कुछ लोग जीवन जीने के लिए कारोबार या सौदा करते हैं और कुछ लोग कारोबार को ही जीवन बना लेते हैं। उनका पूरा जीवन ही एक सौदा बन जाता है। कहीं आप भी उनमें से तो नहीं है? "जीवन जीवंतता है, कोई सौदा नहीं" के दुसरे भाग में पढ़ें सदगुरु इस बारे में क्या कह रहे हैं...

Sadhguru कहा जाता है कि जब सौदेबाजी करनी हो, तो केवल उन्हीं लोगों से मिलना चाहिए, जो आपसे ज्यादा मूर्ख हों। अगर आप उन लोगों से मिलते हैं, जो आपसे ज्यादा समझदार हैं, तो फिर कोई तरीका नहीं है जिससे सौदा आपके फायदे का मिले। बेशक वह सौदा दूसरी और कई सारी स्थितियों पर निर्भर करता है, जैसे कि बाजार की स्थिति, आर्थिक स्थिति, या विश्व की स्थिति। लेकिन अगर आप किसी प्रयोजन में उस रूप में शामिल होते हैं, जो आप वास्तव में हैं, और उसके लिए जो सबसे अच्छा कर सकते हैं वही करते हैं, तो आपकी क्षमता के अनुसार जितना अच्छा होना संभव होगा, वह होगा। जो आप नहीं कर सकते हैं, वह तो वैसे भी नहीं होगा, सिर फोड़ लीजिए तो भी नहीं होगा। लेकिन यह ठीक है। सभी कार्यों को करने की क्षमता रखने वाला सुपर मैन बनने की जरूरत नहीं है। अगर आप वह नहीं करते, जिसको करने में आप सक्षम हैं, तब ठीक नहीं है। तब आप असफल माने जाएंगे। इसलिए हमेशा सौदा, सौदा और ज्यादा सौदा बनाने के चक्कर में मत पड़िए। बस अपने आपको समर्पित करना सीखिए, यही सबसे उत्तम और संभव चीज है, जिसे आप उस परिस्थिति को अर्पित कर सकते हैं। अगर वह वही है, जो लोगों को चाहिए, तो स्वाभाविक है कि लोग उसे ही लेंगे।

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शैतान उससे प्रार्थना करने लगा, कृपया मुझे अस्पताल ले चलो! कुछ करो! पादरी थोड़ा हिचकिचाया और बोला, तुम तो शैतान हो, तुम्हें भला मुझे क्यों बचाना चाहिए? तुम ईश्वर के खिलाफ हो। भला मैं तुम्हें क्यों बचाउं? तुम्हें तो मर ही जाना चाहिए।

अगर आपका पूरा जीवन सौदा करने के संबंध में है, तब आप शैतान के शिष्य बन गए हैं। शैतान हमेशा किसी के साथ सौदा कर रहा होता है। ईश्वर ने कभी किसी के साथ सौदा नहीं किया। एक बार ऐसा हुआ कि एक पादरी रास्ते पर टहल रहा था। उसने एक आदमी को देखा, जिसे अभी-अभी किसी नुकीले हथियार से मारा गया था। वह आदमी अपने चेहरे के बल रास्ते पर गिरा हुआ था, सांस के लिए संघर्ष कर रहा था और दर्द से कराह रहा था। पादरियों को हमेशा यह सिखाया जाता है कि करुणा सबसे बड़ी चीज होती है, प्रेम का मार्ग ही ईश्वर का मार्ग है। स्वभावतः वह उस आदमी की तरफ दौड़ा। उसने उसे सीधा किया और देखा तो वह खुद शैतान ही था। वह अचंभित रह गया, डर कर तुरंत पीछे की तरफ हट गया।

शैतान उससे प्रार्थना करने लगा, कृपया मुझे अस्पताल ले चलो! कुछ करो! पादरी थोड़ा हिचकिचाया और बोला, तुम तो शैतान हो, तुम्हें भला मुझे क्यों बचाना चाहिए? तुम ईश्वर के खिलाफ हो। भला मैं तुम्हें क्यों बचाउं? तुम्हें तो मर ही जाना चाहिए। पूरा पादरीपन शैतानों को भगाने के संबंध में है और ऐसा लगता है कि किसी ने ऐसा करके सचमुच एक अच्छा काम किया है। मैं तुम्हें बस मर जाने दूंगा।’

शैतान ने कहा, ‘ऐसा मत करो। जीसस तुमसे कह गए हैं कि अपने शत्रु से भी प्रेम करो और तुम जानते हो कि मैं तुम्हारा शत्रु हूं। तुम्हें जरूर मुझसे प्रेम करना चाहिए।’

फिर पादरी ने कहा, ‘मुझे पता है, शैतान हमेशा धर्म ग्रंथों से उदाहरण देते हैं। मैं इस चक्कर में पड़ने वाला नहीं हूं।’

तब शैतान बोला, ‘मूर्खता मत करो। अगर मैं मर गया, तो फिर चर्च कौन आएगा? ईश्वर को कौन खोजेगा? फिर तुम्हारा क्या होगा? ठीक है, तुम ग्रंथों की नहीं सुनते हो, लेकिन अब मैं धंधे की बात कर रहा हूं, बेहतर होगा कि तुम सुनो।’

पादरी समझ गया कि वह ठीक कह रहा है। जब शैतान नहीं होंगे, तो चर्च कौन आएगा? लोग चर्च और मंदिर ईश्वर के कारण नहीं जाते, बल्कि इसलिए जाते हैं क्योंकि उन्हें शैतान की चिंता होती है। अगर शैतान मर जाता है, फिर पादरी का क्या होगा? इससे धंधे की अक्ल आई। उसने तुरंत शैतान को अपने कंधों पर डाला और उसे अस्पताल ले गया।

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