सद्‌गुरुये विशाल ब्रह्माण्ड हमारे लिए एक सच्चाई है, जिसका हम अनुभव कर सकते हैं - लेकिन इसे माया कहा जाता है। जानते हैं माया और सच्चाई के भेद के बारे में

परमाणु एक खाली स्थान है

ये ब्रह्माण्ड कुछ ऐसे बना है कि स्रष्टा के सक्रिय रहे बिना वह टिक नहीं रह सकता। आपने अपने विद्यार्थी जीवन में निश्चित रूप से अपनी पाठ्यपुस्तक में परमाणु का चित्र देखा होगा, जबकि किसी ने वास्तव में परमाणु को नहीं देखा है। आप बहुत ही शक्तिशाली माइक्रोस्कोप से भी परमाणु को नहीं देख सकते, मगर हम जानते हैं कि वह कैसा होता है। आपने परमाणु के चित्र देखे हैं। काश, वह कम से कम किसी ईंट की तरह दिखता! यह कोई ठोस स्थिर चीज नहीं है, पांच, दस चीजें एक खाली स्थान के चारों ओर घूमती रहती हैं। यह एक अस्थिर और खोखला ढांचा होता है, जिससे यह पूरा ब्रह्मांड बना है।

ब्रह्माण्ड को माया क्यों कहते हैं?

इसे थामे रखने के लिए ब्रह्माण्ड का स्रोत लगातार सक्रिय रहता है। अगर वह रुक जाए तो ब्रह्माण्ड एक पल में नष्ट हो जाएगा।

दरअसल यह ब्रह्माण्ड सिर्फ एक क्रिया है, कोई वस्तु नहीं। इसीलिए हम इसे माया कहते हैं। इसका मतलब है कि यह एक भ्रम है। ऐसा नहीं है कि उसका अस्तित्व नहीं है, लेकिन वह उस रूप में नहीं है, जिस रूप में आप सोचते हैं, वह एक भ्रम है।
सभी आकाशगंगाएं नष्ट हो जाएंगी, और ब्लैक होल के रूप में गायब हो जाएंगी, क्योंकि ब्रह्माण्ड के स्रोत ने वहां से अपना हाथ खींच लिया है। उसमें कोई अवशेष भी नहीं बचता, सब कुछ चला जाता है। चले जाने का मतलब कहीं चले जाना नहीं है। उसका अब कोई अस्तित्व ही नहीं बचता। ब्रह्माण्ड की प्रकृति यही है, स्रष्टा की सक्रिय भागीदारी के बिना वह एक पल के लिए भी टिके नहीं रह सकता, क्योंकि उसमें निर्माण की कोई ठोस इकाई नहीं है, परमाणु एक खोखला खंड है। यह सिर्फ चीजों का एक खेल है जो दुनिया को चलाता रहता है। तो आपको यह संदेह करने की जरूरत नहीं है कि ‘अरे, मुझे नहीं लगता कि मेरे अंदर चैतन्य है’। रोजमर्रा के जीवन में लोगों को लगता है कि उनके आसपास के लोगों में कोई चैतन्य या ईश्वरत्व नहीं है। जब आध्यात्मिक कार्य की बात आती है, तो वे कहते हैं, ‘यह मेरे अंदर नहीं है।’ अपनी सुविधा के अनुसार यह सोच बदल जाती है। इसलिए आप यह नहीं मान सकते कि वह मेरे या आपके अंदर नहीं है, क्योंकि यह ब्रह्माण्ड की प्रकृति है कि वह ठोस खंडों से नहीं बना है। दरअसल यह ब्रह्माण्ड सिर्फ एक क्रिया है, कोई वस्तु नहीं। इसीलिए हम इसे माया कहते हैं। इसका मतलब है कि यह एक भ्रम है। ऐसा नहीं है कि उसका अस्तित्व नहीं है, लेकिन वह उस रूप में नहीं है, जिस रूप में आप सोचते हैं, वह एक भ्रम है।

अज्ञान के दो रूप

अगर मैं आपको एक हाथ दिखाऊं और आप उसे सांप समझ लें, तो यह एक भ्रम है। इसका यह मतलब नहीं है कि हाथ वहां मौजूद नहीं है।

अगर आप वाकई नहीं जानते, तो आप उस अज्ञानता के साथ नहीं रह सकते हैं, क्योंकि मानव बुद्धि की जानने की इच्छा बहुत स्वाभाविक है। मगर आप अपनी सुविधा के अनुसार जानें और बाकी से बचते रहें, तो यह अज्ञानता का ज्यादा खतरनाक रूप है।
मगर यह वैसा नहीं है, जैसा आप उसे सोचते हैं। चूंकि आपने हर चीज को लेकर एक धारणा बना ली है, इसलिए वह वास्तव में कैसा है, यह आपके बोध में नहीं आ सकता। देखिए, अगर आप अपने और अपनी बनाई हर चीज के बीच थोड़ी सी दूरी बना लें, तो आप देखेंगे कि आपके मन का काफी हिस्सा आपका अपना बनाया हुआ होता है।

मूल उपकरण आपको दे दिया गया था, बाकी आपने खुद बनाया है। इसलिए अगर आप अपनी दुनिया को किनारे रखने के लिए तैयार हैं, तो स्रष्टा का शानदार ब्रह्माण्ड आपके सामने होगा। यह इतना ही सरल है। आपको कुछ नहीं करना है, बस स्थिर हो जाना है, मगर आप छोटी-मोटी मामूली चीजों से अपनी पहचान इतनी मजबूत बना लेते हैं कि आप पूरे ब्रह्माण्ड और स्रष्टा को भुला देते हैं। इसी को अज्ञानता कहते हैं। अज्ञानता दो तरह की होती है ‐ एक तो वह जब आप किसी चीज के बारे में जानते ही नहीं और दूसरी - आप जानते तो हैं, मगर उसे स्वीकार करना नहीं चाहते। दूसरी तरह की अज्ञानता ज्यादा खतरनाक होती है। अगर आप वाकई नहीं जानते, तो आप उस अज्ञानता के साथ नहीं रह सकते हैं, क्योंकि मानव बुद्धि की जानने की इच्छा बहुत स्वाभाविक है। मगर आप अपनी सुविधा के अनुसार जानें और बाकी से बचते रहें, तो यह अज्ञानता का ज्यादा खतरनाक रूप है। क्योंकि एक बार बचने की आदत लगने के बाद, आप लगातार इसे जारी रखते हैं, जब तक कि कोई आकर वाकई आपके सिर पर धौल नहीं जमाता।

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