प्रश्न:  सद्‌गुरु, क्या हम आज दूसरा अगस्त्य मुनि पैदा कर सकते हैं? सद्‌गुरु: अगस्त्य मुनि के बारे में एक बात जो हम जानते हैं, वह यह है कि बाकी के छह ऋषि उन्हें नाटा और बदसूरत समझते थे। तो आपमें से जो लोग सोचते हैं कि वे अगस्त्य मुनि बन सकते हैं, वे जान लें कि उसके लिए ज़रूरी बातें कौन सी हैं - अगस्त्य एक तमिल व्यक्ति थे – नाटे, मोटे और सांवले। वैसे ये गुण कोई समस्या नहीं हैं। अगस्त्य या अन्य किसी सप्तऋषि के योगी बनने का मुख्य पहलू यह था, कि उन्होंने अपना पूरा जीवन साधना में बिता दिया – ये साधना उन्होंने खुद को तैयार करने के लिए की थी। कहा जाता है कि उन्होंने चौरासी सालों तक साधना की। यह संख्या शरीर और ब्रह्मांडीय प्रक्रिया के मामले में महत्वपूर्ण है। एक इंसान के साथ जो कुछ भी किया जा सकता है, उन ऋषियों ने वह सब किया। उन्होंने सभी चौरासी पहलुओं को छुआ और इन पर मेहनत करते हुए खुद को तैयार किया।

तीव्र इच्छा, पक्का इरादा, न डिगने वाला फोकस, उन्होंने किस तरह बिना किसी मदद के मेहनत की और ध्यान न दिए जाने पर भी मेहनत करते रहे – यह तैयारी उनका सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।
आदियोगी ने सप्तऋषियों को सब कुछ बताने और सिखाने में वास्तव में कितना लंबा समय लगाया था? यह संख्या असली से कहीं अधिक एक प्रतीक की तरह है। हो सकता है इसमें बारह महीने या बारह साल या एक सौ चवालीस साल लगे हों। हम नहीं जानते। मगर जो कुछ भी खोजने लायक था, वह इन सात लोगों के साथ खोजा गया – आदियोगी ने पार्वती के साथ ऐसा नहीं किया। हालांकि उन्होंने पार्वती को एक अनुभव की संभावना दी, मगर उन्होंने पार्वती को विज्ञान नहीं सिखाया क्योंकि उनमें तैयारी का वह स्तर उन्हें नहीं दिखा। उन्होंने इन सातों को पूरी तरह शानदार पात्र के रूप में देखा इसलिए उनके साथ सब कुछ साझा किया। उन्होंने उस ज्ञान को सात हिस्सों में बांटा और फिर उनमें से हरेक के सोलह-सोलह तरीके बताए। फिर शिव ने वह अंतिम परीक्षा ली ताकि सप्त ऋषि उन सोलह तरीकों को उन्हें वापस अर्पित कर दें, जिसे हम अब भी गुरुपूजा के रूप में एक प्रतीक की तरह करते हैं। उनकी तैयारी और चरम लक्ष्य के प्रति उनका फोकस इतना तीव्र था, कि वे इतने सालों में अर्जित हर चीज को फिर से अर्पित कर देने के लिए तैयार थे। सिर्फ इसी वजह से वे वह बन पाए, जो वे बने। https://www.youtube.com/embed/dz8zJ4nds6Q

अपनी साधना से उन्होंने खुद को ऋषि बनाया

दूसरे शब्दों में, यह पूरी कहानी हमें यह बताती है कि सप्तऋषि आसमान से नहीं टपके थे। वे किसी खास तरह से पैदा नहीं हुए थे। ऐसी कोई चर्चा नहीं है कि उनके पैदा होने पर किस तरह सितारे चमके या बिजलियां चमकीं। कुछ नहीं, सिर्फ एक आम जन्म। कोई नहीं जानता कि भारत में वे कहां पैदा हुए थे। वे किसी अनजान सी जगह पर किसी आम स्त्री की कोख से पैदा हुए होंगे। वे स्वर्ग से नहीं टपके थे, उन्होंने खुद अपने आप को बनाया था। उनके जीवन की कहानी और योग-साधना के बारे में यही चीज महत्वपूर्ण है। चाहे आप कोई भी हों, किसी भी तरह से पैदा हुए हों, आपके माता-पिता कोई भी हों, आपके कर्म कैसे भी हों – अगर आप इच्छुक हैं, तो आप खुद को उस ऊँचाई तक ले जा सकते हैं। जंगल के सबसे बड़े पेड़ों ने भी खुद ही अपने को बनाया है, है न? हम किसी विशाल पेड़ को हैरानी से देखते हैं, लेकिन कुछ ही साल पहले वह एक छोटा सा पौधा रहा होगा। जो लोग यह नहीं समझते, वे सोचते हैं कि ऐसा कहीं और से हो गया क्योंकि वे आम तौर पर कहीं और ही होते हैं। वे अपने मनोवैज्ञानिक खेलों में इतने खोए होते हैं कि किसी चीज पर ध्यान नहीं देते। मैं चाहता हूं कि आप जरा सोच कर देखिए कि पिछले साठ सालों में जंगल के इस पेड़ ने ख़ुद को इतना ऊँचा उठाने के लिए कितना संघर्ष किया होगा? विनाशकारी जंगली-जीवन, कभी सूखा तो कभी पोषण की जद्दोजहद, कितना कुछ सहन कर वह आगे बढ़ा होगा। क्योंकि उसे भोजन थाली में परोसकर नहीं मिलता। उसे दूसरे पेड़ों से धूप छीननी पड़ती है, मिट्टी से पोषण के तत्व हथियाने पड़ते हैं। उसके लिए यह एक असाधारण साधना है। मगर उसने खुद को बनाया और आज हम हैरानी से उसकी ओर देखते हैं।

भले ही अब हम उस व्यक्ति को हैरानी से देखते हों, मगर अपने समय में उन्हें कोई तारीफ या पहचान नहीं मिली। किसी ने उनके लिए तालियां नहीं बजाईं।
इसी तरह, हमें अगस्त्य और अन्य सप्तऋषियों को बहुत हैरानी से देखना होगा, क्योंकि ये इंसान, आम इंसानों की तरह नहीं लगते। वे बहुत खास लगते हैं, मगर उन्होंने अपने आप को, खुद बनाया था। तीव्र इच्छा, पक्का इरादा, न डिगने वाला फोकस, उन्होंने किस तरह बिना किसी मदद के मेहनत की और ध्यान न दिए जाने पर भी मेहनत करते रहे – यह तैयारी उनका सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था - अगर उन्हें वापस आकर और चौरासी जन्मों तक भी तैयारी करनी पड़ती, तो वे करने के लिए तैयार थे। https://www.youtube.com/embed/CcymCEV4vNA

अगस्त्य मुनि हमेशा अपने मार्ग पर अटल बने रहे

चलिए मान लेते हैं कि अगस्त्य मुनि यहां के एक स्थानीय गांव के थे और एक दिन अचानक गायब हो गए। वह हिमालय जाकर आदियोगी के साथ रहने लगे। आपके ख्याल से गांववाले अगस्त्य के बारे में क्या बातें करते होंगे? क्या आपको लगता है कि वे उनके माता-पिता से उनकी तारीफ करते होंगे, ‘अरे आपका बेटा एक महान ऋषि बनने वाला है’? नहीं। वे ऐसा कहते हुए उनके माता-पिता का मजाक बनाते होंगे, ‘तुम्हारा मूर्ख लड़का कहां है?’ चाहे वह कितने भी सालों के बाद लौट कर आए हों, आपको लगता है कि वे उन्हें देखकर रोमांचित हुए होंगे, उत्साहित हुए होंगे कि वह हिमालय जाकर आदियोगी से मिलकर लौटा है? नहीं, वे उन्हें लंगौटी पहने किसी जंगली प्राणी की तरह देखकर उन पर हंसे होंगे। भले ही अब हम उस व्यक्ति को हैरानी से देखते हों, मगर अपने समय में उन्हें कोई तारीफ या पहचान नहीं मिली। किसी ने उनके लिए तालियां नहीं बजाईं। हर किसी ने उन्हें पागल समझा जो अपने मां-बाप को छोड़कर चला गया। एक गैरजिम्मेदार लड़का जो घर से भाग गया। इन सब के बीच वे कभी डिगे नहीं, अपने रास्ते पर अटल बने रहे – यही बात उन्हें अगस्त्य मुनि बनाती है। उनकी दिशा तय थी, यह एक बात है, दूसरी बात यह है कि चाहे कुछ भी हो जाए, उन्होंने कृपा में जीने और अपने काम से पीछे न हटने का रास्ता चुना। अगर आप एक अगस्त्य मुनि बनना चाहते हैं.... और ऐसा जीवन जी सकते हैं, तो क्यों नहीं?

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