महाभारत श्रृंखला के चौथे भाग में, सद्‌गुरु मानव जीवन में अलग-अलग तरह की अग्नि और उन्हें रूपांतरित करने की संभावना के बारे में बता रहे हैं।

जीवन में अग्नी का महत्त्व

यह परंपरा का एक हिस्सा है कि अगर आप सही वातावरण बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले आप एक दीया जलाते हैं। आपमें से कितने लोग रोज एक दीया जलाते हैं? अगर आप एक दीया जलाकर बस वहां बैठ जाएं – आपको किसी भगवान या देवताओं में विश्वास करने की जरूरत नहीं है – क्या उससे फर्क पड़ता है? आप जैसे ही दीया जलाते हैं, लौ के चारो ओर कुदरती रूप से एक खास आकाशीय क्षेत्र बन जाता है। जहां भी आकाशीय क्षेत्र होता है, वहां संप्रेषण बेहतर होता है। आप ईश्वर से बातचीत से पहले, सही तरह का माहौल, एक तरह का आकाशीय क्षेत्र तैयार करना चाहते हैं। उसके बिना यह ऐसा ही है, मानो आप दीवार से बातचीत कर रहे हों।

 

अगर आप कभी किसी अलाव के पास बैठे हैं, तो आपने ध्यान दिया होगा कि अलाव के चारो ओर बैठकर सुनाई जाने वाली कहानियों का असर बहुत ज्यादा होता है। पहले के कहानी सुनाने वाले यह बात जानते थे। ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के बहुत आसान तरीके हैं, जिनमें आपकी ग्रहणशीलता सबसे बेहतर होती है – कहानी के लिए भी और वातावरण के लिए भी। अगर आप पर्याप्त साधना करें, तो आपके चारो ओर आकाशीय तत्व बन जाता है।

जठराग्नि, चित्ताग्नि और भूताग्नि

अग्नि अलग-अलग तरह की होती है। जीवन अग्नि है। सूर्य की अग्नि धरती पर जीवन को संभव बनाती है। इंसानी शरीर में अग्नि जठराग्नि के रूप में व्यक्त हो सकती है। आपको जठराग्नि के कारण ही भूख लगती है जो पेट और उरुक्षेत्र की अग्नि है। भूख के शांत होने पर ही, उरुसंधि की अग्नि भड़कती है। जिसने खाना नहीं खाया है, उसे सेक्सुअलिटी की परवाह नहीं होती। अगर आप जठराग्नि को रूपांतरित कर दें, तो वह चित्ताग्नि बन सकती है। आप बौद्धिक रूप से प्रखर हो सकते हैं। आप सेक्स और भोजन में दिलचस्पी खो देते हैं क्योंकि आपकी बुद्धि की अग्नि प्रज्वलित हो जाती है।

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इस चित्ताग्नि को भूताग्नि में बदला जा सकता है। भूताग्नि का मतलब है, तत्वों की अग्नि। एक योगी में तात्विक अग्नि होती है। आपने ऐसे योगियों के बारे में सुना होगा, जिन्हें कुछ समय के लिए दफना दिया जाता था, उनकी सांस, हृदयगति सब रुक जाती थी। ऐसे भी योगी थे जो पारा या विष निगलते थे। ये चीजें सिर्फ यह दर्शाने के लिए हैं कि वे योगी हैं क्योंकि योगी न होने पर यदि वे ऐसा कुछ करते तो जीवित नहीं बचते। जब तक आपकी भूताग्नि प्रज्वलित न हो, आप तत्वों से नहीं खेल सकते। एक चीज सर्वाग्नि होती है, हम अभी इसपर नहीं जाएंगे। बाकी तीन आयामों में, हर किसी में कुछ हद तक जठराग्नि होती है।

 

अगर चित्ताग्नि बढ़ती है, तो आपकी बुद्धि आग की तरह होती है, वह आपके आस-पास रोशनी कर देती है। कॉमिक बुक्स में भी, जब किसी कैरेक्टर को कोई आइडिया आता है, तो उसे अक्सर एक रोशनी के बल्ब के रूप में दिखाया जाता है क्योंकि बौद्धिक अग्नि के जलने पर अचानक रोशनी होती है। आप उससे गरमी भी पैदा कर सकते हैं। अगर आपकी तात्विक अग्नि जल रही है, तो इसकी प्रकृति अलग होती है, यह एक ठंडी आग होती है। आपके अंदर तात्विक अग्नि के जलने पर, आप जीवन प्रक्रिया पर अधिकार कर लेते हैं। फिर आप चुन सकेंगे कि आपको कैसे जन्म लेना है, कैसे जीना है, कैसे मरना है या नहीं मरना।

 

महाभारत में 3 तरह के लोग

महाभारत में, आपको तीन तरह के लोग मिलेंगे। ऐसे लोग हैं, जो घोर जठराग्नि से जल रहे हैं। वे खाना चाहते हैं, पाना चाहते हैं, मैथुन करना चाहते हैं, जीतना चाहते हैं। कुछ लोगों में अद्भुत चित्ताग्नि है। उनकी बुद्धि इतनी तीक्ष्ण है कि वे ऐसी चीजें देख पाते हैं, जो आम लोग 1000 साल बाद ही देख सकते हैं। कुछ लोगों में भूताग्नि है, जिसका मतलब है कि उन्होंने अपने जीवन पर पूर्ण अधिकार पा लिया है कि उन्हें कब और कैसे जन्म लेना है, कब जीना और कब मरना है। जीवन और मृत्यु का चयन भी उनके ही हाथ में होता है। जब आप इन तीन तरह के लोगों से मिलते हैं, तो उनके बारे में निर्णय करने की कोशिश मत कीजिए। इन सभी की कोई न कोई भूमिका है।

 

अग्नी की शक्तिशाली प्रक्रिया

मैं चाहता हूं कि आप इस अवसर का लाभ उठाएं और देखें कि क्या इस कहानी के साथ-साथ, आप अपनी जठराग्नि को चित्ताग्नि, चित्ताग्नि को भूताग्नि में बदल सकते हैं। हम भूतशुद्धि का एक आरंभिक रूप करेंगे जो आपके अंदर एक निश्चित मात्रा में भूताग्नि ला सकता है। आपके अंदर भूताग्नि या तात्विक अग्नि होने की सुंदरता यह है कि आपको कोई दीया जलाने की जरूरत नहीं है, आपको कोई यज्ञ या होम करने की जरूरत नहीं है, आपको पूजा करने की जरूरत नहीं है, आपको किसी मंदिर में जाने की जरूरत नहीं है। मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए, मैं बस कह रहा हूं कि आपको जरूरत नहीं है क्योंकि तात्विक अग्नि के जलते ही, आप स्वयं अस्तित्व बन जाते हैं।

 

आप कृष्ण को इन तीनों पहलुओं में आते-जाते और खेलते देखेंगे। जब वह जठराग्नि होना चाहते हैं, तो वह पूरे जठराग्नि होते हैं – वह खाते हैं, लड़ते हैं और प्रेम करते हैं, जैसा और कोई नहीं कर सकता। जब वह चित्ताग्नि होना चाहते हैं, तो वह पूरी तरह एक बेजोड़ दूरदर्शी होते हैं। जब वह भूताग्नि होना चाहते हैं, तो वह संपूर्ण रूप से होते हैं। इन तीनों क्षेत्रों में उनकी भूमिका है। मैं चाहता हूं कि आप कम से कम थोड़ा सा इन तीनों क्षेत्रों को छुएं।

 

भारत की आध्यात्मिक परंपराओं में जो योगी अपनी जठराग्नि और चित्ताग्नि पर पूरी तरह अधिकार करना चाहते हैं और शुद्ध भूताग्नि बन जाते हैं, वे हमेशा अपनी व्यक्तिगत अग्नि कायम रखते हैं, जिसे आम तौर पर धूनी कहा जाता है। अग्नि के चारो ओर जो चीज होती है, वह हमेशा खुद आग से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। एक पदार्थ, जो मुख्य रूप से मिट्टी होती है, के जलने के कारण वह अग्नि जलती है। हमें इसमें दिलचस्पी नहीं है। ज्वाला के चारो ओर दो इंच का घेरा होता है, जो आकाशीय स्तर पर शक्तिशाली होता है।