सद्गुरुइंसान आखिर क्यों सभी जीवों से श्रेष्ठ समझा जाता है, जबकि शारीरिक क्षमता के मामले में वह किसी भी दूसरे जीव का मुकाबला नहीं कर सकता। क्या अपनी बुद्धि की वजह से वो सभी जीवों से ज्यादा विकसित माना जाता है, या फिर इसका कारण कुछ और है?

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शारीरिक बल के मामले में आप किसी भी जानवर से मुकाबला नहीं कर सकते। आप किसी कीड़े को ही ले लें- वह अपने शरीर की लंबाई के पचास से सौ गुना लंबी छलांग लगा सकता है। उस हिसाब से अगर आप पांच या छह फीट लंबे हैं तो आपको पांच सौ फीट उछलना चाहिए। शारीरिक क्षमता के मामले में प्रकृति का कोई भी प्राणी चाहे वो कोई कीड़ा-मकोड़ा हो या पशु-पक्षी, आपसे अधिक सक्षम बनाया गया है।

एक मानव के रूप में आपमें कुछ अलग तरह की संभावनाएं हैं - अपने को जीवित रखने की स्वाभाविक इच्छा से परे जा कर कुछ करने की संभावना। यही सबसे खास बात है।

मानव तन्त्र का ठीक से इस्तेमाल करना होगा

जानवरों की अगर भोजन की व्यवस्था हो जाए तो वे उसी पल संतुष्ट हो जाते हैं। लेकिन इंसान का स्वभाव कुछ ऐसा है कि उसका जीवन शुरू ही तब होता है, जब उसके जीवन की मूल जरूरतें पूरी हो जाती हैं। यही बात हमें वास्तव में जानवरों से अलग करती है।

इंसान किसी ठोस अवस्था में नहीं है, बल्कि उसकी अवस्था निरंतर परिवर्तनशील है। आप एक पल देवतुल्य हो सकते हैं और अगले ही पल निर्दयी हो सकते हैं।
इंसान की खासियत यह है कि वह एक सहज जिज्ञासु होता है, वह किसी एक मुकाम पर नहीं ठहर सकता। आपके भीतर कुछ ऐसा है, जिसे किसी सीमा में कैद रहना पसंद नहीं हैं, जो लगातार सीमाओं से परे जाने को तड़प रहा है।

हालांकि अभी भी अधिकतर लोग जीवन की बुनियादी जरुरतों से परे जाने की बजाय जीवन की जरुरतों को ही बढ़ा रहे हैं। एक समय था जब बुनियादी जरुरत का मतलब था दो वक्त की रोटी, लेकिन अब मर्सीडीज लोगों की बुनियादी जरुरत बन गई है। हम बस मानदंड ऊंचे कर रहे हैं, लेकिन बात अभी भी खुद के अस्तित्व को बचाय रखने की ही है। यह मानव तंत्र का कोई समझदारी भरा इस्तेमाल नहीं है। इंसानी तंत्र एक बिल्कुल अलग संभावना के साथ रचा गया है। इस शरीर को चाहे आप एक हाड़-मांस के पिंड के रूप में इस्तेमाल करें या फिर एक जबरदस्त उपकरण के रूप में करें, जो ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव करा सकता है।

विकास : अब खुद-ब-खुद नहीं होगा

चार्ल्स डारविन ने हमें बताया कि हम सब पहले बंदर थे, फिर हमारी पूंछ गिर गई और हम मनुष्य बन गए। हम सब यह कहानी जानते हैं। जब आप बंदर थे, तो आपने इंसान बनने की इच्छा नहीं की थी, बस प्रकृति आपको आगे धक्का देती रही। लेकिन एक बार मानव शरीर में आने के बाद, विकास अनजाने में नहीं होता है। आप सिर्फ चेतनतापूर्वक ही विकास कर सकते हैं। हां, एक बार मानव शरीर पाने के बाद, आपके लिए कुछ विकल्प और संभावनाएं खुल गई हैं, आपके जीवन में एक आजादी आ गई है।

इस शरीर को चाहे आप एक हाड़-मांस के पिंड के रूप में इस्तेमाल करें या फिर एक जबरदस्त उपकरण के रूप में करें, जो ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव करा सकता है।
जिसे आप इंसान कहते हैं, वह अभी तक एक संपूर्ण प्राणी भी नहीं है। अगर आप जानवरों को देखें तो वे अपने आप में पूर्ण होते हैं। उदाहरण के लिए एक चीता जन्म लेता है, बड़ा होता है, लेकिन उसे यह चिंता नहीं होती कि मैं अच्छा चीता कैसे बनूं। उसे बस भरपूर भोजन मिल जाता है और वह अच्छा चीता बन जाता है। लेकिन आपका जन्म इंसान के रूप में हुआ है। अच्छा इंसान बनने के लिए आपको कितनी चीजें करनी पड़ती हैं। ये सब काम करने के बाद भी आपको नहीं पता कि आप कहां खड़े हैं। किसी और की तुलना में तो आप कह सकते हैं, कि इस आदमी से मैं बेहतर हूं, लेकिन अपने आप में एक इंसान के तौर पर आप कहां हैं, आपको पता नहीं होता।

निरंतर परिवर्तनशील है इंसान

इंसान किसी ठोस अवस्था में नहीं है, बल्कि उसकी अवस्था निरंतर परिवर्तनशील है। आप एक पल देवतुल्य हो सकते हैं और अगले ही पल निर्दयी हो सकते हैं। आपने अपने बारे में भी ऐसा महसूस किया होगा - किसी पल तो आप नेक होते हैं, तो अगले पल बुरे होते हैं, एक पल खूबसूरत तो अगले ही पल बदसूरत होते हैं। जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, वह एक तय स्थिति नहीं है। वह दिन के किसी पल कुछ भी हो सकता है। हम कह सकते हैं ‘अ ह्यूमन इज नॉट अ बियिंग, ही इज बिकमिंग’ यानी इंसान अभी भी बनने की प्रक्रिया में है। वह एक अनवरत प्रक्रिया है, एक संभावना है। इस संभावना का लाभ उठाने के लिए, एक पूरी व्यवस्था है जिसे हम योग कहते हैं, जो हमें समझाता है कि यह जीवन कैसे काम करता है और हम इसके साथ क्या कर सकते हैं।