जो हो चुका, आप उसे पलट नहीं सकते। एक चीज है कि आप केवल उसी शख्स को देख रहे हैं, जो पीड़ित है, जो बलात्कार का शिकार है। जो शख्स बुरा बर्ताव कर रहा है, वह भी पीड़ित है क्योंकि कई मामलों में वह अपने आपको ही गिरा रहा होता है।

अगर आप अपनी भावनाओ की क्रूर और असभ्य प्रतिक्रियाओं में फंस गए तो आप न्याय नहीं कर पाएंगे। दुनिया में सुख समृद्धि नहीं ला पाएंगे।
कोई इंसान अपने साथ जो सबसे बुरा काम कर सकता है, वह है खुद को एक जानवर के स्तर तक गिराना, जो कि किसी न किसी वजह से वह कर ही रहा है। हालांकि ऐसा काम उसे कुछ पल के लिए थोड़े मजे या शक्ति का अहसास करा सकता है, लेकिन उसका बुरा काम कई तरह से खुद उसके लिए भी एक असहनीय कष्ट है। तो ऐसा नहीं है कि एक शख्स शिकार है और दूसरा शिकारी, दरअसल वे दोनों ही शिकार हैं, दोनों ही पीड़ित हैं।
तो क्या आपको ऐसा होने देना चाहिए? नहीं, आप हर वह काम करते हैं जो उन चीजों को होने से रोकने में सहायक हो सकता है, लेकिन आप सभी चीजों को नहीं बदल सकते। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप किस तरह के इंसान हैं, अगर आप सुपरमैन भी हैं, तो भी बाहरी दुनिया की चीजों पर आपका पूर्ण नियंत्रण संभव नहीं हो पाएगा, लेकिन आंतरिक परिस्थितियों पर आपका पूर्ण नियंत्रण हो सकता है। ऐसा हमेशा संभव है। अब कुछ कारणों से बाहरी चीजें नियंत्रण से बाहर जा चुकी हैं। दुनिया में लोग हत्याएं कर रहे हैं, बलात्कार कर रहे हैं और भी तमाम तरह के अपराधों में लगे हैं। ऐसे में क्या यह महत्वपूर्ण नहीं होगा कि आप अपने अंदर की चीजों को नियंत्रण में रखें? मान लीजिए, कोई पागल हो चुका है और उस तरह के कामों में लगा है। अगर आप भी उस इंसान के प्रति नफरत और गुस्से से पागल हो गए तो आपमें और उसमें क्या फर्क रह गया? उसने बलात्कार किया इसलिए आप उसे मार डालना चाहते हैं। ऐसे में उसमें और आपमें फर्क क्या रह गया? इसका यह मतलब नहीं है कि इस परिस्थिति में आपको कुछ करना ही नहीं चाहिए। आपको जो करना है, आप करें, लेकिन याद रखें नफरत और गुस्से से भरकर आप जो भी करेंगे, उसका कोई महत्व नहीं होगा।
दुर्भाग्य से ज्यादातर लोगों के लिए डर, गुस्सा और नफरत उनके जीवन में सबसे शक्तिशाली अनुभव हैं। उनका प्रेम, शांति और आनंद कभी इतना गहरा नहीं होता।
सोचिए, आप नफरत की जगह प्रेम और दया के सहारे आगे क्यों नहीं बढ़ सकते? जो कुछ भी करना है, उसे करने के लिए आप विवेक के साथ आगे क्यों नहीं बढ़ सकते?
वे नकारात्मक परिस्थितियों में शक्ति का अनुभव करते हैं। जिस तरह आप गुस्से में ताकत का अनुभव करते हैं, उसी तरह रेपिस्ट वासना में शक्ति का अनुभव करता है। यह सबसे शक्तिशाली परिस्थिति होती है, जो वह अपने जीवन में अनुभव करता है। यह वह स्थिति है जिसमें वह शारीरिक रूप से दूसरे पर हावी हो जाता है। इसी कारण वह ऐसा कर रहा है और यही स्पष्टीकरण आप अपने गुस्सा होने के लिए देते हैं। वह अलग नहीं है। बस काम अलग हैं। एक सामाजिक रूप से स्वीकृत है और दूसरा नहीं। बस इतना ही फर्क है, बाकी दोनों ही क्रियाएं एक ही आधार से आ रही हैं।
आप किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कैसी परिस्थिति में हैं, आप कौन हैं और आपकी क्षमताएं क्या हैं। हर परिस्थिति में आप एक ही तरीके से प्रतिक्रिया नहीं दे सकते। अगर आपके पास कोई काम प्रभावशाली तरीके से करने के लिए शक्ति और साधन हैं तो आप एक तरीके से जवाब दे सकते हैं। अगर आपके पास उस पल प्रतिक्रिया देने के लिए ताकत और साधन नहीं हैं, तो हो सकता है कि आप उस पल शांत रहें और बाद में सोचें कि इस मामले में क्या किया जा सकता है। लेकिन यह बदले में की गई कार्रवाई नहीं है। सोचिए, आप नफरत की जगह प्रेम और दया के सहारे आगे क्यों नहीं बढ़ सकते? जो कुछ भी करना है, उसे करने के लिए आप विवेक के साथ आगे क्यों नहीं बढ़ सकते? सबसे खूबसूरत चीजें आपके जीवन में तब होंगी, जब आप विवेक से कदम उठाएंगे, क्रोधित होकर नहीं।
पीड़ित और हमलावर दोनों अपने जीवन में एक ही तरह से अपमानित हो रहे हैं। एक खुद अपनी कीमत घटा रहा है, तो दूसरे का अपमान किसी और की वजह से हो रहा है। अगर आप चाहते हैं कि ऐसा उन दोनों में से किसी के साथ भी न हो तभी आप कह सकते हैं कि आप प्रेम से काम कर रहे हैं, नहीं तो आप एक महिला या एक पुरुष के रूप में अपनी पहचान के साथ काम कर रहे हैं, जिससे स्वस्थ विश्व का निर्माण नहीं हो सकता। ये सभी कष्ट सिर्फ इसलिए पैदा हो रहे हैं क्योंकि लोग हमेशा किसी खास समूह, धर्म, जाति, देश या लिंग की पहचान के साथ काम करते हैं। अगर आप ऐसी किसी पहचान के बिना काम करते हैं, तो आप सिर्फ विवेक से काम करते हैं और देखते हैं कि आपको यह चाहिए या नहीं। अगर आप अपनी भावनाओ की क्रूर और असभ्य प्रतिक्रियाओं में फंस गए तो आप न्याय नहीं कर पाएंगे। दुनिया में सुख समृद्धि नहीं ला पाएंगे। फिर तो आप बस एक बुराई को दूसरी बुराई से काटते रह जाएंगे और यह कोई हल नहीं है। इस समस्या का हल तभी मिल सकता है, जब आप बिना पहचान के काम करते हैं, जब आप विवेक से काम करते हैं।

 

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