सद्‌गुरुसद्‌गुरु से एक साधक ने प्रश्न पूछा कि क्या भूत प्रेत आध्यात्मिक साधना में भी मदद कर सकते हैं? या फिर हमारे लिए परेशानी बन सकते हैं? जानते हैं सद्‌गुरु का उत्तर

 

भूत प्रेत - क्या मार्गदर्शन कर सकते हैं ?

प्रश्न : सद्‌गुरु, क्या इन कायाहीन प्राणियों में से कोई हमारे लिए मार्ग-दर्शक का काम करता है या ये अपनी खुद की चीजों में व्यस्त रहते हैं?

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

सद्‌गुरु: अगर इनको कुछ बेहतर पता होता तो ये मुक्ति पा चुके होते।

ठीक इसी तरह, जब ज्ञान प्राप्ति या मोक्ष की बात आती है तो एक कायाहीन प्राणी को आपसे कुछ भी बेहतर पता नहीं होता। आपकी ही तरह वह भी फंसा हुआ है।
ये क्यों चारों तरफ बस मंडराते रहते हैं? क्योंकि इनको कुछ भी बेहतर पता नहीं होता। देखिए, संसार में कोई अमीर है, कोई गरीब है, लेकिन जब बुनियादी जीवन की बात आती है, तो अमीर आदमी को गरीब आदमी से कुछ भी बेहतर पता नहीं होता। ठीक इसी तरह, जब ज्ञान प्राप्ति या मोक्ष की बात आती है तो एक कायाहीन प्राणी को आपसे कुछ भी बेहतर पता नहीं होता। आपकी ही तरह वह भी फंसा हुआ है। सिर्फ एक ही चीज है कि वह थोड़ा अधिक सुखद होता है। अगर आप अमीर हैं, तो अच्छा खाना खाते हैं, अच्छे कपड़े पहनते हैं, अधिक आरामदायक घर में रहते हैं, लेकिन जीवन के संबंध में आप कुछ भी बेहतर नहीं जानते। उसमें कोई अंतर नहीं होता।

भूत प्रेत साधक के मार्ग में बाधा नहीं बन सकते

प्रश्न : तो क्या ये कायाहीन प्राणी एक साधक के मार्ग में बाधक हो सकते हैं? या वे साधक की सहायता कर सकते हैं?

सद्‌गुरु: मैं चाहता हूं कि आप यह समझिए कि एक साधक जो मोक्ष की तलाश में है, वह जो खोज रहा है - वह है स्वयं का विनाश, स्वयं को मिटाना।

अगर वह सच्चा साधक है, उसके साथ चाहे जो भी घटित हो - सबसे दुखद या भयानक चीज ही क्यों न हो - वह भी उसके लिए लाभदायक ही होगी, क्योंकि उसके मिटने में वह थोड़ा और अधिक सहायक होगी।
जो स्वयं का विनाश खोज रहा है, उसको उससे अधिक क्षति कौन पहुंचा सकता है जितना वह स्वयं को पहुंचा सकता है? आप खुद को सबसे अधिक क्षति पहुंचाना चाहते हैं - नुकसान नहीं - आप खुद को मिटाना चाहते हैं। जब आप एक ऐसी चीज की तलाश कर रहे हैं, और अब अगर कोई भूत या कोई जानवर आकर आपकी सहायता करता है, तो समस्या क्या है? यह ठीक है। एक साधक के लिए, अगर वह वास्तव में एक साधक है, उससे कोई भी कुछ भी नहीं छीन सकता। अगर वह एक ढोंगी साधक है, जो अपने जीवन में अध्यात्म को भी एक मनोरंजन की तरह लेना चाहता है, तो ऐसा संभव है। अगर वह सच्चा साधक है, उसके साथ चाहे जो भी घटित हो - सबसे दुखद या भयानक चीज ही क्यों न हो - वह भी उसके लिए लाभदायक ही होगी, क्योंकि उसके मिटने में वह थोड़ा और अधिक सहायक होगी।

हमारी परंपरा में, भारत में जो सबसे पहली चीज एक साधक करता है, वह एक भिक्षा-पात्र लेकर घूमता है, चाहे वह राजा ही क्यों न हो। एक भिखारी होने से बुरा एक मनुष्य के साथ और क्या हो सकता है? इसलिए एक राजा भिखारी होने का चुनाव करता है, वह पहले ही स्वयं के साथ सबसे बुरा - जितना संभव है - कर लेता है। अब इससे अधिक बुरा उसके साथ और क्या हो सकता है?

एक रविवार के दिन, एक छोटे-से सुंदर, सुहावने शहर के सभी लोग खूब सुबह जगे और वहां के एक स्थानीय चर्च में पहुंचे। उपासना सभा शुरू होने से पहले, शहर के लोग चर्च के अंदर बैठकर आपस में गपशप कर रहे थे, अपने जीवन और परिवार के संबंध में बातें कर रहे थे। अचानक चर्च के सामने शैतान प्रकट हो गया। सभी लोग चीखने-चिल्लाने लगे, उस दुष्ट पापी से बचने की व्यग्रता में लोग एक दूसरे को कुचलते हुए आगे दरवाजे की तरफ दौड़े। चर्च जल्दी ही खाली हो गया, वहां बस एक बुजुर्ग आदमी बच गया था। वह आदमी वहां बिना हिले-डुले, इससे बिल्कुल बेपरवाह कि ईश्वर का परम शत्रु उसके सामने है, शांतिपूर्वक बैठा हुआ था। यह देखकर शैतान थोड़ा-सा चकित हुआ। तो वह टहलते हुए उस आदमी के पास गया और बोला, ‘क्या तुम नहीं जानते कि मैं कौन हूं?’ उस आदमी ने जवाब दिया, ‘हां, जानता हूं।’ शैतान ने कहा, ‘अच्छा, क्या तुम मुझसे डर नहीं रहे हो?’ ‘नहीं, मैं डरता नहीं हूं’, उस आदमी ने कहा। यह सुनकर शैतान थोड़ा दुखी हुआ और बोला, ‘तुम मुझसे डर क्यों नहीं रहे हो?’ उस आदमी ने गंभीरतापूर्वक जवाब दिया, ‘पिछले अड़तालीस सालों से मैं तुम्हारी बहन से विवाहित हूं।’

तो कोई भी भूत भला एक साधक का क्या बिगाड़ सकता है?