प्रश्नकर्ता: एक स्त्री होते हुए बच्चे के बिना मैं अधूरा महसूस करती हूं। क्या मैंने कुछ गलत किया है कि मुझे मां बनने का सौभाग्य नहीं मिला?

सद्‌गुरु:

यह सोच ही गलत है कि मां बनने के बाद आपका जीवन परिपूर्ण होगा। आपको बस आपके हारमोन संबंधी स्रावों ने धोखा दिया है। आप अपनी बुद्धि से काम नहीं ले रही हैं। अगर संतान पैदा करने से संतुष्टि होती, तो अब तक दुनिया परिपूर्ण हो गई होती? बहुत से लोगों ने दर्जन भर बच्चे पैदा कर लिए हैं। क्या वे किसी तरह से पूर्ण हैं? बिल्कुल नहीं। 

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 बच्चे को जन्म दिए बिना एक स्त्री का जीवन अधूरा होता है, यह समाज की बनाई हुई एक बहुत पक्षपातपूर्ण धारणा है।

बच्चे बिना जीवन अधूरा नहीं

तो क्या इसका यह मतलब है कि किसी को बच्चे नहीं पैदा करने चाहिए? बात यह नहीं है। जब आप स्वाभाविक रूप से एक बच्चे को जन्म देते हैं, तो उसमें कोई हर्ज नहीं है। लेकिन अगर आप बच्चे को जन्म देने में असमर्थ हैं, तो अपने आप को अनावश्यक रूप से दुखी न करें। बच्चे को जन्म दिए बिना एक स्त्री का जीवन अधूरा होता है, यह समाज की बनाई हुई एक बहुत पक्षपातपूर्ण धारणा है। भारत में एक समय ऐसा भी था जब एक संतानहीन स्त्री को हर किसी के लिए अपशकुनी माना जाता था। अगर कोई सिर्फ संतान पैदा न कर पाने पर अपशकुनी होता है, तो जो लोग अध्यात्म की राह पर चले और ऐसी चीजों के बारे में कभी परवाह ही नहीं की, क्या वे सभी अपशकुनी थे? सारे साधु-संन्यासी, विवेकानन्द, ईसामसीह ऐसे ही लोग थे। इनकी तो आज पूजा की जाती है।

आप असल में बच्चा क्यों चाहते हैं?

इसलिए क्योंकि कुछ समय बाद, आपके जीवनसाथी के साथ आपका जुड़ाव उतना नहीं रह जाता और आप उस जुड़ाव की कमी महसूस करने लगते हैं। इसलिए आप खेलने के लिए एक नया खिलौना चाहते हैं और आपको लगता है कि बच्चा अच्छा रहेगा। आपको अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बच्चे को पैदा नहीं करना चाहिए, यह एक बच्चे को दुनिया में लाने का अच्छा तरीका नहीं है। बदकिस्मती से 99 फीसदी बच्चे दुनिया में इसी तरह आते हैं। बच्चे पैदा करने पर आप पूर्ण नहीं होंगे। आप असल में एक दूसरे जीवन के साथ जुड़ने की एक गहरी भावना का अनुभव करना चाहते हैं। जरूरी नहीं है कि यह जुड़ाव जैविक संबंध से प्रेरित हो। इसे आपकी जागरूकता और समझ से भी सामने लाया जा सकता है।

बहुत से बच्चे हैं, जिन्हें पालने की जरूरत है 

मान लीजिए एक स्त्री किसी बच्चे को जन्म देती है, ठीक उसी समय उसके बच्चे को किसी और के बच्चे से बदल दिया जाए, तब भी वह वैसा ही अनुभव करेगी, जैसा वह अपने बच्चे के साथ करती। अपनेपन का आधार आपका अपना खून नहीं है। मनुष्य जो अपनापन महसूस करता है, वह भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक नजदीकी के कारण होता है। इसलिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि वह बच्चा आपसे पैदा हुआ है या किसी और से? आप उस बच्चे को कितनी गहराई से स्वीकार करते हैं और अपना हिस्सा मानते हैं, इस पर वह अनुभव निर्भर करता है। यह मनोविज्ञान है, जीवविज्ञान नहीं। इसलिए बच्चा न होने को इतना बड़ा मुद्दा न बनाएं और समाज के दबावों के आगे सिर न झुकाएं। अगर आप वाकई एक बच्चे को पालना चाहती हैं, तो ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्हें पालने की जरूरत है। इस मामले में कुछ करना चाहिए। मैं तो कहूंगा कि अगर कोई दंपति बच्चा पैदा करने में सक्षम भी है, तो भी उन्हें कोई बच्चा गोद लेना चाहिए क्योंकि इससे मनोवैज्ञानिक क्षितिज का खूब विस्तार होगा।

 इसलिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि वह बच्चा आपसे पैदा हुआ है या किसी और से? आप उस बच्चे को कितनी गहराई से स्वीकार करते हैं और अपना हिस्सा मानते हैं, इस पर वह अनुभव निर्भर करता है। यह मनोविज्ञान है, जीवविज्ञान नहीं।

नि:संतान महिलाएं -पृथ्वी के लिए वरदान

फिलहाल, मानव जाति के विलुप्त होने का कोई खतरा नहीं है। असल में, जनसंख्या का विस्फोट हो रहा है। आज सभी नि:संतान दंपतियों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए क्योंकि हमने इस देश में ऐसी स्थिति पैदा कर दी है, जहां मानव जन्म एक अभिशाप हो गया है। जो देश के लिए अभिशाप है, वह हर किसी के लिए अभिशाप है। दुनिया की जनसंख्या सात अरब पार कर रही है, जिसमें आधी मानव जाति भयावह स्थितियों में जी रही है – लाखों बच्चे आवश्यरक भोजन और कपड़ों के बिना मर रहे हैं। जब ऐसी स्थिति है, तो नि:संतान महिलाएं इस पृथ्वी के लिए वरदान हैं। वे बहुत बड़ा योगदान कर रही हैं। यह बात असंवेदनशील और गैरजिम्मेदाराना लग सकती है, लेकिन मैं आपको समझाना चाहता हूं कि किसी बच्चे के लिए अच्छे से जीने की जरूरी संभावनाएं पैदा किए बिना इस दुनिया में बच्चे को लाना सबसे असंवेदनशील और गैरजिम्मेदाराना काम है। फिलहाल, हम सब इसके दोषी हैं। जो लोग जैविक रूप से बच्चा पैदा करने में सक्षम हैं, उन्हें भी संतानहीन रहने का फैसला करना चाहिए। अभी दुनिया की यही स्थिति है।