सद्‌गुरुएक प्रश्न अक्सर हमारे मन में उठता है कि भगवान ने ये दुनिया आखिर बनाई क्यों है। सद्‌गुरु से एक साधक ने ऐसा ही प्रश्न  पूछा। जानते हैं सद्‌गुरु का उत्तर।

प्रश्न : सद्‌गुरु, आपने कहा कि स्रष्टा ने जो सृजन किया है, वह वाकई अद्भुत है और यह उसकी बेहतरीन सृजनशीलता को दिखाता है। मैं जानना चाहती हूं कि उसने सृष्टि बनाई क्यों?

ये सवाल आपमें गहरा नहीं उतरा है

सद्‌गुरु : जब आप पूछते हैं कि स्रष्टा ने सृष्टि की रचना क्यों की, तो सबसे पहले आप एक बेतुकी और मूर्खतापूर्ण कल्पना कर रहे हैं कि कहीं पर कोई स्रष्टा बैठा है और वह ये सब कर रहा है।

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पर आपको तो लगता है कि यह कोई विद्वतापूर्ण सवाल है, ‘सृष्टि क्यों बनी?’ तो मैं कहूंगा कि एक दिन ईश्वर के पास कुछ करने को नहीं था, इसलिए वह कंचे खेल रहा था। एक कंचा नीचे गिरा और धरती बन गई।
दूसरी चीज यह है कि जब आप ‘यह सृष्टि क्यों’ कहते हैं, तो आप मुख्य रूप से यह पूछ रहे हैं कि ‘इस पूरी रचना का मूल क्या है?’ यह सवाल तो तभी उठना चाहिए जब आप जीवन को या तो बहुत आनंदमय महसूस कर रहे हैं या यह आपके लिए बेहद पीड़ादायक हो गया है। अगर आप जीवन को परम आनंद के रूप में जानते हैं, तो आप पूछते हैं, ‘वाह! आखिर इन सब का आधार क्या है?’ या आपने अगर अपने अंदर सबसे अधिक पीड़ा महसूस की है, फिर आप पूछते हैं, ‘आखिर इन सब का मतलब क्या है?’ दोनों ही स्थिति में एक संभावना होगी।

फिलहाल आपके साथ ये दोनों चीजें नहीं हुई हैं। अज्ञानता की पीड़ा अगर आपको भीषण कष्ट पहुंचा रही हो कि आप खा नहीं पा रहे हों, सो नहीं पा रहे हों, कुछ नहीं कर पा रहे हों, अगर आपके अंदर जानने की इतनी तीव्र इच्छा और पीड़ा हो, तो मैं बिल्कुल अलग तरीके से इसका जवाब दूंगा। पर आपको तो लगता है कि यह कोई विद्वतापूर्ण सवाल है, ‘सृष्टि क्यों बनी?’ तो मैं कहूंगा कि एक दिन ईश्वर के पास कुछ करने को नहीं था, इसलिए वह कंचे खेल रहा था। एक कंचा नीचे गिरा और धरती बन गई। एक ऊपर उड़ा और सूर्य बन गया। एक छोटा कंचा चांद बन गया। क्या आगे और बताऊं? आप जैसा सवाल पूछ रहे हैं, उसके जवाब में आपको इसी तरह की कहानी मिलेगी। रोज, दिन-रात, इस सवाल से खुद को परेशान कीजिए। जब यह सवाल इतना पैना हो जाए कि आपको चीरने लगे, तब मैं इस सवाल का जवाब दूंगा, चाहे आप कहीं भी हों। तब आपको मेरे पास आकर यह सवाल पूछने की जरूरत नहीं होगी।

भीतर कुछ है जो संघर्ष कर रहा है

जब बात सृष्टि की हो, तो आपको कभी नहीं पूछना चाहिए ‐ क्यों? क्योंकि आप इस सृष्टि में सिर्फ एक मामूली कण की तरह हैं। एक इंसान के रूप में आपने जो व्यवस्थाएं की हैं, जैसे - परिवार, सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक सुरक्षा, शिक्षा आदि, उसकी वजह से आप धीरे-धीरे यह मानने लगे हैं कि कई रूपों में आप ही दुनिया का केंद्र हैं।

कुछ लोग इस बारे में जागरुक हो चुके हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों को अभी इस बारे में जागरूकता नहीं है। वे बस खुद को व्यस्त रखते हैं, ताकि अंदरूनी संघर्ष का सामना नहीं करना पड़े।
मगर यह सच्चाई नहीं है, आप अस्तित्व में बस एक छोटा सा कण हैं। अगर कल सुबह आप गायब हो जाएं, तो किसी को आपकी कमी महसूस नहीं होगी। तो इस मामूली से कण के द्वारा यह सवाल पूछने कि ‘सृष्टि क्यों है’ का कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि इस सवाल का संदर्भ सही नहीं है। ‘सृष्टि क्यों’ का सवाल इसलिए सामने आया है, क्योंकि कहीं न कहीं जीवन का अनुभव आनंदपूर्ण नहीं रहा है। अगर जीवन का अनुभव आनंददायक होता, तो आप नहीं पूछते, ‘सृष्टि क्यों?’ कहीं न कहीं आपके अंदर यहां अपनी मौजूदगी को लेकर संघर्ष है, पीड़ा है। हो सकता है कि आपने बहुत सुविधाएं, सुरक्षा जुटा ली हों, मगर फ र भी उसमें अंतर्निहित संघर्ष व पीड़ा ऐसी है कि आपको रोजाना कई सारी चीजें करनी पड़ती हैं, खुद को घसीटना पड़ता है। आप खुद को जोश से भरते हैं, कई तरह के कामों को करने के लिए नई-नई वजहें ढूंढते हैं, मगर अंदर कहीं न कहीं कुछ है, जो हर इंसान में लगातार संघर्ष कर रहा है। जब तक कि वह एक खास कृपा को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक वह जूझता रहता है। कुछ लोग इस बारे में जागरुक हो चुके हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों को अभी इस बारे में जागरूकता नहीं है। वे बस खुद को व्यस्त रखते हैं, ताकि अंदरूनी संघर्ष का सामना नहीं करना पड़े।

कैसे बनें संघर्ष के प्रति जागरूक

लोग खुद को इतना व्यस्त और जीवन में इतना उलझाकर इसलिए नहीं रखते, क्योंकि उन्हें जीवन से प्रेम है, वे बस अपने आंतरिक संघर्ष से बचना चाहते हैं। इनमें से बहुत से लोग तो ऐसे हैं जो अगर शादी नहीं करते, बच्चे नहीं पैदा करते, कारोबार नहीं शुरू करते और रोजाना की चीजों में नहीं उलझते, तो वे खुद में ही कहीं खो जाते। सिर्फ  अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए, वे इस तरह की गतिविधियों में लगे रहते हैं। अगर वे सिर्फ  दो दिन तक चुपचाप एक जगह बैठ जाएं, तो वे उस अंदरूनी संघर्ष के प्रति जागरूक हो जाएंगे, जो हर प्राणी के अंदर सीमित शरीर में कैद होने की वजह से चलता रहता है। कुछ लोग इसके प्रति जागरूक हो जाते हैं। एक बार जागरूक होने के बाद वे उस पर ध्यान देना शुरू करते हैं, तभी हम कहते हैं कि वह व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर है, क्योंकि वह आंतरिक संघर्ष के बारे में जानता है। उसे पता चल जाता है कि चाहे आप कुछ भी कर लें, अंदर कोई चीज हर समय जूझती रहती है। मगर बाकी लोग अब भी बहुत व्यस्त हैं।

'क्यों' नहीं 'कैसे' पूछना होगा

तो यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि भीतर एक संघर्ष है। हो सकता है कि आप इस संघर्ष से पूरी तरह अवगत न हों, मगर कहीं न कहीं यह आपको छूता है। इसलिए अभी आपके लिए ज्यादा बुद्धिमानी वाला सवाल यह होगा, ‘मैं इस संघर्ष से परे कैसे जा सकता हूं?’ अगर आप ‘कैसे’ पूछेंगे, तो मेरे पास रास्ता है। अगर आप ‘क्यों’ पूछेंगे, तो मुझे आपको कोई कहानी सुनानी पड़ेगी। अलग-अलग संस्कृतियों के पास अलग-अलग कहानी होगी, हर धर्म अलग-अलग कहानी सुनाएगा, हर व्यक्ति अपनी कहानी खुद गढ़ सकता है, मगर कहानियां आपको मुक्त नहीं कर सकतीं। लेकिन अगर आप ‘कैसे’ पूछेंगे, तो हम रास्ता खोल सकते हैं।